सनातन धर्म में सभी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करने के बाद आरती करने का विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि बिना आरती के पूजा अधूरी मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि आरती करने से देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। भक्त अपनी इच्छाओं और प्रार्थनाओं को भगवान तक पहुंचाते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। आपको बता दें, हिंदू धर्म में दिन और रात को आठ प्रहरों में विभाजित किया गया है, प्रत्येक लगभग तीन घंटे का होता है। इन प्रहरों का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है और हर प्रहर में कुछ काम करने या न करने की सलाह दी जाती है। वहीं शास्त्र के अनुसार रात्रि में घंटी बजाने या आरती करना वर्जित माना जाता है, लेकिन सवाल है कि जब हम घर में रात में आरती नहीं करते हैं तो फिर मंदिरों में रात्रि के समय क्यों आरती होती है। इसके बारे में हमने अपने एक्सपर्ट ज्योतिषचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से जाना। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार, संध्या आरती दिन के अंत और रात्रि के प्रारंभ का प्रतीक है। यह माना जाता है कि इस समय देवताओं की ऊर्जा और उपस्थिति विशेष रूप से प्रबल होती है और आरती के माध्यम से उन्हें श्रद्धापूर्वक आमंत्रित किया जाता है। हिंदू धर्म में भगवान को भी मानवीय रूप में देखा जाता है। जैसे दिनभर की सेवा, पूजा, भोग आदि के बाद अंत में भगवान को 'शयन' कराया जाता है, उसी से पहले रात्रि की आरती की जाती है। इसे शयन आरती कहा जाता है। वहीं आरती के समय दीपक, कपूर, घंटी, शंख आदि का उपयोग किया जाता है, जिनसे उत्पन्न होने वाली ध्वनि और ऊर्जा वातावरण की नकारात्मकता को दूर करती है और एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। रात का समय अंधकार का होता है, और आरती से उस अंधकार में भी एक दिव्य प्रकाश फैलता है।
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि जब रात्रि में मंदिरों में आरती होती है तो इस दौरान भगवान का शयन करते हैं और उसके बाद मंदिर के पुजारी स्वयं भोजन ग्रहण करते हैं और फिर सोते हैं। वहीं गृहस्थ लोग किसी भी समय खाना ग्रहण कर लेते हैं और नियमित रूप से देखा जाए तो रात्रि आरती का नियम बेहद महत्वपूर्ण होता है। जिसे शुद्धता के साथ करने का विधान है। इसलिए शयन आरती मंदिरों में ही की जाती है। इसे घर में करने इसलिए वर्जित माना गया है।
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