आगरा की जामा मस्जिद में छुपी है कुछ अनोखी बातें, जानें महत्व

आपने दिल्ली की जामा मस्जिद के बारे में सुना होगा। पर आज हम आपको आगरा की जामा मस्जिद और इसके रोचक इतिहास रूबरू कराएंगे, जिसके बारे में आपको जरूर जानना चाहिए। 

 
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दुनिया के सात अजूबों में शामिल ताजमहल आगरा में स्थित है। इसलिए आगरा भारत का एक ऐसा राज्य है जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध है क्योंकि ताजमहल की खूबसूरत कलाकृति को देखने के लिए देश-विदेश से लोग यहां पर आते हैं। वैसे तो आगरा में ताजमहल के अलावा कई ऐसे दर्शनीय स्थल मौजूद हैं, जहां पर पर्यटक इतिहास से रूबरू हो सकते हैं।

वैसे तो आगरा में किला, खासमहल, पंचमहल, जहांगीर महल, अंगूरी बाग, मेहताब बाग और फतेहपुर सीकरी आदि जगहों पर जाने का प्लान बना सकते हैं। पर क्या आपको पता है कि ताजमहल के बाद आगरा की मशहूर जगहों में से एक है जामा मस्जिद, दोनों को ही शाहजहां ने बनवाया था। कहा जाता है कि शाहजहां ने ताज को अपनी बेगम मुमताज की याद में और जामा मस्जिद को अपनी बेटी जहांआरा के लिए बनवाया था।

यकीनन आपने ताजमहल की कहानी सुनी होगी, लेकिन क्या जामा मस्जिद के इतिहास के बारे में जानते हैं? अगर नहीं, तो आइए जानते हैं जामा मस्जिद से जुड़े रोचक इतिहास के बारे में।

क्या है आगरा की जामा मस्जिद का इतिहास?

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आगरा की जामा मस्जिद का इतिहास मुगलों से जुड़ा हुआ है। इसे शाहजहां ने अपनी बेटी जहांआरा बेगम के लिए बनवाई थी। इसलिए इस मस्जिद को मस्जिद-ए-जहांनुमा भी कहा जाता है। इसका निर्माण 1648 में किया गया था, जिसे बनाने के लिए कई लाख रुपये खर्च किए गए थे।

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जामा मस्जिद रेड सैंड स्टोन की बनी है और एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। आज आगरा शहर के मध्य में बनी जामा मस्जिद शहर की प्रमुख मस्जिदों में से एक है। यहां ईद की मुख्य नमाज अदा होती है।

मस्जिद की वास्तुकला

इस मस्जिद का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से किया गया है और सफेद संगमरमर से सजाया गया है। मस्जिद की दीवार में प्रयुक्त टाइल्स को ज्यामितीय आकृति से सजाया गया है। इस मस्जिद की लंबाई 130 फुट और चौथाई 100 फुट है। जामा मस्जिद में लकड़ी एवं ईंट का भी प्रयोग किया गया है। (भारत की फेमस मस्जिदें)

ऊंची नींव पर बनी इस मस्जिद में प्रवेश के लिए पांच वक्राकार दरवाजे हैं। इसमें लाल बलुआ पत्थर से बने तीन विशाल गुबंद भी हैं। इसकी दीवार और छत पर नीले रंग के पेंट का प्रयोग किया गया है। कुल मिलाकर यह मस्जिद बेहद खूबसूरत है।

होती है नमाज अदा

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वैसे तो आप इस मस्जिद का दीदार करने के लिए जा सकते हैं। पर यहां नमाज अदा की जाती है, जहां हर शुक्रवार मुस्लिम तबका जमा होता है। ईद या त्यौहार पर तो यहां इतनी भीड़ होती है कि कदम रखने तक की जगह नहीं होती। वैसे तो यह इतनी विशाल है कि यहां एक वक्त पर लगभग 10 हजार से ज्यादा लोग जमा हो सकते हैं। (दुनिया की सबसे पुरानी मस्जिद)

संत शेख सलीम चिश्ती का मकबरा

कहा जाता है कि इस मस्जिद के परिसर में महान सूफी संत शेख सलीम चिश्ती का मकबरा भी मौजूद है। सच्ची आभार और सम्मान का प्रतीक होने के नाते, सम्राट अकबर ने सूफी संत और मस्जिद के सम्मान में एक शानदार शहर को समर्पित किया। सम्राट ने अपनी मृत्यु के बाद लाल बलुआ पत्थर से बना संत का एक शाही कब्र भी बनाई।

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विशाल है जामा मस्जिद का बरामदा

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इस मस्जिद का बरामदा दो तरफा बना हुआ है, जो दिखने में बहुत खूबसूरत है। इस मस्जिद की छत पर तीन गुंबद भी बनाए गए हैं और दरवाजे पर फारसी भाषा में शिलालेख लगा गया है। इसमें आपको प्रमुख जानकारी मिलेगी। बता दें कि यह मस्जिद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित है।

हालांकि, आगरा में लगभग 540 मस्जिदें हैं, पर इस मस्जिद की अलग ही खासियत है जिसे आपको एक बार जरूर देखना चाहिए। अगर आपको यह लेख पसंद आया तो इसे लाइक और शेयर करें और ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए विजिट करें हरजिंदगी।

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