Maha Kumbh 2025: आखिर क्यों नागा साधुओं को कपड़ों के बिना भी नहीं लगती है ठंड? शरीर पर भस्म लपेटने का है अद्भुत रहस्य

महाकुंभ के कई ऐसे रहस्य हैं जिनके बारे में पता कर पाना कठिन है, ऐसे ही रहस्यों में से एक है नागा साधुओं का निर्वस्त्र रहने और शरीर पर भस्म लपेटने की एक परंपरा। आइए जानें इसके बारे में विस्तार से।
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दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक आयोजनों में से एक, महाकुंभ 2025 का आरंभ जल्द ही होने वाला है। इस अनुष्ठान का विशेष महत्व इसलिए भी होता है क्योंकि इसका आयोजन बारह साल बाद होता है। महाकुंभ 2025 का आयोजन जैसे-जैसे पास आ रहा है, श्रद्धालुओं और साधुओं के प्रति लोगों की श्रद्धा भी बढ़ती जा रही है।

महाकुंभ के आरंभ से पहले ही प्रयागराज में अलग-अलग अखाड़ों के साधु एकत्रित होते हैं और इस दौरान नागा साधुओं का दर्शन करना एक अनोखा अनुभव होता है।

आम लोगों को नागा साधुओं के बारे में जान पाना थोड़ा कठिन ही लगता है। उनकी जीवनशैली दूसरों से बिलकुल अलग होती है और वो एक कठिन तपस्या में लीन रहते हुए ईश्वर का ध्यान करते हैं।

नागा साधु कड़ाके की ठंड में भी बिना कपड़ों के कैसे रहते हैं? इसका जवाब जान पाना थोड़ा मुश्किल होता है। उनके शरीर पर केवल भस्म होती है और वे तपस्या में लीन रहते हैं।

महाकुंभ में शाही स्नान की पहली डुबकी नागा साधु ही लगाते हैं। आइए आपको बताते हैं इसके रहस्य के बारे में कि ये साधु ऐसा जीवन कैसे जीते हैं जिसमें उन्हें भीषण ठंड में भी कपड़ों की जरूरत नहीं पड़ती है, यही नहीं उनके शरीर में लगी हुई भस्म का रहस्य भी जानें।

कौन होते हैं महाकुंभ में शामिल होने वाले नागा साधु?

maha kumbh naga sadhu secret

नागा साधु ऐसे तपस्वी होते हैं जो आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए सांसारिक जीवन का त्याग करते हैं। वे आध्यात्मिक अर्थ में एक योद्धा की तरह जीवन व्यतीत करते हैं और विभिन्न अखाड़ों से संबंधित होते हैं।

ये एक सख्त अनुशासन और जीवन शैली का पालन करते हैं। उन्हें 'नागा' इसलिए कहा जाता है क्योंकि वो किसी भी मौसम और परिस्थिति में निर्वस्त्र अवस्था में ही रहते हैं। दरअसल उनका यह रहन-सहन भौतिकवाद से उनके अलगाव का प्रतीक माना जाता है। उन्हें अक्सर शरीर में भस्म लपेटे हुए देखा जाता है और ये हाथों में त्रिशूल लिए हुए ध्यान और योगाभ्यास में संलग्न रहते हैं।

नागा साधुओं को बचपन से ही अभ्यास कराया जाता है। पूरे 12 साल तक वो तन, मन से गुरु की सेवा करते हैं और जब उनके गुरु अनुमति देते हैं और उन्हें नागा साधु बनने का आशीर्वाद देते हैं तभी वो नागा साधु बन पाते हैं।

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आखिर क्यों नागा साधुओं को ठंड क्यों नहीं लगती है?

नागा साधु प्राणायाम समेत कई योग के उन्नत रूपों का अभ्यास करते हैं, जिससे शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए अपनी सांस को नियंत्रित करना शामिल होता है। उन्हें बचपन से ही योग की ऐसी शिक्षा दी जाती है जिसका असर उनके पूरे जीवन में दिखाई देता है और उन्हें भीषण ठंड में भी इसका एहसास नहीं होता है।

योग की बात करें तो वो आमतौर पर कुंडलिनी योग और तुम्मो जैसी योग शक्तियों से शरीर को भीतर से गर्म रखते हैं और निर्वस्त्र ही तपस्या करते हैं। वर्षों के ध्यान और आध्यात्मिक अभ्यास से, नागा साधुओं में शारीरिक संवेदनाओं से वैराग्य विकसित हो जाता है। उनका ध्यान भौतिक शरीर से हटकर आध्यात्मिक जीवन की ओर चला जाता है, जिससे ठंड के प्रति उनकी संवेदनशीलता कम हो जाती है।

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शरीर पर भस्म क्यों लगाते हैं नागा साधु?

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नागा साधुओं के जीवन में भस्म का गहरा आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक महत्व है। यह पवित्र भस्म हवन से मिलती है और इसका अनुप्रयोग व्यावहारिक और आध्यात्मिक दोनों अर्थ रखता है।

इसी तरह से भस्म उस अंतिम वास्तविकता का प्रतिनिधित्व भी करती है कि सभी भौतिक चीजें अंततः राख में बदल जाती हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए नागा साधु अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। निर्वस्त्र रहकर शरीर में भस्म लपेटने वाले नागा साधु सांसारिक मोह-माया के त्याग और नश्वरता को स्वीकार करने का प्रतीक माने जाते हैं।

यही नहीं हिंदू धर्म में भस्म को पवित्रता प्रदान करने वाला माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह शरीर और आत्मा को शुद्ध करती है, इसी वजह से नागा साधु को आध्यात्मिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने की प्रेरणा मिलती है। शरीर पर लिपटी हुई राख को नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी आत्माओं से बचाने वाला माना जाता है। इन्हीं कारणों से नागा साधु अपने शरीर पर राख लपेटते हैं और निर्वस्त्र रहकर ही जीवन व्यतीत करते हैं।

संसार की मोह-माया से दूर रहकर साधना में लीन रहना नागा साधुओं की प्रवृत्ति होती है। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।

images:freepik.com

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