किसान की बेटी जिसने एशियाई खेलों में पदक की अपनी राह बनाई

एक गरीब परिवार की बेटी कैसे दौड़ में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपना पहचान बनाती है उसका उदाहरण है ललिता बाबर 

lalita babar farmer daughter

अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपने देश के लिए अपनी पहचान बनाने का गौरव कौन नहीं करना चाहता है। हर खिलाड़ी चाहता और चाहती है कि मैं भी अपना और अपने देश का नाम अंतराष्ट्रीय स्तर पर रोशन करू। खिलाड़ी का प्रयास रहता है कि हर वक्त अपने देश के लिए समर्पित रहू। एक समय खेल के फील्ड में पुरुषों का दबदबा था लेकिन दूसरी तरफ महिला खिलाड़ी भी इससे पीछे नहीं हटी। एक खिलाड़ी की पहचान तब मिलाती जब उसने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन किया हो। लेकिन खुशी और दोगुनी हो जाती है जब किसी गरीब परिवार की बेटी खेल के फील्ड में देश के सभी बेटियों के लिए रोल मॉडल बन जाए। महाराष्ट्र की बेटी ललिता बाबर की कहानी कुछ ऐसी ही जिन्होंने Long Distance Runing से अपने साथ देश का भी नाम रोशन किया है। तो चलिए जानते हैं उनके बारे में और अधिक-

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ललिता बाबर-

lalita babar farmer daughter to asian games medal inside one

ललिता बाबर भारत की Long Distance Runing खिलाड़ी है। उनका जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिला में 2 जून 1989 को एक गरीब परिवार में हुआ था। जन्म के कुछ सालों बाद से ही ललिता दौड़ में भाग लिया करती थी। आज वो 3000 मीटर्स steeplechase दौड़ की विजेता है और एशियाई चैम्पियन की भी विजेता है। महिलाएं अक्सर सोचती है कि क्या मुझे ये कम करना चाहिए या नहीं। तो आपके जानकारी के लिए बता दे कि ललिता बाबर 33 साल की जिन्होंने ये उपलब्धि हासिल किया है। ललिता सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा की श्रोत है।

दक्षिण कोरिया में-

lalita babar farmer daughter to asian games medal inside two

रैंकिंग में उनका असली पल 2014 में दक्षिण कोरिया के इंचियोन में एशियाई खेलों में आया था, जब उन्होंने फाइनल में कांस्य पदक जीता। इस दौड़ में धावक सुधा सिंह द्वारा बनाए गए राष्ट्रीय रिकॉर्ड को तोड़ दिया। ललिता बाबर ने एथलेटिक्स में अपने करियर की शुरुआत कम उम्र में लंबी दूरी की धावक के रूप में की थी। उन्होंने 2005 में पुणे में अंडर-20 राष्ट्रीय चैंपियनशिप में अपना पहला स्वर्ण पदक जीता था। ललिता बाबर ने रियो समर ओलंपिक के फाइनल के लिए क्वालिफाई किया और ट्रैक इवेंट के फाइनल में प्रवेश करने वाली पहली भारतीय बनी।

पी.टी उषा-

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पी.टी उषा को भला कौन भूल सकता है। रनिंग की बात हो और भारत की महान धाविका पी.टी.उषा का जिक्र ना हो ऐसा नहीं हो सकता है। उषा ऐसी पहली महिला एथलेटिक्स थी जिन्होनें अन्तराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन किया था। समय-समय पर भारत ने एक ऐसी बेटी को जन्म दिया है जिन्होंने खेल के फील्ड में बखूबी नाम कमाया है। पी.टी.उषा उसी लिस्ट में से एक है।

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हेमा दास-

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हाल में ही एक गरीब परिवार की बेटी हेमा दास ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर खूब नाम कमाया है। दौड़ के फ़ील्ड में हेमा दास ने लगातार 5 अंतर्राष्ट्रीय मेडल जीत कर ये साबित कर दिया कि अगर कुछ करने की लगन और चाह हो तो मंजिल जरूर मिलती है। एक गरीब परिवार की बेटी कैसे अपनी पहचान खेल के फील्ड बनती उसका जीता-जगता उदहारण हेमा दास है।

समय-समय पर खेल के मैदान से कुछ ऐसी महिला खिलाड़ी निकले हैं जो हमेशा से देश के बेटियों के लिए मार्ग दर्शक रहे हैं। मिताली राज, पी.वी सिन्धु, सानिया मिर्जा, साईना नेहवाल ये वो महिला खिलाड़ी है जिन्होंने भारत के करोड़ों महिलाओं के लिए प्रेरणा का श्रोत रही है। इन सभी ने अपना और अपने देश का नाम अंतराष्ट्रीय मंच पर रोशन किया है। ललिता बाबर भी उन्हीं में से एक ऐसी महिला खिलाड़ी जिन्होंने ये सम्मान हासिल किया है।

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