हिंदू धर्म में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व खास महत्व रखता है। ये दिन भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यानि साल 2025 में यह पर्व 16 अगस्त के दिन मनाया जाएगा। पुराणों के अनुसार, इसी दिन कंस के कारागार में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। यही कारण है कि इस खास अवसर को कृष्ण जन्मोत्सव कहा जाने लगा हैं। भक्त इस व्रत रखकर श्रीकृष्ण की विधि अनुसार पूजा-अर्चना करते हैं। पूजा के दौरान कृष्ण जी की कृपा पाने के लिए आप विशेष मंत्रों के उच्चारण भी कर सकते हैं। इस जन्माष्टमी अगर आप भी विधि अनुसार मंत्रों के उच्चारण के साथ श्रीकृष्ण की पूजा करके अपने जीवन को सफल और सुखी बनाना चाहते हैं तो ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से कृष्ण पूजा मंत्रों को जान लेते हैं।
श्रीकृष्ण की पूजा करते समय सबसे पहले भगवान की प्रतिमा या उनकी तस्वीर के समक्ष हाथ में जल लेकर बोलें- ओम अपवित्रः पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोअपि वा। यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।। इसके बाद, जल को स्वयं के ऊपर और पूजन सामग्री पर छींटे लगाकर पवित्र कर लें।
हाथ में फूल लेकर श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए बोलें- वसुदेव सुतं देव कंस चाणूर मर्दनम्। देवकी परमानंदं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।। इसका अर्थ है- हे वसुदेव के पुत्र कंस और चाणूर का अंत करने वाले, देवकी को आनंदित करने वाले और जगतगुरु आपको नमस्कार है।
हाथ में जल, अक्षत, फूल या केवल जल लेकर भी संकल्प मंत्र बोलें- ‘यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः कार्य सिद्धयर्थं कलशाधिष्ठित देवता सहित, श्रीजन्माष्टमी पूजनं महं करिष्ये। कहते हैं, संकल्प मंत्र के बिना पूजन का फल नहीं मिलता है।
जन्माष्टमी के मौके पर अगर आप भगवान की मूर्ति बैठा रहे हैं, तो आपको हाथ में तिल-जौ लेकर मूर्ति में भगवान का आवाहन करना जरूरी है। आवाहन के लिए मंत्र बोलें- अनादिमाद्यं पुरुषोत्तमोत्तमं श्रीकृष्णचन्द्रं निजभक्तवत्सलम्। स्वयं त्वसंख्याण्डपतिं परात्परं राधापतिं त्वां शरणं व्रजाम्यहम्।। इसके बाद, तिल और जौ को भगवान की प्रतिमा पर छोड़ दें।
अर्घा में जल लेकर बोलें- रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्वासौख्यकरं शुभम्। आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वर।। इस मंत्र के उच्चारण के बाद जल छोड़ें।
अर्घा में जल लेकर बोलें- अर्घ्यं गृहाण देवेश गन्धपुष्पाक्षतैः सह। करुणां करु मे देव! गृहाणार्घ्यं नमोस्तु ते।। मंत्र के उच्चारण समाप्त होते ही जल छोड़ दें।
भगवान श्री कृष्ण को स्नान कराते हुए बोलें- गंगा, सरस्वती, रेवा, पयोष्णी, नर्मदाजलैः। स्नापितोअसि मया देव तथा शांति कुरुष्व मे।।
हाथ में पीले वस्त्र लेकर श्री कृष्ण के लिए मंत्र बोलें- शीतवातोष्णसन्त्राणं लज्जाया रक्षणं परम्। देहालअंगकरणं वस्त्रमतः शान्तिं प्रयच्छ मे। इसके साथ भगवान को वस्त्र अर्पित कर दें।
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यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्। आयुष्मयग्यं प्रतिमुन्ज शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।। इस मंत्र के साथ भगवान को यज्ञोपवीत अर्पित करें।
श्री कृष्ण को फूल में चंदन लगार मंत्र बोलें- श्रीखंड चंदनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। विलेपनं सुरश्रेष्ठ चंदनं प्रतिगृह्यताम्।। मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान श्रीकृष्ण को चंदन लगाएं।
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो। मयाआहृतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्।। इस मंत्र को श्री कृष्ण को को फूल अर्पित करते और माला पहनाते समय पढ़ें।
हाथ में दूर्वा लेकर श्री कृष्ण के लिए मंत्र बोलें – दूर्वांकुरान् सुहरितानमृतान्मंगलप्रदान्। आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण परमेश्वर।।
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इदं नाना विधि नैवेद्यानि ओम नमो भगवते वासुदेवं, देवकीसुतं समर्पयामि। इस मंत्र के साथ कृष्ण भगवान को नैवेद्य भेंट चढ़ाएं।
इदं आचमनम् ओम नमो भगवते वासुदेवं, देवकीसुतं समर्पयामि। इस मंत्र के साथ कृष्ण को आचमन कराएं। इसके बाद भगवान को पान सुपारी अर्पित करके प्रदक्षिणा अवश्य करें।
प्रदक्षिणा के दौरान यह मंत्र बोलें- यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च। तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे-पदे।
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