एक मां के लिए अपने बच्चे से ज्यादा जरूरी कुछ नहीं होता। एक मां अपने बच्चे के लिए कुछ भी कर गुजरती है। यह सच है, लेकिन एक मां की अपनी अलग पहचान भी होती है। मां की जिंदगी में बहुत सारी चीजें होती हैं और वो सिर्फ एक मां नहीं होती।
हरजिंदगी अपनी स्पेशल The Good Mother Series के तहत ऐसी महिलाओं का सम्मान कर रही है जो एक मां भी हैं और अपनी उम्मीदों और सपनों को जीने का जज्बा भी रखती हैं। आमतौर पर लोग ऐसी मां को अच्छी मां ना होने का ताना सुनाते हैं। हमारे मुताबिक वो एक बहुत अच्छी मां है। मां का अर्थ सिर्फ त्याग ही नहीं होता है। इसी कड़ी में हम आपको ऐसी बेमिसाल महिलाओं से मिलवाने जा रहे हैं।
आज हम जिस महिला का जिक्र कर रहे हैं वह ना सिर्फ अपने घर की हीरो है, बल्कि वह महाराष्ट्र के कई परिवारों के लिए चैम्पियन भी है। प्राजक्ता ने पुणे के प्राइवेट स्कूल्स में बढ़ रही फीस के खिलाफ मोर्चा निकाल चुकी हैं। उन्होंने कई सालों तक संघर्ष किया और आखिर में बड़े इंटरनेशनल स्कूलों को अपने घुटनों पर ला दिया। प्राजक्ता एजुकेशनल राइट्स के लिए 2015 से लड़ रही हैं। प्राजक्ता की जिंदगी हमेशा स्ट्रगल से भरी रही है। एक गरीब घर से ताल्लुक रखने वाली प्राजक्ता ने हमेशा लड़ना सीखा है। उन्होंने 2006 में इंटर रिलीजन मैरिज की थी। जिसके बाद उनके ससुराल वालों ने उन्हें कुछ सालों तक एक्सेप्ट नहीं किया था। प्राजक्ता को बेटा होने के बाद भी उन्हें ससुराल से अप्रूवल नहीं मिला था। पर उनका असली संघर्ष शुरू हुआ ‘सरकारी लड़ाई’ से।
इसे जरूर पढ़ें- संघर्षों को पीछे छोड़ हासिल किया बड़ा मुकाम, पद्म भूषण से सम्मानित सुधा मूर्ति की कहानी
प्रेग्नेंसी में काटे सरकारी ऑफिस के चक्कर और झेला लाठीचार्ज
मदर्स डे के अवसर पर हरजिंदगी से बात करते हुए प्राजक्ता ने बताया, "प्रेग्नेंट बेली लेकर मैं एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस चक्कर काटती थी। उस समय कोर्ट, पुलिस स्टेशन, सरकारी ऑफिस के चक्कर काटते समय ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ता था जहां दिन-दिन भर मैं खड़ी रहती थी। एक बार तो प्रेग्नेंसी में ही लाठीचार्ज का सामना भी किया। मैंने अपने साथ कई माता-पिता को इस संघर्ष में जोड़ा था, लेकिन उनमें से कई लीगल सिस्टम के पचड़े के कारण पीछे हट गए। 2016 में डिलीवरी के बाद मैं अपने छोटे बेटे को कई बार घर पर छोड़कर चली जाती थी।"
"उस दौरान पड़ोसी, रिश्तेदार, दोस्त मुझे ताने मारते थे। मुझे कहा जाता था कि मैं हीरोइन बनने की कोशिश कर रही हूं और अच्छी मां नहीं हूं। मैं अपने ईगो के कारण अपने बच्चों को छोड़कर सरकारी लड़ाई लड़ रही हूं। मैं सोशल वर्कर बनने के चक्कर में अपने बच्चों को छोड़ रही हूं, जैसी कई बातें मैंने सुनीं। पर ये ईगो की बात नहीं थी, मैं एजुकेशन राइट्स के लिए लड़ रही थी। हर साल स्कूल वाले 20 हजार से लेकर 1 लाख तक फीस बढ़ा रहे थे, जिसका कोई बाइफरकेशन नहीं था। मेरे बेटे को इस विरोध के चक्कर में स्कूल से भी निकाल दिया गया था। मेरा परिवार भी मेरे खिलाफ हो गया था। आखिर मैं इतने संघर्ष के बाद ये कह सकती हूं कि मैं एक अच्छी मां हूं।"
हरजिंदगी से बात करते हुए प्राजक्ता ने अपनी बात रखी।
1. आप खुद को कैसे डिफाइन करेंगी?
