मीरा इरडा की जिंदगी आम लड़कियों से बहुत अलग नहीं है। दोस्तों के साथ घूमना-फिरना और घर पर मौजमस्ती बिल्कुल आम लड़कियों की तरह, लेकिन जो चीज उन्हें खास बना देती है वह है रफ्तार के लिए उनकी दीवानगी। बहुत कम उम्र में उन्हें रेसिंग का शौक लग गया। छोटी-सी उम्र में गो-कार्ट में हिस्सा लेने के बाद से वडोदरा निवासी मीरा रफ़्तार की दीवानी हो गईं. आज मीरा फ़ॉर्मूला वन रेसर बन चुकी हैं। मीरा देश में फ़ॉर्मूला रेसिंग की सबसे उच्च श्रेणी यूरो जेके सीरीज़ में हिस्सा लेने वाली सबसे कम उम्र महिला हैं। यही नहीं वह जेके टायर-एमएमएस रोटेक्स रूकी कप 2011 में तीसरी और ऑल स्टार्स कार्टिंग 2012 इन्विटेशनल यामाहा एसएल इंटरनैशनल में पांचवीं पोजिशन पर रही थीं। 75 रेसों में हिस्सा ले चुकीं मीरा की जिंदगी आम महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
मीरा ने महज नौ साल की उम्र से रेसिंग की शुरुआत कर दी। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया, 'मुझे पहले-पहल रेसिंग में बहुत मजा आया। जब मेरे पिता ने देखा कि मेरी रेसिंग में दिलचस्पी बढ़ रही है तो उन्होंने मुझे मोटरस्पोर्ट्स को संजीदगी से लेने की सलाह दी। मैंने भी सोचा कि रेसिंग के लिए मुझमें इतना पैशन है तो क्यों न इस दिशा में कुछ प्रयास किया जाए। तब मैं गो-कार्टिंग कंपटीशन में हिस्सा लेने के लिए पुणे गई। वहां मैंने कुछ दिन ट्रेनिंग ली और उसके बाद कंपटीशन में हिस्सा लेना शुरू कर दिया।
जिन दिनों मीरा ने रेसिंग की शुरुआत की, उस समय में इसमें बहुत ज्यादा लड़कियां नहीं हुआ करती थीं। जिन लड़कों के साथ मीरा रेस लगाया करती थीं, उन्हें मीरा के साथ कंपटीशन बहुत रास नहीं आता था। वे मीरा को ट्रैक से बाहर करने और उन्हें डी-मोटिवेट करने की कोशिश करते थे, लेकिन मीरा ने इन चीजों से हार नहीं मानी। उन्होंने अपने प्रयास जारी रखे। इसका नतीजा यह हुआ कि उनकी परफॉर्मेंस पहले से बेहतर होती गई। जब मीरा के दोस्तों को पता चला कि वह अच्छा कर रही हैं तो उन्होंने भी उनका उत्साह बढ़ाया।
आमतौर पर सड़क पर 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार भी तेज ही होती है, वहीं ट्रैक पर 230 किमी प्रति घंटे की रफ्तार मायने रखती है। इसके बारे में मीरा कहती हैं, 'ट्रैक पर मैं सिर्फ़ रेस के बारे में ही सोचती हूं। मुझे फील होता है कि ट्रैक ही मेरा सबकुछ है और मेरा जन्म रेसिंग के लिए ही हुआ है। लेकिन मैं एक बात साफ करना चाहती हूं कि जो लोग सड़कों पर तेज़ ड्राइव करके खुद को टैलेंटेड जताने की कोशिश करते हैं, वे अपनी और दूसरों की जिंदगी खतरे में डालते हैं। सड़क पर रेस लगाना कोई शान की बात नहीं है। रियल रेसिंग एक क्लोज़्ड सर्किट और संतुलित माहौल में होती है, जिसमें सेफ्टी का भी पूरा इंतजाम होता है, इसीलिए रोड पर रेसिंग और क्लोज सर्किंट में रेसिंग में बहुत फर्क है।
रेसिंग में स्पीड की वजह से इसे महिलाएं काफी रिस्की समझती हैं। इस पर मीरा इरडा ने बताया, 'रेसिंग का सबसे जोख़िम भरा फॉर्म रैलिंग है, जिसमें सड़कों पर मॉडीफाइड गाड़ियां चलाई जाती हैं। चूंकि रेस कभी-कभी बजरी या पहाड़ी इलाक़ों में भी होती है, इसलिए कार पर कंट्रोल लूज करना बहुत आम बात है लेकिन अगर ड्राइवर कार पर कंट्रोल बनाए रखे तो जोखिम की बात नहीं होती।
मीरा इरडा ने महसूस किया कि फिजिकली फिट होने से रेसिंग में फायदा मिलता है। जब लड़कों के साथ उन्होंने कंपटीशन में हिस्सा लिया तो उन्होंने स्टेमिना के मामले में लड़कों की तुलना में खुद को कमतर पाया। अपनी इस वीकनेस की वजह से उन्हें रेसिंग के दौरान जल्दी थकान हो जाती थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने खुद को फिजिकली स्ट्रॉन्ग बनाकर अपने इस पक्ष को मजबूत कर लिया। वह बताती हैं, 'रेस कार ड्राइवरों को अपर बॉडी पार्ट की ताक़त पर ज़्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है। रेसिंग के दौरान बाजुओं में स्टीयरिंग संभालने और कार को ट्रैक पर बनाए रखने की ताकत होनी चाहिए।'
नारायण कार्तिकेयन और करुण चंदोक ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर देश का नाम रोशन किया है, लेकिन अभी तक किसी महिला रेसर ने यह उपलब्धि हासिल नहीं की है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गो-कार्टिंग प्रतियोगिताओं में ले चुकी मीरा इरडा का सपना है कि वह भी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में देश का प्रतिनिधित्व करें।
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