मराठा साम्राज्य के मजबूत स्तंभ होते थे 'छत्रपति' और 'पेशवा', क्या आपको पता है दोनों में क्या अंतर था और किसके पास थी ज्यादा ताकत?

मराठा साम्राज्य का इतिहास बहुत पुराना है। लेकिन, फिल्म 'छावा' के बाद मराठा साम्राज्य, मराठा और मुगलों की लड़ाई और इनका इतिहास चर्चा में बना हुआ है। मराठा साम्राज्य की नींव छत्रपति शिवाजी ने रखी थी और कई मराठा योद्धा ऐसे हुए, जिनकी वीरता के किस्से आज भी कहे जाते हैं।  'छत्रपति' और 'पेशवा' इस साम्राज्य के मजबूत स्तंभ थे। क्या आपको दोनों के बीच का अंतर पता है?
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मराठा साम्राज्य का इतिहास बहुत पुराना है। लेकिन, फिल्म 'छावा' के बाद मराठा साम्राज्य, मराठा और मुगलों की लड़ाई और इनका इतिहास चर्चा में बना हुआ है। मराठा साम्राज्य की नींव छत्रपति शिवाजी ने रखी थी और यह फिल्म उनके बेटे संभाजी महाराज यानी 'छावा' की जिंदगी के इर्द-गिर्द बुनी गई थी। छत्रपति शिवाजी के स्वराज्य के सपने को उनके पुत्र संभाजी महाराज ने वीरता से आगे बढ़ाया और मुगलों को टक्कर दी। मराठा और मुगलों के बीच कई युद्ध लड़े गए। सिर्फ छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके पुत्र संभाजी महाराज ही नहीं, बल्कि उनके बाद और भी कई मराठा योद्धा हुए। पेशवा बाजीराव की वीरता के चर्चे भी अक्सर किए जाते हैं। छत्रपति और पेशवा दोनों ही मराठा साम्राज्य के मजबूत स्तंभ होते थे। क्या आपको पता है दोनों में क्या अंतर था और किसके पास ज्यादा ताकत थी। चलिए, जानते हैं।

छत्रपति और पेशवा कौन होते थे?

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साल 1674 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी और राज्याभिषेक के बाद खुद को 'छत्रपति' घोषित किया था। उनके बाद उनके पुत्र संभाजी महाराज को यह उपाधि मिली। जब मराठा साम्राज्य की नींव रखी गई, तो छत्रपति को राजाओं का राजा कहा जाता था और यह मराठा साम्राज्य का सबसे ऊंचा पद था। शिवाजी के बाद कई पीढ़ियों तक इनके वंशजों ने इस पद को संभाला। छत्रपति के बाद जो साम्राज्य का सबसे ताकतवर मंत्री होता था, उसे पेशवा कहा जाता था। यह राजा के बाद सबसे बड़ा पद था। लेकिन, धीरे-धीरे पेशवा के हाथ में ही सारी ताकत आ गई। पेशवा बाजीराव प्रथम यानी श्रीमंत पेशवा बाजीराव बल्लाड़ भट्ट मराठा साम्राज्य के चौथे छत्रपति शाहूजी महाराज के पेशवा थे और उन्होंने अपनी युद्ध नीति और कौशल से कई युद्ध जीते थे। उस समय पर पेशवा के पास ही सारी ताकत आ चुकी है।

छत्रपति और पेशवा में क्या अंतर था?

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इतिहासकार बताते हैं कि छत्रपति की गद्दी शिवाजी महाराज के वंशजों की मिलती थी। लेकिन, पेशवा एक पद था, जिन्हें नियुक्त किया जाता था। लेकिन, बाद में छत्रपति सिर्फ नाम के शासक रह गए थे और पूरी ताकत पेशवा के हाथ में आ गई थी।

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