खूबसूरती की परिभाषा क्या है? क्या इसे हम किसी पैमाने में तौल सकते हैं? इसका जवाब होना चाहिए जो भी मन को अच्छा लगे वो सुंदर और नहीं खूबसूरती का कोई पैमाना नहीं हो सकता, लेकिन ये सच जो हमें पढ़ने में इतना अच्छा लगता है वो हम खुद ही भूल गए हैं। चाहें टीवी पर आने वाले ऐड्स देख लीजिए या फिर ब्यूटी कॉन्टेस्ट के कंटेस्टेंट्स। हम एक तय पैमाने पर चल रहे हैं जहां गोरा ही सुंदर होता है, लंबे बाल ही खूबसूरत होते हैं, किसी का चेहरा, उसकी स्किन और उसके हाव-भाव ज्यादा देखे जाते हैं न कि उसकी सीरत और वो खूबसूरती जिसे लोग देखना ही नहीं चाहते। मिस यूनिवर्स 2019 के मंच पर कुछ अलग हुआ है। खूबसूरती के पैमानों को अलग तरह से तोड़ा गया है।
दक्षिण अफ्रीका की Zozibini Tunzi को मिस यूनिवर्स का खिताब मिला है। Zozibini Tunzi दक्षिण अफ्रीका की पहली ब्लैक वुमन हैं जिन्हें ये खिताब हासिल हुआ है। जोजिबिनी का चुनाव उनकी काबिलियत, उनके जवाब, उनकी शख्सियत के आधार पर हुआ है।
क्या सिर्फ 'फेयर' ही 'लवली' है?
जोजिबिनी का जीतना एक बात साबित करता है वो ये कि सिर्फ फेयर ही लवली नहीं होता। हमें बचपन से ये बताया गया है कि महिलाओं को सुंदर दिखना चाहिए, अब तो पुरुषों के लिए भी ये बात रखी गई है कि परफेक्ट दिखने के मायने अलग हैं। भारत में 14 बिलियन डॉलर की पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स की इंडस्ट्री है। ये ऑनलाइन शॉपिंग के कारण और भी ज्यादा बढ़ती चली जा रही है। अगर इसमें से सिर्फ फेयरनेस क्रीम इंडस्ट्री की बात की जाए तो ये 450 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा है। जरा सोचिए तेल, साबुन, क्रीम, शैम्पू, टूथपेस्ट, डियोड्रंट आदि सभी पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स के बीच फेयरनेस क्रीम की बिक्री इतनी ज्यादा। जिस रिपोर्ट से ये डेटा लिया गया है उसके अनुसार हर साल 18% की दर से ये इंडस्ट्री बढ़ रही है।
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एक सर्वे मानता है कि भारत में 10 में से 8 महिलाओं का ये मानना है कि गोरे होने से उन्हें समाज में ज्यादा फायदा मिलता है। ये है वो कड़वी सच्चाई जिसे हम जानते तो हैं, लेकिन फिर भी अपने रंग को अपनी कमी मानते हैं। बचपन से ही यहां सिखाया जाता है कि अपनी त्वचा के रंग को बदलना है, अपने बालों को और सुंदर बनाना है। यहां तो विज्ञापन भी ऐसे आते हैं कि अगर त्वचा बहुत गोरी होगी तो महिलाओं को जल्दी काम मिलेगा, अच्छा दूल्हा मिलेगा, सब कुछ जिंदगी में सही होगा।
भारत का गोरा कॉम्प्लेक्स-
वो कहावत है न 'अंग्रेज चले गए, अंग्रेजी छोड़ गए' वो थोड़ी बदल जानी चाहिए। यहां अंग्रेजी के साथ-साथ वो गोरा कॉम्प्लेक्स भी छोड़ गए। अभी भी लोगों को लगता है कि गोरा होना ही बेहतर है। यहां शक्ल की सफेदी छोड़िए कपड़ों की सफेदी भी बहुत जरूरी दिखाई जाती है। अगर कपड़े सफेद होंगे और चेहरा सफेद होगा तो हमें इतनी सफलता मिलेगी कि बस। दूसरों को हम चिढ़ा पाएंगे अगर हम सफेदी की चमकार दिखाएंगे। तो इसे क्या गोरा कॉम्प्लेक्स का नाम नहीं दिया जा सकता?
