भारत में महाकुंभ को एक पवित्र और अद्वितीय धार्मिक आयोजन माना जाता है। यह अवसर हर 12 साल में एक बार प्रयागराज में आयोजित होता है। इस दौरान संगम पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु इकठ्ठा होते हैं और डुबकी लगाते हैं। साल 2025 का महाकुंभ बहुत खास है क्योंकि इस साल 144 साल बाद ऐसा संयोग बन रहा है। इस बार 144 साल बाद पूर्ण महाकुंभ लगने वाला है। इस दौरान सबसे महत्वपूर्ण अखाड़ों को माना जाता है और इनकी भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण होती है। महाकुंभ में सबसे पहले अखाड़ों के साधु शाही स्नान करते हैं और उसके बाद ही अन्य लोग संगम में डुबकी लगाते हैं। इस दौरान पवित्र नदियों के तट पर लाखों श्रद्धालु और नागा साधु एकत्रित होते हैं। चूंकि महाकुंभ में अखाड़ों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, इसलिए आपको इसके बारे में भी जान लेना चाहिए कि अखाड़ों का इतिहास क्या है, महाकुंभ में अखाड़ों की भूमिका क्या है और इन अखाड़ों में नागा साधुओं की एंट्री कैसे होती है।
महाकुंभ के अखाड़ों का इतिहास और स्थापना
महाकुंभ के अखाड़ों की शुरुआत का संबंध प्राचीन काल से ही है। ऐसा माना जाता है कि 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने अखाड़ों की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य सनातन धर्म की रक्षा करना और वैदिक परंपराओं को जीवित रखना था। दरअसल अगर हम कथाओं की मानें तो उस समय हिंदू धर्म पर विभिन्न बाहरी आक्रमणों और पंथों के प्रभाव का खतरा मंडराता था ऐसे में सनातन धर्म को जीवित रखना उद्देश्य था जिसके लिए अखाड़ों का निर्माण किया गया। उस समय ये अखाड़े इन चुनौतियों का सामना करने के लिए साधुओं और संतों को एकजुट करने का माध्यम बने। उसी समय से अखाड़ों की शुरुआत हुई। आज भी अखाड़ों की संस्कृति जीवित है और हर एक अखाड़े में एक मुख्य साधु होता है जो अपने साथ वाले अन्य साधु-संतों को अखाड़े के नियम और नागा साधु बनने की शिक्षा देते हैं।
महाकुंभ में कितनी तरह के होते हैं अखाड़े
महाकुंभ में मुख्य रूप से तीन अखाड़े होते हैं। जिनमें से शैव अखाड़े, वैष्णव अखाड़े और उदासीन अखाड़े होते हैं। शैव अखाड़े शिवजी के उपासक होते हैं और इसमें रहने वाले साधु भगवान शिव की आराधना में लीन रहते हैं। वो मोह माया से दूर शिव की भक्ति करते हैं और शरीर पर भभूत लपेटे रहते हैं। दूसरे वैष्णव अखाड़े होते हैं जो भगवान विष्णु और उनके अवतारों के अनुयायी माने जाते हैं। इस अखाड़े के सदस्य मुख्य रूप से भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहते हैं। इसके अलावा उदासीन अखाड़ा होता है जिसके सदस्य पूरी तरह से संत परंपरा से जुड़े हुए होते हैं। प्रत्येक अखाड़े का अपना इतिहास, परंपरा और अनुशासन होता है जिसका पालन करने वाले को ही अखाड़ों की सदस्यता मिलती है।
क्या होता हो महाकुंभ में अखाड़ों का महत्व
महाकुंभ में अखाड़े केवल धार्मिक संगठन नहीं होते हैं, बल्कि ये हिंदू संस्कृति और परंपरा के प्रतीक भी हैं। अखाड़े साधुओं और संतों के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र की तरह काम करते हैं, जहां उन्हें योग, ध्यान, वेदांत और धर्मशास्त्र की शिक्षा दी जाती है। इसके अलावा, अखाड़े शस्त्रविद्या में भी पारंगत होने का प्रशिक्षण देते हैं। अखाड़ों की एक खास पहचान इनका अनुशासन और संगठनात्मक ढांचा होता है। प्रत्येक अखाड़े का नेतृत्व एक महंत करता है और उनके नीचे विभिन्न पदों पर साधु और नागा साधु होते हैं।
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महाकुंभ में अखाड़े में साधुओं का प्रवेश किस आधार पर होता है?
महाकुंभ में अखाड़ों में साधुओं के प्रवेश के लिए भी कुछ विशेष नियमों और परंपराओं का पालन करना पड़ता है। अखाड़े भारत के ऐसे प्राचीन धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थान हैं, जो साधुओं और संन्यासियों को संगठित करते हैं। इन अखाड़ों में साधुओं का प्रवेश उनकी धार्मिक योग्यता, तपस्या और दीक्षा प्रक्रिया पर निर्भर करता है। साधु बनने के लिए और अखाड़ों में प्रवेश पाने के इच्छुक व्यक्ति को सबसे पहले दीक्षा लेनी पड़ती है। दीक्षा एक आध्यात्मिक प्रक्रिया होती है, जिसमें गुरु अपने शिष्य को संन्यास के नियम, परंपराएं, और धार्मिक जीवन का मार्ग सिखाते हैं। अखाड़ों में प्रवेश के लिए साधुओं को कठोर तपस्या और वैराग्य का प्रमाण देना आवश्यक होता है। इसमें प्रवेश करने के इच्छुक साधु को अपनी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रदर्शन भी करना पड़ता है। हर साधु किसी न किसी अखाड़े से जुड़ा होता है। भारत में 13 प्रमुख अखाड़े हैं और हर अखाड़ा अपने नियमों और परंपराओं के अनुसार साधुओं का चयन करता है। किसी भी साधु का प्रवेश उसके गुरु के मार्गदर्शन के बिना संभव नहीं होता है।
इस प्रकार महाकुंभ में अखाड़ों का विशेष महत्व है और साधु बनने के लिए और किसी भी अखाड़े में प्रवेश पाने के लिए व्यक्ति को एक कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ सकता है।
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