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समुद्र की गोद में समा जाता है भारत का यह अनोखा शिव मंदिर, जानिए इसके बारे में कुछ खास बातें

स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर गुजरात की राजधानी गांधीनगर से लगभग 175 किमी दूर जंबूसर के कावी कंबोई गांव में मौजूद है। यह शिव मंदिर बेहद अनोखा है क्योंकि यह समुद्र की गोद में समा जाता है।&nbsp; <div>&nbsp;</div>
Editorial
Updated:- 2024-04-16, 18:48 IST

आपने आज तक कई सारे अनोखे मंदिरों के बारे में सुना होगा। लेकिन आज हम जिस मंदिर के बारे में बताएंगे, उसके बारे में सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। मंदिर 150 साल पुराना है, जो अरब सागर और खंभात की खाड़ी से घिरा हुआ है। इस मंदिर की महिमा देखने के लिए यहां सुबह से लेकर रात तक लोग रुके रहते हैं। चलिए आपको बताते हैं कि यह मंदिर क्यों बहुत खास है। 

क्या है स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर के पीछे की कहानी? 

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शिवपुराण के अनुसार, ताड़कासुर नाम के असुर ने भगवान शिव को अपनी तपस्या से खुश कर दिया था, इसके बदले में शिव ने उसे मन चाहा वरदान दिया था। वरदान यह था कि उस असुर को शिव पुत्र के अलावा और कोई नहीं मार सकता था और पुत्र की आयु भी 6 दिन की ही होनी चाहिए। वरदान मिलने के बाद, ताड़कासुर ने हर तरफ लोगों को परेशान करना और उन्हें मारना शुरू कर दिया और यह सब देखकर देवताओं और ऋषि मुनियों ने शिव जी से उसका वध करने की प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना सुनने के बाद श्वेत पर्वत कुंड से 6 दिन के कार्तिकेय ने जन्म लिया। असुर का वध कार्तिकेय ने कर तो दिया, लेकिन शिव जी भक्त की जानकारी मिलने के बाद उन्हें बेहद दुख पहुंचा। 

कार्तिकेय को जब इस बात का एहसास हुआ, तो भगवान विष्णु ने उन्हें प्रायश्चित करने का मौका दिया और विष्णु भगवान ने उन्हें सुझाव दिया कि जहां उन्होंने असुर का वध किया है, वहां वो शिवलिंग की स्थापना करें। इस तरह इस मंदिर को बाद में स्तंभेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाने लगा।

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स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर क्यों डूब समुद्र की गोद में समा जाता है? 

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यह मंदिर पानी में पूरी तरह से डूब जाता है और इसके पीछे का कारण प्राकृतिक है और पूरे दिन में समुद्र का स्तर इतना बढ़ जाता है कि मंदिर पूरी तरह से डूब जाता है और फिर पानी का स्तर कम होने के बाद यह मंदिर फिर से दिखाई देने लगता है। ऐसा सुबह शाम दो बार होता है और लोगों द्वारा इसे शिव का अभिषेक माना जाता है। इस मंदिर में शिव जी के दर्शन करने के लिए हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं।

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