हमारे देश में महिलाएं अगर शादी के कुछ महीनों बाद मां ना बन पाएं तो उन्हें तरह-तरह की सलाह दी जाती हैं, लेकिन अगर किसी वजह से महिला को अबॉर्शन कराना पड़ जाए तो उसके लिए बात दबे-छिपे तरीके से होती है। जो महिलाएं अनचाही परिस्थितियों में मां बनने की वजह से अबॉर्शन के लिए मजबूर होती हैं या जो यौन शोषण के कारण गर्भवती हो जाती हैं, वे सार्वजनिक तौर पर अबॉर्शन के लिए अस्पताल जाने से कतराती हैं। इस बारे में महिलाएं उतनी जागरूक नहीं हैं और ना ही उन्हें अपने मेडिकल राइट्स के बारे में बहुत जानकारी है। सही जानकारी नहीं होने की वजह से ऐसी परिस्थिति से गुजर रही महिलाओं का एक बड़ा तबका डर के साए में जीता है और अबॉर्शन के असुरक्षित तरीके अपनाता है, जो उनके लिए कई बार जानलेवा भी साबित होता है।
लांसेट की एक स्टडी के अनुसार साल 2015 में अबॉर्शन कराने वाली महिलाओं की संख्या 15.6 मिलियन थी। लेकिन हैरानी की बात ये है कि अभी भी महिलाएं अबॉर्शन को लेकर डर के साए में जीती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि 15.6 मिलियन महिलाओं में से 11.5 मिलियन महिलाओं ने अस्पताल के बाहर अबॉर्शन कराए। साफ है कि महिलाएं चाहें संभ्रांत परिवारों से हों या फिर गरीब तबके से, दोनों ही इसके लिए अस्पताल आने से हिचकती हैं। उन्हें लगता है कि उनकी बेइज्जती हो जाएगी और इस कारण उनकी समस्या और भी ज्यादा बढ़ जाती है। इस समस्या से पार पाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि हर महिलाओं को अपने लीगल और मेडिकल राइट्स के बारे में पता होना चाहिए।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी ( एमटीपी ) एक्ट 1971 के तहत अगर रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर की तरफ से अबॉर्शन की प्रक्रिया किसी लाइसेंस प्राप्त क्लीनिक या सरकारी अस्पताल में अपनाई जा रही है, तो यह कानूनी तौर पर मान्य होता है। इस एक्ट के तहत महिला से जुड़ी सूचना को गोपनीय रखा जाता है और उन स्थितियों का भी जिक्र होता है, जिनके तहत अबॉर्शन की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। किसी महिला की सहमति के आधार पर ही उसके अबॉर्शन की प्रक्रिया अपनाई जाती है। अगर वह मैंटली चैलेंज्ड या 18 साल से कम ही की है तो उसके अभिभावक से इसकी सहमति लेना अनिवार्य होता है। बिना कानूनी कार्रवाई के प्रेगनेंसी के 20 हफ्तों के अंदर अबॉर्शन की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है, लेकिन इसके लिए कुछ निश्चित स्थितियां बताई गई हैं, मसलन गर्भनिरोधक का फेल हो जाना या फिर रेप के कारण होने वाली प्रेगनेंसी। अगर प्रेगनेंसी के कारण महिला की मानसिक या शारीरिक स्थिति बिगड़ने का अंदेशा हो या फिर यह उसके जीवन के लिए घातक हो तो भी अबॉर्शन कराया जा सकता है।
एमटीपी के तहत आने वाली कुछ धाराओं का दूसरे कानूनों से टकराव भी होता है जैसे कि प्रोटेक्सन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेस (पॉक्सो) एक्ट, 2012 के साथ। पॉक्सो के तहत 18 से कम उम्र की गर्भवती को रेप सर्वाइवर माना जाता है और ऐसी प्रेगनेंसी को मेडिकल सर्विस प्रोवाइडर की तरफ से पुलिस में रिपोर्ट करना होता है। इसका नतीजा यह होता है कि लड़किया कानूनी अबॉर्शन प्रोवाइडर्स की सेवाएं लेने से कतराती हैं।
अबॉर्शन या तो दवाइयों के जरिए किया जाता है या फिर इसके लिए सर्जरी का सहारा लिया जाता है। सर्जरी के जरिए अबॉर्शन कराने की तुलना में सक्शन कटरेज, वैक्यूम एस्पिरेशन या फिर मेडिकली इंड्यूस्ड अबॉर्शन ज्यादा सुरक्षित माने जाते हैं। गायनेकॉलॉजिस्ट प्रेगनेंसी की शुरुआती स्टेज में अबॉर्शन पिल देने की प्रक्रिया अपनाती हैं। यह प्रक्रिया हैवी पीरियड्स आने से मिलती-जुलती होती है।
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