फेक परफेक्शन पाने की चाहत-
खुद ही सोचिए हेयर रिमूवल क्रीम के विज्ञापन में कार्तिक आर्यन के फेक एब्स पर इतना बवाल क्यों है? जबकि सभी हीरो आजकल एब्स बनाने पर ज्यादा ध्यान देते हैं। फेयर एंड लवली कम थी कि अब फेय एंड हैंडसम का जमाना है। हम परफेक्ट नहीं हैं तो फेक परफेक्शन चाहिए हमें। चाहें उसके लिए कुछ भी क्यों न करना पड़े। ये कई बार समाज का प्रेशर भी होता है।
जोजिबिनी का जीतना हमारे लिए है प्रेरणा-
अब बात करते हैं उस महिला की जिसने हमें अपना कायल बना लिया। वो महिला जिसने अपनी हाजिर जवाबी से सबका दिल जीत लिया। जोजिबिनी ने अपने जवाब में कहा था कि युवा लड़कियों को और भी ज्यादा मौके मिलने चाहिएं। वो ये भी बोल चुकी हैं कि उनके जैसी स्किन को सुंदर नहीं माना जाता है और वो बड़े होते समय यही सोच रही थीं कि वो सुंदर नहीं हैं। जिस जवाब ने उन्हें जितवाया उसे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
जोजिबिनी एक सोशल एक्टिविस्ट हैं और लिंगभेद के आधार पर होने वाली हिंसा के खिलाफ लड़ती हैं। अपना काम करती हैं। वो ये मानती हैं कि खूबसूरती वैसी ही है जैसी प्रकृति की देन है।
मैं यहां आपको कुछ समय पहले मसाबा गुप्ता के एक स्टेटमेंट की याद दिला दूं जहां उन्होंने कहा था कि उनकी आधी जिंदगी अपने बाल स्ट्रेट करने में चली गई। वो अपने बालों को स्ट्रेट करती रहीं अभी भी करती हैं। मसाबा का एफ्रो-पंजाबी बैकग्राउंड था और उनके बाल भी उसी तरह के थे। पर जोजिबिनी ने अपने बालों को नहीं बदला। उनके बाल भी वैसे ही थे जैसे घर में रहते हुए होते। ये अलग परिभाषा है जोजिबिनी के लिए खूबसूरती की।
जरा सोचिए जो महिला होश संभालते से ही इसलिए लड़ रही है कि महिलाओं को छोटी बच्चियों को उनका हक मिलना चाहिए वो महिला खूबसूरती की एक नई परिभाषा नहीं लिखेगी। एक पल को हम ये सोचें कि जोजिबिनी की अपनी पहचान शायद मिस यूनिवर्स जीतने के बाद मिली है, लेकिन असल में तो वो बहुत पहले से ही अपने काम के लिए जानी जाती हैं।
वो गोरी नहीं हैं, उनके बाल लंबे-काले नहीं हैं, फिर भी वो बहुत सुंदर हैं। फिर भी ब्रह्मांड सुंदरी का ताज उनके सिर सजा है।
अगर हम इस सच को मान लें तो नंदिता दास जैसी टैलेंटेड एक्ट्रेस को सामने आकर अपने रंग को लेकर कुछ नहीं कहना होगा। अगर हम ये बात समझ जाएं तो वो विवाद ही नहीं उठेगा जैसा मिस इंडिया कंटेस्टेंट की तस्वीर को देखकर उठा था कि वो सब एक जैसी ही दिख रही हैं। ये पैमाना सेट हो गया है कि गोरा होगा जो वही सुंदर होगा, लेकिन इस पैमाने को तोड़ने की शुरुआत हो चुकी है। असली खूबसूरती वो है जो आपकी प्राकृतिक सुंदरता है। वो नहीं जो और लोग देखते हैं। खूबसूरती वो है जो आप समझती हैं।
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कोई इंसान मोटा है तो भी खूबसूरत है, कोई इंसान पतला है तो भी खूबसूरत है, कोई इंसान नाटा हो, गोरा हो या नहीं हो, उसका चेहरा बेदाग हो या न हो वो खूबसूरत है। अगर ऐसा हर कोई समझने लग जाए तो हमारे देश में 'छपाक' जैसी फिल्मों के नए मायने लिखे जाएंगे। एसिड अटैक सर्वाइवर को लोग हिम्मती कहेंगे उसकी खूबसूरती देखेंगे न ही उसके चेहरे पर नजर डालेंगे।
फिल्म बाला में आयुष्मान खुराना ने अंत में एक डायलॉग बोला है 'बदलना क्यों है', यकीनन हमें बदलने की क्या जरूरत है? हम जैसे हैं खुश हैं और जैसे रहेंगे वैसे भी खुश रहेंगे। समाज के पैमानों का कोई अंत नहीं और इसलिए बेहतर है कि समाज को खुश करने के लिए न बदला जाए। अपने लिए जिएं, खुश रहें, अपनी खुशी को ही अपनी खूबसूरती बनाएं। ये प्यारा सा मैसेज जोजिबिनी ने भी दिया और अब शायद वक्त आ गया है कि हम भी इसे समझें।
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