भारत में मुगल काल की नींव सन् 1526 में बाबर ने रखी थी और उनके बाद कई मुगल शासकों ने अपनी नीतियों से इतिहास के पन्नों में अपना एक अलग मुकाम हासिल किया। हालांकि, मुगल काल में बादशाह की हुकूमत का दबदबा कायम रहता था, वहीं महिलाओं ने भी राजनीति में अपनी अहम् भूमिका निभाई।
ऐसी कई मुगल बेगमें व शहजादी हुईं, जिनकी सोच ने सत्ता को बहुत हद तक प्रभावित किया। इनमें से कई मुगल महिलाओं को इतिहास में एक अलग महत्व मिला, वहीं कुछ के नाम धूमिल हो गए। इन्हीं मुगल महिलाओं में से एक थी रोशनआरा। जो औंरगजेब की बहन थी और उसे तख्त तक पहुंचाने में रोशनआरा ने बेहद ही अहम् भूमिका अदा की।
यहां तक कि अपने भाई के हाथों में सत्ता की बागडोर पहुंचाने के लिए वह अपने पिता शाहजहां के खिलाफ ही हो गई-
रोशनआरा का जन्म 3 सितंबर, 1617 में हुआ था। मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में जन्मी रोशनआरा हमेशा से ही अपने भाई औंरगजेब के काफी करीब थी। दरअसल, शाहजहां के दिल के करीब थे उनका बड़ा बेटा दारा शिकोह और बेटी जहांआरा।
शाहजहां हमेशा से चाहते थे कि उनके बाद दारा शिकोह ही तख्त संभाले और बेटी जहांआरा उसका साथ दे। लेकिन बचपन से अपनी बड़ी बहन को अधिक महत्व मिलने के कारण रोशनआरा जहांआरा को पसंद नहीं करती थी। जिसके कारण उसने अपने भाई औंरगजेब का साथ देने का फैसला किया।
जब शाहजहां बढ़ती उम्र के कारण कमजोर होने लगे थे तो उन्हें दारा शिकोह को बादशाह बनाने का फैसला किया। लेकिन उनके इस फैसले के कारण भाइयों के बीच नफरत बढ़ने लगी थी। ऐसे में शाहजहां ने इस मामले को शांत करने के लिए औरंगजेब को दिल्ली बुलाया।
हालांकि, यह वास्तव में एक योजना थी, ताकि औरंगजेब को कैदी बनाकर उसे खत्म किया जा सके और दारा शिकोह को बादशाह बनाया जा सके। लेकिन रोशनआरा ने इस षडयंत्र को पूरी तरह से फेल कर दिया। इस षडयंत्र की जानकारी होने पर उन्होंने संदेश भेजकर औरंगजेब को सावधान किया। जिससे औंरगजेब की जान बच सकी।
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जब भाइयों के बीच सत्ता को लेकर तनातनी चल रही थी तो ऐसे में रोशनआरा ने अपने भाई औंरगजेब का पूरा साथ दिया। दरअसल, आगरा के किले में शाहजहां, जहांआरा और दारा शिकोह के बीच जो भी योजनाएं बनती, उसके बारे में औंरगजेब को पता चल जाता था। दरअसल, सभी खास सूचनाएं रोशनआरा औंरगजेब तक पहुंचाती थी। इन सूचनाओं के कारण ही औंरगजेब को तख्त पर काबिज होने में मदद मिली।
औरंगजेब को बादशाह बनने के बाद भी दारा शिकोह से औंरगजेब और रोशनआरा दोनों को खतरा था। रोशनआरा ऐसी किसी भी योजना को विफल कर देना चाहती थी, जिसमें औंरगजेब को तख्त छोड़ना पड़े। इसलिए रोशनआरा ने औंरगजेब से दारा शिकोह की हत्या करने के लिए कहा और रोशनआरा के कहने पर भी औरंगजेब ने दारा को फांसी देने का आदेश दिया।
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शाहजहां ने बादशाह के पद पर रहते हुए अपनी बड़ी बेटी जहांआरा को पदशाही बेगम और हरम की प्रमुख बनाया था। लेकिन जब औंरगजेब सत्ता में आया तो इससे रोशनआरा का भी कद बढ़ने लगा। जहांआरा को उन सभी पदों से हटाकर रोशनआरा को वह ताकत दी गई।
जिसके कारण रोशनआरा उस समय मुगल काल की सबसे शक्तिशाली बन गई। यहां तक कि रोशनआरा को फरमान और निशान जारी करने का अधिकार भी दिया गया था। रोशनआरा को ना सिर्फ मुगलिया सेना में सबसे बड़ा मनसबदार पद मिला, बल्कि औरंगजेब की अनुपस्थिति में पूरी सेना रोशनआरा के आदेशों का ही पालन करती थी।(मुगल बादशाह अकबर की इन बेगमों के बारे में कितना जानते हैं आप)
रोशनआरा और औंरगजेब दोनों ही एक-दूसरे को काफी पसंद करते थे। लेकिन एक समय ऐसा भी आया, जब इन दोनों भाई-बहनों के रिश्ते में कड़वाहट पैदा हो गई। दरअसल, रोशनआरा के प्रेमियों को औरंगजेब कभी पसंद नहीं करता था। 1662 में जब औरंगजेब बहुत अधिक बीमार हो गया, तो उसने तो रोशनआरा को सत्ता की कमान पूरी तरह से संभालने के लिए दे दी। लेकिन रोशनआरा ने इसका गलत तरीके से इस्तेमाल किया।
उसने ना केवल गलत तरीकों से धन जमा करना शुरू कर दिया, बल्कि औरंगज़ेब द्वारा दी गई शक्तियों और विशेषाधिकारों का खुलकर दुरुपयोग किया। जिसके कारण 1668 में रोशनआरा की सत्ता का पतन हो गया। जिसके बाद औरंगजेब ने रोशनआरा को दरबार छोड़ने के साथ-साथ दिल्ली के बाहर महल में जीवन जीने का आदेश दिया। उन्हें दी गई सभी शक्तियां उनसे वापिस ले ली गई। इसके बाद 54 वर्ष की आयु में रोशनआरा की मौत हो गई।
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Image Credit- harmoniummusicblog, Wikimedia, thisday.app
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