(Lesser known facts about lord shiva) हिंदू धर्म में सभी तिथि और पर्व का विशेष महत्व है। वहीं महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव को समर्पित है। इस दिन शिव जी की पूजा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और मनचाहा वरदान भी मिलता है। महाशिवरात्रि के दिन सभी भक्त भगवान शंकर के रंग में रंगने लग जाते हैं। इस साल दिनांक 08 मार्च को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा। वहीं देश के सभी 12 ज्योतिर्लिंगों के धाम पर विशेष आयोजन भी किया जाता है। अब ऐसे में भगवान शिव का पहला भक्त कौन था और भोलेनाथ किस देवता का ध्यान करते हैं। ये अपने आप में ही एक सवाल है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
पढ़ें कौन था भगवान शिव का पहला शिष्य (Read first disciple of Lord Shiva)
पुराणों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे पहले शिष्यों में सप्तर्षियों का नाम आता है। ऐसी मान्यता है कि सप्तऋषियों ने भगवान शिव (शिव जी मंत्र) के ज्ञान का प्रचार पृथ्वी पर किया था। जिसके कारण विभिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। पुराणों में बताया गया कि शिव जी के सबसे पहले शिष्य में बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, महेंद्र, प्राचेतस मनु, सहस्राक्ष और भाद्वाज शामिल थे। इन्हें सप्तर्षि कहा जाता है।
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भगवान भोलेनाथ किस देवता का ध्यान करते हैं? (Which deity does Lord Bholenath meditate on?)
भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर ध्यान मुद्रा में बैठे बताए जाते हैं। वहीं वेदों और पुराणों में शिव जी की ध्यान मुद्रा का भी जिक्र है। वहीं शिव पुराण में बताया गया है कि भोलेनाथ भगवान राम (राम जी मंत्र) का ध्यान करते हैं। वहीं रामचरीतमानस में भी इस बात को विस्तार से बताया गया है कि शिव जी और राम जी एक दूसरे के उपासक हैं।
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भगवान भोलेनाथ ध्यान मुद्रा मंत्र (Lord Bholenath Meditation Mudra Mantra)
भगवान भोलेनाथ के ध्यान मुद्रा मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के सभी कार्य सिद्ध हो सकते हैं।
- करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा .
- श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधं .
- विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व .
- जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥
- ध्याये नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारूचंद्रां वतंसं। रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम।। पद्मासीनं समंतात् स्तुततममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं। विश्वाद्यं विश्वबद्यं निखिलभय हरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।
- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
- यस्याग्रे द्राट द्राट द्रुट द्रुट ममलं , टंट टंट टंटटम् ॥
- तैलं तैलं तु तैलं खुखु खुखु खुखुमं , खंख खंख सखंखम्॥।
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