हमारे धर्म शास्त्रों में किसी भी पूजा के बाद आरती जरूर करनी चाहिए। आरती मुख्य रूप से ईश्वर को प्रसन्न करने का एक आसान तरीका माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि आरती भगवान को प्रसन्न करने के साथ अपनी किसी भी गलती की क्षमा मांगने के लिए की जाती है।
यदि बात ज्योतिष की करें तो कोई भी पूजा तब तक अधूरी है जब तक कि उसके समामापन में आरती न की जाए। इसी वजह से किसी भी पूजा या अनुष्ठान के बाद घर के सभी सदस्य इकट्ठे होते हैं और एक साथ खड़े होकर ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि शास्त्रों में आरती करने के कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं जिनमें से एक मुख्य है खड़े होकर आरती करना। अक्सर मंदिरों में या घर में आरती से पूर्व सभी भक्तों से खड़े होने की प्रार्थना की जाती है, जिससे इस अनुष्ठान को पूरा किया जा सके। आइए नारद संचार के ज्योतिष अनिल जैन जी से जानें इसके पीछे के कारणों के बारे में और इस बात के बारे में भी जानें कि क्या बैठकर भी आरती की जा सकती है।
ऐसा कहा जाता है कि जिस घर में आरती होती है वहां ईश्वर का निवास होता है और प्रभु का आशीष मिलता है। शास्त्रों की मानें तो बिना आरती के पूजा भी स्वीकार्य नहीं होती है। आरती से घर की समृद्धि बनी रहती है। जिस घर में आरती होती है वहां रहने वालों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इसी वजह से ये अनुष्ठान हमेशा श्रद्धा पूर्वक करना चाहिए।
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शास्त्रों के अनुसार किसी किसी भी पूजा का समापन हमेशा आरती से ही करना चाहिए जिससे पूजा (दोपहर के समय पूजा नहीं करनी चाहिए) संपूर्ण मानी जाती है। यह अनुष्ठान के पूर्ण होने का संकेत देती है और भगवान का आशीष प्रदान करने में मदद करती है।
आरती एक हिन्दू अनुष्ठान है और पूजा का अनिवार्य हिस्सा है। यह शब्द संस्कृत के अरात्रिका शब्द से लिया गया है जो उस प्रकाश को संदर्भित करता है जिससे रात्रि का अंधकार दूर होता है। आरती से घर का वातावरण शुद्ध होता है और मन को शांति मिलती है। यह परिवार के सभी लोगों को आपस में जोड़ने का भी एक अच्छा तरीका है।
यदि आरती के सही नियम की बात करें तो हमेशा आरती खड़े होकर ही करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि खड़े होकर आरती (आरती करने का तरीका) करना ईश्वर के प्रति सम्मान को दिखाता है। जब हम किसी भी व्यक्ति विशेष के प्रति भी आदर सत्कार दिखाते हैं तो उसके सम्मान में खड़े हो जाते हैं।
इसी वजह से आरती के लिए भी खड़े होना जरूरी माना जाता है। इसके साथ ही खड़े होकर ईश्वर के सामने झुकते हुए आरती करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि झुकने से तात्पर्य है अपने घमंड को ईश्वर के सामने रख देना और प्रार्थना करना। ये सभी प्रक्रियाएं भगवान के प्रति समर्पण का संकेत देती हैं।
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शास्त्रों में भले ही आरती के नियमों के अनुसार आरती खड़े होकर करने की सलाह दी जाती है, लेकिन यदि आप बीमारी की स्थिति में हैं अथवा किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या की वजह से खड़े होने में असमर्थ हैं तब आप बैठकर भी आरती कर सकते हैं। दरअसल ईश्वर हमेशा भाव को देखते हैं और यदि आप शुद्ध भाव से आरती करते हैं तो किसी भी अवस्था में ईश्वर को स्वीकार्य होती है।
हिंदू धर्म में जब भी आप आरती करें स्वच्छ तन- मन से करें। आरती हमेशा सीधे हाथ से करनी चाहिए। कभी भी आरती मुंह बंद कर नहीं करनी चाहिए। जब भी आप आरती करें उच्चारण जरूर करें। आरती की थाली को बाएं से दाएं की और घुमाते हुए आरती करें।
यदि आप सही तरीके से खड़े होकर आरती करती हैं तो यह पूजन ईश्वर को पूर्ण रूप से स्वीकार्य होता है। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।
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