'छोड़ेंगे ना हम तेरा साथ ओ साथी मरते दम तक' जैसे गाने भारतीय की पारंपरिक संस्कृति की झलक पेश करते हैं, जिसमें एक साथी के साथ जिंदगी भर का साथ निभाने का वादा किया जाता है। भारतीय परंपरा में एक बार अपना साथी चुन लेने के बाद हर कीमत पर उसके साथ रहने की ही बात होती है, उसे छोड़ देने या हर कुछ समय बाद अलग-अलग लोगों से रिलेशनशिप बनाने या फिर एक साथ कई लोगों से रिलेशनशिप बनाने जैसी बातें कतई नहीं होतीं और ना ही समाजिक तौर पर इसकी स्वीकार्यता है, लेकिन आज के बदलते दौर में रिश्ते पहले की तरह नहीं टिकते।
ओपन रिलेशनशिप में कपल महसूस कर रहे हैं संतुष्टि
देखने में आता है कि ज्यादातर कपल्स कुछ साल साथ रहने के बाद एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। रिलेशनशिप्स में कई तरह के प्रयोगों के बीच आजकल ओपन रिलेशनशिप का भी चलन है, जिसमें कपल एक दूसरे के साथ बने रहने के अलावा दूसरी फिजिकल या रोमांटिक रिलेशनशिप में भी इन्वॉल्व होते हैं। एक नई स्टडी में यह बात सामने आई है कि ओपन रिलेशनशिप्स में भी कपल्स उसी तरह खुशी महसूस कर रहे हैं, जिस तरह एक-दूसरे के लिए कमिटेड कपल्स खुशी महसूस करते हैं। इस स्टडी की लीड ऑथर जेसिका वुड का कहना है, 'हमने पाया कि सहमति से बने ऐसे रिलेशनशिप्स, जिसमें कपल्स अपने रिश्ते से बाहर भी रिलेशनशिप बनाने के लिए स्वतंत्र थे, में संतुष्टि और मानसिक स्थिरता का भाव उसी तरह था, जैसे कि कमिटेड रिलेशनशिप में देखा जाता है। हालांकि इस तरह की रिलेशनशिप को लेकर लोगों के मन में कई तरह की शंकाएं हैं।'
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रिलेशनशिप स्ट्रक्चर से खुशी का नहीं चलता पता
वुड की स्टडी इस बात की तरफ भी संकेत करती है कि रिलेशनशिप स्ट्रक्चर नहीं, बल्कि सेक्शुअल मोटिवेशन भी रिलेशनशिप में मायने रखता है। इस रिसर्च से यह बात सामने आई है कि रिलेशनशिप स्ट्रक्टर से इस बात का पता नहीं चलता कि कपल अपनी प्राइमरी रिलेशनशिप में कितना खुश या संतुष्ट है। यानी अगर पति-पत्नी सालों से एक-दूसरे के साथ रह रहे हैं तो भी जरूरी नहीं कि वे एक दूसरे से संतुष्ट ही हों।
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