कोई भी रिश्ता बिना एडजस्टमेंट के सक्सेसफुल नहीं होता। भले ही दो लोग एक-दूसरे से कितना भी प्यार करते हों, लेकिन जब वो लोग एक साथ रहने लगते हैं, तो उन्हें एक-दूसरे के स्वभाव, आदतों व इच्छाओं के साथ एडजस्ट करना ही पड़ता है और इसमें कोई बुराई भी नहीं है। कहा भी जाता है कि फलों से लदा पेड़ ही झुकता है। झुकना आपके कमतर होने की निशानी नहीं है। अमूमन ऐसा देखा जाता है कि एक रिलेशन में लड़की अधिक एडजस्ट करती है। हालांकि आप अपने जीवन में किसी भी चीज को लेकर समझौता कर लें, लेकिन अपने आत्मसम्मान को हमेशा कायम रखना चाहिए, क्योंकि जब आप अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता कर लेती हैं तो आपके भीतर की स्त्री कहीं मर जाती है। इतना ही नहीं, आत्मसम्मान के साथ समझौता करने से आप उस समय स्थिति को संभाल लें, लेकिन आगे चलकर आप अपने रिश्ते से खुद को कहीं अनुपस्थित पाती हैं। धीरे-धीरे आप आत्मसम्मान के साथ-साथ आत्मनिर्भरता, प्यार व महत्ता सब कुछ खो देती हैं। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि आप रिश्ते में किसी भी परिस्थिति में अपने आत्म-सम्मान के साथ समझौता ना करें। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि एक रिश्ते में आत्म-सम्मान इतना जरूरी क्यों है-
आपको चाहे यकीन हो ना हो, लेकिन आत्म-सम्मान के बिना रिश्ते में अहमियत कम हो जाती है। किसी भी तरह का निर्णय लेने से पहले ना ही कोई आपसे पूछना जरूरी समझेगा और ना ही आपकी खुशियों को कोई महत्व दिया जाएगा। चूंकि आप अपने रिश्ते में आत्म-सम्मान खो चुकी हैं, इसलिए आपका पार्टनर यह मान लेगा कि वह जो भी फैसला आप पर थोपेगा, आप उसे चुपचाप बिना कोई सवाल किए मान लेंगी।
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रिश्ते में अगर स्त्री का आत्मसम्मान ना हो तो इससे वह निराशा व अंधकार के साए में जीवन बसर करती है। दरअसल, वह रिश्ते में अपनी identity ही ढूंढती रहती है और ऐसा ना होने की स्थिति में वह या तो बेहद निराश व उदास हो जाती है या फिर उस निराशा से बाहर निकलने के लिए वह बुरी आदतों को अपनाने में भी नहीं झिझकती। शराब पीना, नशा करना, अधिक खाना-पीना, खुद को नुकसान पहुंचाकर या फिर अपने शरीर को दंडित करके वह उस अंधकार से कुछ पल के लिए बाहर निकलना चाहती है।
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रिश्ते में जब स्त्री अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता कर लेती है तो उसकी आत्मनिर्भरता भी कहीं खो जाती है। इस स्थिति में स्त्री सिर्फ अपने रिश्ते में ही नहीं, बल्कि अपने जीवन के हर फैसले के लिए भी अपने साथी पर निर्भर हो जाती है। उसकी निर्भरता इस हद तक बढ़ जाती है कि वह अपने पार्टनर से बिना कोई सवाल किए या कुछ भी जाने बिना उसका हर फैसला चुपचाप मान लेती है।
जब एक स्त्री अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता करती है तो उसे खुद में एक हीनभावना का अहसास होने लगता है और वह अपने पार्टनर को खुद से कहीं गुना बेहतर मानती है। इतना ही नहीं, उसके व्यवहार व कार्यों से उसके पार्टनर को भी यही अहसास होता है कि वह स्त्री से कहीं अधिक बेहतर है। इस तरह वह स्त्री के लिए कोई भी कार्य एक अहसान के रूप में करता है। उसका प्यार व केयर एक अहसान बन जाता है। वहीं दूसरी ओर, सिर्फ उसका पार्टनर ही नहीं, बल्कि घर का कोई भी सदस्य महिला की खुशियों या उसकी इच्छाओं पर ध्यान ही देते।
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