हिंदू धर्म में शंखनाद का विशेष महत्व होता है। किसी भी पूजा के आरंभ और समापन के दौरान शंखनाद करना बहुत शुभ माना जाता है। शंख न केवल धार्मिक अनुष्ठानों का एक अभिन्न हिस्सा है, बल्कि इसे सौभाग्य, शुद्धता और दिव्यता का प्रतीक भी कहा जाता है। मान्यता है कि पूजा के दौरान शंख की ध्वनि करने से आस-पास की नकारात्मक ऊर्जाएं दूर होती हैं और वातावरण में सकारात्मकता का संचार होता है। शास्त्रों की मानें तो जब घर पर शंख बजता है, तो उसकी ध्वनि से देवता प्रसन्न होते हैं और भक्तों को उनका आशीर्वाद मिलता है। इन्हीं कारणों से मंदिरों में आरती और पूजा के समय शंख बजाने की परंपरा है। शंखनाद का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व है।
इसकी ध्वनि से वायुमंडल में कंपन उत्पन्न होता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक वातावरण बनता है। साथ ही, शंख मन को एकाग्र करने और ध्यान की स्थिति को प्रबल करने में भी सहायक होता है। धार्मिक ग्रंथों में भी शंखनाद को कल्याणकारी और अशुभ शक्तियों को दूर करने वाला बताया जाता है। इसलिए, पूजा-पाठ, हवन और अन्य धार्मिक कार्यों में शंख बजाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें पूजा के दौरान शंखनाद के महत्व के बारे में विस्तार से।
शंख का धार्मिक महत्व क्या है?
शंख को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है और यह हर धार्मिक अनुष्ठान एवं पूजा का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, पूजा की शुरुआत शंख ध्वनि से करने से उस स्थान के आस-पास की नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं और देवताओं का आह्वान होता है, जिससे वातावरण पवित्र एवं सकारात्मक बना रहता है। इसी कारण से भगवान कृष्ण ने भी अपने दिव्य शंख 'पांचजन्य' को महाभारत युद्ध के दौरान बजाकर पांडवों का उत्साहवर्धन किया था।
वहीं, ज्योतिष में मान्यता यह भी है कि माता लक्ष्मी का वास शंख में होता है, इसलिए इसे घर में या पूजा स्थल पर रखना अत्यंत शुभ माना जाता है और इससे समृद्धि बनी रहती है। शंख बजाने से मानसिक शांति भी मिलती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
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पूजा के समय शंखनाद के लाभ
पूजा के समय शंखनाद करना अत्यंत शुभ और लाभकारी माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शंख की पवित्र ध्वनि से देवता प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। यह न केवल ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त करने का माध्यम है, बल्कि घर में शुभता का संचार भी करता है।
शंख बजाने से वातावरण की कई तरह की नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं, जिससे घर में शांति और सुख-समृद्धि बनी रहती है। वास्तुशास्त्र के अनुसार शंख की ध्वनि से घर के वास्तु दोष समाप्त होते हैं और शुभ फल प्राप्त होते हैं। इसके नियमित अभ्यास से मानसिक शांति और एकाग्रता भी बढ़ती है, जिससे ध्यान और साधना में सहायता मिलती है। पूजा-पाठ के दौरान शंखनाद करने से न केवल आध्यात्मिक उन्नति होती है, बल्कि यह शरीर और मन को भी ऊर्जा प्रदान करता है। इसलिए, इसे धार्मिक एवं स्वास्थ्य लाभों के लिए एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है।
शंख बजाने के नियम
पूजा के समय शंख बजाने के लिए कुछ विशेष नियमों का पालन करना जरूरी होता है। यदि आप इन नियमों का पालन करते हैं तो आपको इसका पूर्ण लाभ मिल सकता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शंख को हमेशा साफ-सुथरे स्थान पर रखना चाहिए और इसे अशुद्ध हाथों से स्पर्श नहीं करना चाहिए। पूजा या किसी भी शुभ कार्य से पहले शंख को गंगाजल से शुद्ध करना शुभ माना जाता है।
शंख बजाने का सही समय प्रातःकाल और संध्या का होता है, क्योंकि इस समय शंख की ध्वनि से वातावरण शुद्ध होता है। इसे भगवान की आरती या पूजा के दौरान बजाना भी शुभ माना जाता है, लेकिन इसे रात में बजाने से बचना चाहिए। वैसे तो माना जाता है कि महिलाएं शंख को पूजा में रख सकती हैं और इसकी पूजा भी कर सकती हैं. लेकिन उन्हें शंख बजाने की मनाही होती है। इसके अलावा, शंख में जल भरकर भगवान को अर्पित किया जा सकता है, लेकिन इस जल को पीने या रसोई में उपयोग करने से बचना चाहिए। टूटा या खंडित शंख पूजा में उपयोग नहीं किया जाता, क्योंकि इसे अशुभ माना जाता है। इन नियमों का पालन कर शंख बजाने से आध्यात्मिक लाभ के साथ-साथ मानसिक और शारीरिक शुद्धता भी प्राप्त होती है।
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क्या शंखनाद से ईश्वर प्रसन्न होते हैं?
शंखनाद को हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ और पवित्र माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब शंख बजाया जाता है, तो उसकी दिव्य ध्वनि से ईश्वर प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। शास्त्रों में भी इस बात का वर्णन मिलता है कि देवताओं के पूजन और यज्ञों में शंख ध्वनि का विशेष महत्व होता है, क्योंकि इसकी गूंज से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और वातावरण शुद्ध बनता है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी से जुड़े होने के कारण शंख को विशेष रूप से पूजनीय माना जाता है। जब पूजा के दौरान शंखनाद किया जाता है, तो यह भगवान का आह्वान करने का प्रतीक होता है, जिससे वे भक्तों की प्रार्थना स्वीकार करते हैं।
किसी भी पूजा की पूर्णता शंखनाद से मानी जाती है और इसका जीवन में विशेष महत्व होता है। यदि आप भी शंखनाद करते हैं तो इसके नियमों का पालन आपके लिए बहुत जरूरी है।
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