हमारे देश में बस चलाने वाले को ड्राइवर, शिप को ड्राइव करने वाले को कैप्टन, और वहीं हवाई जहाज चलाने वाले को पायलट कहा जाता है, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि ट्रेन के ड्राइवर को लोको पायलट क्यों कहा जाता है। पायलट का मतलब तो ड्राइवर होता है लेकिन इसके आगे लोको क्यों जोड़ा जाता है चलिए हम आपको बताते हैं।
ट्रेन चलाने वाले को क्यों कहा जाता है 'लोको पायलट'?
ट्रेन चलाने वाला लोकोमोटिव इंजन को ड्राइव और कंट्रोल करता है इसलिए उसे लोको पायलट कहा जाता है। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में ट्रेन ड्राइवर को इंजीनियर, ट्रेन कंट्रोलर या ट्रेन हैंडलर के रूप में जाना जाता है। लोको पायलट ट्रेन ड्राइवर की नौकरी के लिए आधिकारिक पद का नाम है। लोको का सेलेक्शन लिखित परीक्षा, मेडिकल और डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के आधार पर होता हैऔर नए भर्ती युवाओं को सबसे पहले मालगाड़ी संचालन की जिम्मेदारी मिलती है।
कैसे होता है 'लोको पायलट' का सिलेक्शन?
भारतीय रेल में लोको पायलट बनने के लिए कम से कम 10 वीं पास होने के साथ ही आईटीआई होना चाहिए। मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, टेक्नीशियन, वायरमैन आदि ट्रेड में आईटीआई सर्टिफिकेशन या डिप्लोमा भी जरूरी है। इसमें आवेदन के लिए वेबसाइट पर जानकारी दी जाती है। आवेदन के बाद लिखित परीक्षा होती है। लिखित परीक्षा में सामान्य ज्ञान, सामान्य विज्ञान, गणित, करंट अफेयर्स और रीजनिंग आदि से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं।
इसे क्लीयर करने के बाद मेडिकल फिर ट्रेनिंग आदि होती है। फिर मेडिकल में आंखों की जांच की जाती है। कोई भी भारतीय नागरिक इसके लिए आवेदन कर सकता है और आवेदन करने वाले की उम्र अधिकतम 30 वर्ष हो सकती है।इसे जरूर पढ़ें-भारतीय रेलवे से जुड़े 10 रोचक प्रश्न, क्या आपको पता हैं इनके उत्तर ?
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