फिल्मों और सीरियल्स में काफी कुछ ऐसा दिखाया जाता है, जो हमारी जिंदगी से जुड़ा होता है। कुछ फिल्मी डायलॉग्स भी हमारी यादों में बिल्कुल ताजा बने रहते हैं। बेशक, कई बार ये किरदार और कहानियां बिल्कुल काल्पनिक होती हैं। लेकिन, कई बार, कहीं न कहीं, हमारी जिंदगी से इनका गहरा रिश्ता बन जाता है। इसलिए तो जब फिल्मी मां के किरदार की बात चलती है, तो हमें फरीदा जलाल, रीमा लागू और राखी के निभाए, मां के किरदार नजर आने लगते हैं। ये किरदार, हमारे दिल में इतने घर कर गए हैं कि इनसे हम खुद को जुड़ा हुआ महसूस करते हैं।
बदलते वक्त के साथ असल जिंदगी से लेकर, फिल्मों और टीवी में भी 'मां' के बदलते किरदार को दिखाया है। यहां हम आपको CINEMAA में 'मां' के कुछ ऐसे किरदारों के बारे में बता रहे हैं, जिनसे आप काफी कुछ सीख सकते हैं।
वक्त के साथ बदलना
फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' में फरीदा जलाल ने काजोल की मां का किरदार निभाया था। यूं तो यह किरदार पूरी फिल्म में शांत और चीजों के साथ समझौता करने वाला दिखाया गया था। फिल्म के एक हिस्से में फरीदा जलाल, काजोल को अपने प्यार को भूलकर, परिवार की इज्जत के लिए, त्याग करने की कहती हैं। वह उसे समझाती हैं कि लड़की होने के नाते, उसे जिंदगी में कई कुर्बानियां देनी होंगी। लेकिन, बाद में, अपनी बेटी की खुशी के लिए, वह वक्त के साथ बदलती हैं। समाज की सोच और बंदिशों को दरकिनार करते हुए, वह काजोल यानी सिमरन को अपने प्यार के साथ जिंदगी जीने की सलाह देती हैं।
बहादुरी से जिंदगी जीना
फिल्मों और सीरियल्स में मां की भूमिका आजकल काफी बदली है। अब फिल्मों में मां को बेचारी नहीं, बल्कि सशक्त किरदार में दिखाया जाता है। फिल्म 'मिमी' में मिमी का किरदार कुछ ऐसा ही है। मिमी एक सेरोगेट मदर बनती हैं। लेकिन, जब फिरंगी कपल अपने बच्चे को लेने से मना कर देता है, तो मिमी हिम्मत नहीं हारती है। मिमी के किरदार से यही बात सीखने जैसी है। जिंदगी में मुश्किल आने पर, हार नहीं माननी चाहिए। कई बार जिंदगी हमें उन रास्तों पर ले जाती है, जो हमारी पसंद के नहीं होते हैं। लेकिन, मुश्किलों का डटकर मुकाबला करना ही जिंदगी है।
बर्दाश्त से बाहर होने पर चुप्पी तोड़ देना
फिल्म 'कभी खुशी कभी गम' में जया बच्चन के किरदार को एक आदर्श बीवी के तौर पर दिखाया गया था, जो अपनी पति की हर बात को सिर झुकाकर मान लेती हैं। वह अपने बेटे राहुल का साथ देना चाहती हैं। लेकिन, अंत में, जब उसके बर्दाश्त का बांध टूटता है, तो वह खुलकर न केवल अपने बेटे के लिए, बल्कि खुद के लिए भी स्टैंड लेती हैं और अपने पति को गलत ठहराती हैं। हालांकि, यह और बात है कि फिल्म में जया बच्चन के किरदार को लंबे वक्त तक चुप रहते हुए दिखाया गया है। पर बाद में उनके किरदार ने इस बात की प्रूफ कर दिया कि 'देर आए...दुरुस्त आए।'
बेटी से खुलकर हर मुद्दे पर बात करना
आपने फिल्म खूबसूरत देखी है! इसमें सोनम कपूर और किरण खेर को मां-बेटी के तौर पर दिखाया गया है। फिल्म में दोनों के बीच गहरा रिश्ता है। यह रिश्ता टिपिकल मां-बेटी का नहीं, बल्कि, दोस्त का है। दोनों के बीच गहरी दोस्ती है और बेझिझक सोनम, फिल्म में अपनी मां के किरदार से हर बात खुलकर कहती है। इस किरदार से यह सीखा जा सकता है कि एक उम्र के बाद मां को बेटी का दोस्त बनना चाहिए। डांट, रोक-टोक और सीखना-समझाना अपनी जगह सही है। लेकिन, बेटी से रिश्ता गहरा करने के लिए, उसकी दोस्त बनना जरूरी है।
गलत के खिलाफ लड़ना
'मातृ' फिल्म में मुख्य किरदार रवीना टंडन ने निभाया है। रवीना का यह किरदार हमें, गलत के खिलाफ लड़ना सिखाता है। फिल्म में दिखाया गया है कि रवीना की बेटी का रेप हो जाता है और बाद में उसकी मौत हो जाती है। लेकिन, रवीना टूटती नहीं हैं, बल्कि, मजबूती से सिस्टम से और दुनिया से लड़कर अपनी बेटी को इंसाफ दिलाती हैं। यह कहानी बेशक काल्पनिक है। पर इससे यह सीखा जा सकता है कि गलत के सामन झुकना नहीं चाहिए, बल्कि, गलत के खिलाफ लड़ना चाहिए।
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