बात जून 2023 की है जब सुप्रीम कोर्ट ने सास और बहू के अधिकारों को लेकर एक केस की सुनवाई की थी। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बी वी नागराथन की बेंच में सुनवाई हुई थी जहां सास और बहू दोनों ही एक दूसरे से परेशान थीं और घर में एक साथ रहने के लिए तैयार नहीं थीं। सास की उम्र 80 साल थी और बहू का कहना था कि 22 सालों से उसने टॉर्चर झेला है। वहीं, सास का कहना था कि बहू उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित करती है।
सभी पक्षों और दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला दिया था जिससे दोनों पक्षों को राहत मिले। कोर्ट ने कहा था कि सास के पास भी मानसिक शांति के साथ अपने घर में रहने का पूरा अधिकार है। इस फैसले में Maintenance and Welfare of Parents Senior Citizen Act और Protection of Women from Domestic Violence Act के नियमों का ध्यान रखा गया था जिससे दोनों को अपना पूरा अधिकार मिले।
पर अगर हम लीगल सिस्टम की बात करें, तो क्या आप जानती हैं कि एक सास के पास किस तरह के कानूनी अधिकार होते हैं?
हमने सुप्रीम कोर्ट के वकील दीपक श्रीवास्तव से इसके बारे में बात की। उन्होंने हमें इंडियन लीगल सिस्टम के बारे में कुछ जानकारी दी।
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क्या हैं भारतीय संविधान में सास को लेकर बनाए गए कानून?
एडवोकेट दीपक के अनुसार सास के लिए संविधान में अलग से कोई कानून नहीं है, लेकिन महिलाओं और सीनियर सिटीजन्स के लिए बनाए गए कानूनों में उनकी जगह है।
सास के इस एक्ट के जरिए मिल सकता है पूरा प्रोटेक्शन
बुजुर्गों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए सीनियर सिटीजन प्रोटेक्शन एक्ट 2007 बनाया गया था। जिस भी व्यक्ति की उम्र 60 साल से ऊपर है, वो इस एक्ट के दायरे में आता है। इसके तहत सीनियर सिटीजन्स अपनी संपत्ती, जरूरी खर्च, आर्थिक रूप से मजबूती, हेल्थ केयर आदि की सुविधा ले सकते हैं। इस एक्ट के जरिए सीनियर सिटीजन्स अपनी मेंटेनेंस के लिए बेटे-बहू, पोता-पोती, बेटी-दामाद आदि से दावा कर सकते हैं। हां, किसी नाबालिग पर यह लागू नहीं होगा।
अगर सास सीनियर सिटीजन है, तो मेंटेनेंस और प्रॉपर्टी के नियम इस एक्ट के जरिए लागू होंगे।
इस एक्ट का पूरा नाम है Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007, अगर सास सीनियर सिटीजन नहीं भी है, तो भी मेंटेनेंस और वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स के दायरे में आएगी। इसके तहत सगे और सौतेले माता-पिता दोनों को ही मेंटेनेंस मिलने का अधिकार होता है।
यही एक्ट सास-ससुर के अधिकारों के प्रोटेक्शन में काम आ सकता है। हालांकि, सास का अपनी बहू की बनाई हुई प्रॉपर्टी या फिर स्त्रीधन पर कानूनी तौर पर कोई अधिकार नहीं होता है।
डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट
कानूनी तौर पर Domestic Violence Act, 2005 में हर वो काम शामिल है जिसमें विक्टिम के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, हाथ-पैर, मेंटल और फिजिकल खतरा है। इसी के साथ, ऐसा कोई भी कृत्य जिससे फिजिकल एब्यूज, सेक्सुअल एब्यूज, इमोशनल एब्यूज और इकोनॉमिक एब्यूज की श्रेणी में रखा जा सके। डोमेस्टिक वायलेंस किसी भी इंसान के द्वारा की जा सकती है जिसके साथ विक्टिम डोमेस्टिक रिलेशनशिप में है या फिर पहले कभी थी।
इस एक्ट के तहत हर भारतीय महिला अपने परिवार के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकती है। कई लोगों को लगता है कि यह सिर्फ बहुओं के लिए है, लेकिन ऐसा नहीं है। सास, ननद, बेटी, पोती और घर की हर महिला इस एक्ट के अंतर्गत आ सकती है।
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ऐसे में अगर सास को लग रहा है कि उसे घर में प्रताड़ित किया जा सकता है, तो वह कानूनी तौर पर एक्शन ले सकती है। इस एक्ट के तहत सास के पास भी अपने घर में रहने का पूरा अधिकार है और कोई उससे वह अधिकार छीन नहीं सकता है।
हालांकि, भारतीय संविधान के अनुसार एक सास के पास सिर्फ रेमेडियल राइट्स ही हैं। यानी अगर उसके मूलभूत अधिकारों का हनन हो रहा है, तो उसके एवज में वो बहू पर केस कर सकती है। हालांकि, अगर सब कुछ ठीक चल रहा है, तो इनमें से किसी भी एक्ट को लागू करने की जरूरत नहीं होगी।
ये सभी नियम सिर्फ बहू पर ही नहीं, बल्कि किसी भी रिश्तेदार पर लागू होते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर सास और बहू दोनों को ही घर के किसी मेंबर से परेशानी हो रही है, तो वो दोनों एक साथ डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट का इस्तेमाल कर सकती हैं और मुकदमा दर्ज करवा सकती हैं।
भारतीय संविधान में कई नियम हैं, लेकिन हर मामले के हिसाब से कोर्ट के फैसले बदल सकते हैं। अगर आपको भी कोई परेशानी है, तो अपने मामले को किसी वकील से डिस्कस करें।
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