रानी मुखर्जी इन दिनों अपनी फिल्म हिचकी से एक अलग तरह की कहानी कहने की कोशिश कर रही हैं। इस फ़िल्म में उनका किरदार एक ख़ास तरह के सिंड्रोम का शिकार है, जिसके चलते वो बात करते समय कभी-कभी हकलाता है यानि स्टैमर करता है। फ़िल्म करते-करते रानी को ऐसे बच्चों की तकलीफ़ों का एहसास हुआ, जो किसी परेशानी से जूझ रहे हैं। रानी ने इस फिल्म के माध्यम से उन पेरेंट्स को भी एक सलाह देने की कोशिश की है, जिनके बच्चे किसी ना किसी शारीरिक या मानसिक दिक्कत से जूझ रहे हैं। ऐसे पेरेंट्स को चाहिए कि घर में ऐसा माहौल रखें कि बच्चे खुलकर अपनी बात रख सकें। इसके लिए पेरेंट्स को चाहिए कि सबसे पहले वे अपने बच्चे को स्वीकार करें। रानी का कहना है कि पेरेंट्स अगर किसी कारणों से अपने ही बच्चे को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं तो वह हिचक ही हिचकी है।
रानी का कहना है कि बच्चे के लिए पेरेंट्स को रवैया बदलना चाहिए। उन्हें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि बच्चे में कुछ न कुछ टैलेंट तो ज़रूर होगा या है। उसकी तुलना दूसरे बच्चों से करने के बजाय उस टैलेंट को निखारने की कोशिश करें जो अपने बच्चे में है। ये नहीं कि आप हमेशा जो बच्चे में नहीं है, उसके लिए उन्हें नकारते रहें। बातें सुनाते रहें। या ख़राब व्यवहार करें। किसी स्टेज पर जब हमें पता चलता है कि बाकी बच्चों से कुछ अलग कर रहा है तो यह हमारी रिस्पांसबिलीटी है कि हमारा पहला क़दम होना चाहिए कि हम बच्चे को समझें। चूंकि बच्चे को मनोबल अपने पेरेंट्स से ही मिलता है। उन्हें अगर यह बात समझ आ जाये कि हम यहां सेफ हैं और मेरे पेरेंट्स के साथ रहकर हम कोई भी जंग जीत सकते हैं तो वह अपनी हर कमी से पार पा जाते हैं और आप खुद देखेंगे कि वे दुनिया से भी कदमताल करने लगते हैं, लेकिन अगर वह घर पर ही सही तरीके से नहीं देखे गये और इग्नोर किये गये तो यह बात उनसे बर्दाश्त नहीं होती है और फिर उनकी सेहत पर ग़लत प्रभाव होता है। सो, उनकी कमियों को देखने और समझने की कोशिश करें।
रानी ने यह भी कहा कि ऐसा नहीं था कि वह हमेशा बेस्ट ही करती थीं अपने स्कूल में, लेकिन उनके घर वालों ने उन्हें कभी नीचा नहीं दिखाया। प्रेशर नहीं बनाया। इसलिए वह पढ़ाई को भी खेल की तरह लेती हैं और उसी तरह वह ज़िंदगी में विकास करती रहीं। रानी कहती हैं कि स्कूल बच्चे बाद में जाते हैं। दोस्त बाद में बनते हैं। माता-पिता अप्रूवल ज़रूरी है। अगर माता पिता कुछ भी कह दें कि बेटा कोई बड़ी बात नहीं है। हम इस परेशानी को मिलकर ठीक कर लेंगे तो बच्चे का मनोबल बढ़ जाता है। रानी ने खुद स्वीकारा कि पिछले 22 साल से उन्हें हकलाने की परेशानी थी। उनकी मां को भी परेशानी थी, लेकिन उन्होंने हमेशा अपनी कमजोरी को स्ट्रेंथ बनाकर काम करना सीखा है और मेहनत की है और इसके बाद ही उन्होंने इस कमजोरी से निजात पायी। रानी कहती हैं कि उनकी कोशिश उनकी बेटी को लेकर तो यही होगी कि वह हमेशा उसके टैलेंट को निखारने की कोशिश करेंगी न कि उन्हें जबरन मल्टी टास्क करवा कर बेवजह का प्रेशर डालने की कोशिश करेंगी।
Read More: बच्चे उदास हैं तो हो सकता है यह डिप्रेशन का साइन, सुचित्रा पिल्लई ने दिए इससे लड़ने के टिप्स
हिचकी में रानी एक स्कूल टीचर की ही भूमिका में हैं। यही वजह है कि उन्होंने अपने स्कूल के उन टीचर्स से मुलाकात की है, जिन्होंने रानी की ज़िंदगी को काफी प्रभावित किया है। रानी कहती हैं कि पेरेंट्स के बाद टीचर्स का काम होता है कि वे दो बच्चों में तुलना न करें। सबको बराबरी से देखें और उनके टैलेंट्स को निखारें। जिस बच्चे में जो बात है, उसे निखारें तो बच्चे को आगे अच्छे मौके मिलते जायेंगे। जैसे मेरी ज़िंदगी में मुझे हमेशा अच्छे टीचर्स मिलते रहे हैं। इस बारे में रानी ने खुद बताया है कि हां यह सच है कि मैंने अपने किरदार की तैयारी के लिए अपनी स्कूल के टीचर्स के साथ काफी वक़्त बिताया है। मैं जुहू के मानेकजी कूपर में पढ़ती थी और जियोग्राफी की टीचर वकील मैम मेरी पसंदीदा टीचर्स में से एक रही थीं। वह हमें काफी कुछ सिखाती थीं। खास बात यह थी कि वह हमें जिस तरह से पढ़ाती थीं, हमें वापस घर जाकर उसे दोहराने की जरूरत नहीं होती थीं। इसलिए मुझे उनके साथ काफी मज़ा आता था। यही नहीं दादरकर मैम भी काफी करीबी रही हैं। लिटरेचर की टीचर भी करीबी थीं। वह बच्चों के साथ काफी वक्त बिताती थीं। रानी ने यह भी बताया कि उनके टीचर्स काफी फ्रेंडली, इनफॉर्मल रहे हैं। उन्होंने कभी अकेडमिक प्रेशर डालने की कोशिश ही नहीं की। उनका व्यवहार हर किसी के साथ सामान्य होता था। कोई भी टीचर हमारे साथ सख्त नहीं होते। यही वजह है कि पढ़ाई हमारे लिए फन जैसा हो गया था। हिचकी में मैंने उन्हीं सारे इस्पिरेशन को दर्शाने की कोशिश की है।
रानी ने आगे कहा है कि यह हम सबके लिए बड़ा लेसन है कि किस तरह हम बच्चों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें. उन्हें फ्री होकर वह जो सोचते हैं और जो करना चाहते हैं उसे करने के लिए प्रेरित करें
Read More: शिक्षक है या भक्षक, सजा देने के बहाने 88 छात्राओं से उतरवाए कपड़े
रानी मानती हैं कि बच्चों को आगे बढ़ने के सही मौक़े देने के साथ ज़िंदगी में और भी कई हिचकियां हैं, जिन्हें दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। मिसाल के तौर पर वह कहती हैं कि अगर कोई सास ये चाहती है कि उसे गोरे रंग की बहू मिले तो समझिए ये भी ज़िंदगी की एक हिचकी है। सास को सोचना चाहिए कि फेयर बहू ऐसा क्या कर सकती है जो एक आम या सांवले रंग वाली महिला नहीं कर सकती।
यह विडियो भी देखें
Herzindagi video
हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, [email protected] पर हमसे संपर्क करें।