"मैं खुद को डिफाइन करना बेहतर समझूंगी। लोग क्या डिफाइन करते हैं उससे मतलब नहीं। मैं एक वॉरियर हूं और कभी अपनी लड़ाई नहीं छोड़ूंगी।"
2. आपके सबसे मुश्किल चैलेंज क्या रहे हैं?
"मैं वैसे तो कई चैलेंज झेल चुकी हूं, लेकिन सबसे मुश्किल था विधान भवन मुंबई के सामने 1000 पुलिस वालों से लाठी चार्ज झेलना। मैं एजुकेशनल राइट्स के लिए लड़ रही थी।"
3. आपके सामने सबसे बड़ी आलोचनाएं क्या थीं और वे कितनी क्रूर थीं?
"ऐसे कई लोग होते हैं जो इज्जत से लड़ते हैं, लेकिन कुछ ऐसे अपोनेंट्स भी थे जिन्होंने मेरी इज्जत उछालने की कोशिश की। आलोचनाएं हमेशा क्रूर रही हैं और मुझे लगता है कि इनकी वजह से आप आगे बढ़ते हैं।"
4. एक मां, गृहिणी और व्यवसायी महिला के रूप में आप खुद को कैसे रेट करेंगी?
"मैं खुद को एक परफेक्ट मां, पत्नी या करियर वुमन नहीं मानती। मैं एक मल्टीटास्कर हूं जो हमेशा हर रोल थोड़ा-थोड़ा निभाने में यकीन करती है। मैं हर रोल को बखूबी निभाती हूं और मानती हूं कि आप हर किसी को खुश नहीं रख सकती हैं। आपको सबकी जरूरतों का ध्यान रखना अच्छा लगता है, लेकिन आपको इस बात को समझना होगा कि सबको खुश रखना एक इंसान के लिए मुमकिन नहीं है।"
5. तीन खूबियां जो एक महिला को सफल होने के लिए चाहिए?
"1. खुद पर भरोसा करें, 2. ईमानदारी से काम करें, 3. सही चीज करने के लिए सही समय चुनें।"
इसे जरूर पढ़ें- HZ Flag Bearer: 24 में बच्चा गोद लेने से लेकर सिंगल मदरहुड एन्जॉय करने तक, अपने यूनिवर्स की बॉस हैं सुष्मिता सेन
6. क्या आपको कभी मॉम गिल्ट फेस करना पड़ा है? उससे निपटने का क्या तरीका है?
"जब एक महिला काम करती है और कुछ पाना चाहती है, तब बहुत से लोग उसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं। उसे इगोइस्टिक कहते हैं, उसे गिल्टी फील करवाने की कोशिश करते हैं। पर कई बार आपको अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है। मॉम गिल्ट कभी-कभी आता है, लेकिन आप खुद से सोचिए कि जो आप कर रही हैं वो सही है या नहीं।"
7. जब आप मां का टॉक्सिक महिमामंडन देखती हैं, जो सब कुछ मैनेज कर सकती है, क्या आपको लगता है कि ये सभी महिलाओं पर एक अनहेल्दी प्रेशर डाल रहा है?
"मैं बहुत प्रेशर फील करती हूं और हर तरफ से मुझे ऐसा महसूस होता है कि कुछ अलग हो रहा है। हां, मैं मानती हूं कि मां की एक टॉक्सिक परिभाषा भी बना दी गई है। मां को महान होना पड़ेगा, उसकी पहचान पहले मां है, एक औरत मां बनकर ही पूरी होती है जैसी परिभाषा असल में बहुत प्रेशर डालती है। आपको ऐसा लगता है कि अरे आप तो अपने बच्चे के बहुत जरूरी दिनों को मिस कर रही हैं, लेकिन मैं कोशिश करती हूं कि हर उस पल को एन्जॉय करूं जो मैं बच्चों के साथ बिता रही हूं।"
प्राजक्ता का मानना है कि एक मां बच्चों के लिए बहुत कुछ कर सकती है। वही उदाहरण सेट कर सकती है। मां के लिए घर पर बैठकर बच्चों की सेवा करना ही मातृत्व नहीं होता। बच्चों पर ध्यान देने के साथ-साथ एक मां को वह करना चाहिए जिससे उसकी खुशी और समाज की भलाई जुड़ी हुई हो। उन्होंने ये लड़ाई अपने बच्चे के लिए शुरू की थी, लेकिन महाराष्ट्र के कई गरीब बच्चों की दुआएं मिल गईं।
मदर्स डे 2023 के बारे में और पढ़ें:
अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों