Naga Sadhu Dhuni Importance: प्रयागराज शहर में इन दिनों करोड़ों लोगों की आना-जाना लगा हुआ है, जिसके पीछे का मुख्य कारण महाकुंभ है। यहां पर साधु-संत और नागा साधुओं का संगम देखने को मिल रहा है। पूरे कुंभ मेला क्षेत्र में धूनी का धुआं उठ रहा है। साधुओं के बसेरा स्थान पर जल रही धुनियां और उनका रहन-सहन श्रद्धालुओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। अब ऐसे में लोग कुंभ में आने के बाद नागा साधुओं के अखाड़े में उनका आर्शीवाद लेने आते हैं। अब ऐसे में यहां पर कई ऐसी चीजें दिखती हैं, जिसे लेकर भक्तों के मन में तमाम तरह की बातें चलती हैं। उसी में से एक है धूनी।
नागा साधु अपनी कुटिया में धूनी जलाकर रखते हैं, जिसे आप आम बोलचाल की भाषा में आग समझते सकते हैं। लेकिन यह कोई सामान्य आग नहीं है। इन्हें देखने के बाद अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता हैं कि आखिर नागा-साधु हर समय अपने साथ धूनी को क्यों रखते हैं।
साधु के पास जलने वाली धूनी कोई सामान्य अग्नि कुंड नहीं होती बल्कि इस धूनी में नागा और साधुओं का तप बल समाया होता है। धुनी साधुओं की जीवन शैली का अभिन्न अंग हैं। धूनी जलाने के लिए पहले शुभ मुहूर्त तय किया जाता है। इसके बाद सिद्ध मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। बता दें धूनी को कोई भी साधु अकेले नहीं जला सकता है। इसके लिए गुरु का होना बहुत जरूरी होता है। गुरु अनुमति के बाद धूनी जलाई जाती है।
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नागा साधु की कुटिया में आज जब भी जाएंगे उनके पास धूनी जलती हुई दिखाई देगी। फिर चाहे रात हो या दिन। नागाओं में ऐसी मान्यता है कि अगर कोई साधु धुनि के पास बैठकर कोई बात कहता है या आर्शीवाद देता है, तो वह जरूर पूरा होता है। ऐसे में नागा साधु का लगभग पूरा जीवन अपनी इसी धूनी के आसपास गुजरता है। नागा साधु हमेशा अपनी धूनी अपने साथ रखते हैं, क्योंकि यह उनके साधना और जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। धूनी का मुख्य उद्देश्य धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभवों के साथ जुड़ा हुआ है।
धूनी 24 घंटे जलती रहे इसकी पहली जिम्मेदारी साधु की होती है। अगर कोई साधु धूनी के पास से किसी और स्थान पर जा रहा है, तो उसके पीछे से धूनी की जिम्मेदारी उनके सेवक की होती है। जब साधु यात्रा पर होते हैं, तो उनके पास धूनी नहीं होती है। लेकिन जैसे ही वह किसी स्थान पर डेरा डालते हैं उस स्थान पर सबसे पहले धूनी जलाते हैं। चिमटे की मदद से धूनी की आग को व्यवस्थित किया जाता है।
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