इस मंदिर से जुड़ी कई कहानियां हैं, यहां भगवान कृष्ण की पूजा सुदामा के साथ की जाती है। मतलब इस मंदिर में भगवान कृष्ण को राधा के साथ नहीं बल्कि सुदामा के साथ पूजा जाता है। जन्माष्टमी है और ऐसे में ये मंदिर फूलों से सज जाता है और यहां दर्शन करने के लिए हजारों मीलों से लोग आते हैं। जन्माष्टमी के मौके पर इस मंदिर की रौनक देखने वाली होती है। सबसे ज्यादा प्रसिद्धी इसलिए ही है क्योंकि ये अपनी तरह का अनूठा मंदिर है।
ऐसा कहा जाता है कि कृष्ण-सुदामा की दोस्ती उज्जैन में ही हुई थी। यहां से 31 किलोमीटर महिदपुर तहसील में नारायणधाम मंदिर स्थित है, यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां कृष्ण के साथ सुदामा मौजूद है।
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सुदामा ने खाएं थे भगवान कृष्ण से छिपाकर चने
यहां आपको बता दें कि नारायणधाम मंदिर कृष्ण और सुदामा की बालसखा को समर्पित है। यहां पर सुदामा ने कृष्ण से छिपाकर चने खाए थे जिस पर गुरू मां ने इन्हें दरिद्रता का श्राप दे दिया था। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं।
शास्त्रों के अनुसार एक दिन गुरू माता ने श्रीकृष्ण और सुदामा को लकड़ियां लाने के लिए भेजा। आश्रम लौटते समय तेज बारिश शुरू हो गई और श्रीकृष्ण-सुदामा ने एक स्थान पर रुक कर आराम किया।
ऐसी मान्यता है कि नारायण धाम वही स्थान है जहां भगवान कृष्ण और सुदामा बारिश से बचने के लिए रुके थे।
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भगवानकृष्ण और सुदामा की मित्रता का सबूत हैं पेड़
भगवान कृष्ण और सुदामा की मित्रता का प्रमाण नारायण धाम मंदिर में स्थित पेड़ों के रूप में आज भी देखा जा सकता है। इस मंदिर में दोनों ओर स्थित हरे-भरे पेड़ों के बारे में ऐसा कहा जाता है कि ये पेड़ उन्हीं लकड़ियों के फले-फूले हैं जो श्रीकृष्ण व सुदामा ने एकत्रित की थी। इस मंदिर में आने का अपना अलग महत्व रहेगा। यहां आकर आप बोर नहीं होंगे और उज्जैन ट्रिप से थोड़ा सा समय निकाल कर यहां घूमा जा सकता है। क्योंकि यहां शांति रहती है इसलिए कई लोगों को ये जगह बहुत पसंद आ सकती है।
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