जन्माष्टमी व्रत कथा हिंदू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के अवसर पर सुनाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण कथा मानी जाती है। इस साल जन्माष्टमी का पर्व 26 अगस्त को मनाया जाएगा। इस पूरे दिन भक्त उपवास करते हैं और भजन-कीर्तन में लीन रहते हैं।
इस दिन कृष्ण मंदिर और घरों में स्थित मंदिर की विशेष रूप से सजाया जाता है और कान्हा के बाल रूप लड्डू गोपाल का श्रृंगार विधि-विधान के साथ किया जाता है। यह दिन कृष्ण भक्तों द्वारा उपवास और प्रार्थना के साथ मनाया जाता है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और उनके दिव्य चरित्र का स्मरण किया जाता है।
जन्माष्टमी के दिन व्रत रखने का महत्व तो है ही और इस दिन कृष्ण के जन्म की कथा सुनने से भी विशेष लाभ की प्राप्ति होती है। इस दिन यह व्रत कथा सुनने से भक्तों को आध्यात्मिक लाभ मिलता है। इस कथा का उद्देश्य भगवान श्रीकृष्ण की महिमा और उनके जीवन के आदर्शों को लोगों तक पहुंचाना है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन में धर्म, सत्य और न्याय के मार्ग पर आगे बढ़ें। आइए इस लेख में ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें कृष्ण जन्मोत्सव की कथा के बारे में विस्तार से।
जन्माष्टमी व्रत कथा क्या है?
जन्माष्टमी का पर्व श्री कृष्ण जन्मोत्सव का अवसर माना जाता है। भादो मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन देवकी और वासुदेव ने भगवान श्री कृष्ण को कारावास में जन्म दिया था और इसी दिन ये इस तिथि को कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।
मान्यता है कि भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में स्थित कारावास में हुआ था। पौराणिक कथाओं की मानें तो कृष्ण की माता देवकी राजा कंस की बहन थीं। कंस अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे और उनकी सभी इच्छाओं की पूर्ति करते थे। कंस ने बहन देवकी के वर के रूप में वासुदेव को चुना और धूम-धाम से उनका विवाह करवाया। विवाह संपन्न होने के बाद जैसे ही वो बहन को विदा करके वासुदेव के साथ उनके घर भेजने लगे वैसे ही एक आकाशवाणी हुई।
उस आकाशवाणी में यह बताया गया कि कंस अपनी जिस लाडली बहन को प्यार से विदा कर रहे हैं उन्हीं का आठवां पुत्र कंस की मृत्यु का कारण बनेगा। इस आकाशवाणी को सुनकर और स्वयं की मृत्यु के भय से कंस ने देवकी को मारने का निर्णय लिया।
उस समय देवकी के पति वासुदेव ने कंस से प्रार्थना की और देवकी को मृत्यु दंड न देने के बदले में उन्होंने यह आश्वासन दिया कि देवकी की कोख से जो भी आठवां पुत्र होगा वो कंस को सौंप देंगे। तभी कंस के मन में यह विचार आया कि ऐसा जरूरी नहीं है कि देवकी की आठवीं संतान ही कंस की मृत्यु का कारण बने बल्कि कोई भी संतान उनकी मृत्यु का कारण बन सकती है। ऐसे में वासुदेव ने कंस को अपनी सभी संतानों को सौंपने का वादा किया और कहा कि वह अपनी हर एक संतान को जन्म के तुरंत बाद ही कंस को सौंप देंगे।
उसी समय कंस ने देवकी और वासुदेव दोनों को कारागार में डाल दिया और उनकी एक-एक करके 7 संतानों को देवकी से लेकर मृत्यु दंड दिया, लेकिन जैसे ही देवकी की आठवीं संतान श्री कृष्ण का जन्म हुआ उस समय कारावास के बाहर मौजूद सभी सैनिक नींद को गोद में चले गए। आधी रात का समय था और बहार तेज वर्षा हो रही थी। उसी समय वासुदेव ने निर्णय लिया कि वो तुरंत ही कृष्ण को कंस से दूर ले जाएंगे और उन्हें अपने मित्र नंदबाबा का ध्यान आया।
वासुदेव ने तुरंत ही कान्हा को एक टोकरी में बैठाया और यमुना नदी को पार करके गोकुल के लिए निकल पड़े। रास्ते में यमुना नदी ने कृष्ण के चरण छूने के लिए अपना उफान बढ़ा दिया और उनके चरणों का स्पर्श करते ही वो ठहर गईं। वासुदेव कृष्ण को लेकर यशोदा और नंदबाबा के घर पहुंचे और कृष्ण को उनकी शरण में सौंप दिया। कृष्ण का लालन-पालन गोकुल में ही यशोदा और नंदबाबा ने किया और कृष्ण को यशोदा के पुत्र के रूप में जाना जाने लगा।
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जन्माष्टमी के दिन व्रत कथा सुनने का महत्व
जन्माष्टमी के दिन व्रत कथा सुनना अत्यंत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह कथा भगवान श्रीकृष्ण के जन्म, उनकी बाल लीलाओं और उनके जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंगों का वर्णन करती है। व्रत कथा सुनने से भक्तों को भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का वास होता है।
इस व्रत कथा के माध्यम से भक्त भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ी शिक्षाओं को जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं, जिससे उन्हें अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा मिलती है। यह कथा हमें धर्म, सत्य और न्याय के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं और हमें यह सिखाती हैं कि सच्चाई और धर्म का पालन हर परिस्थिति में करना चाहिए।
इसलिए, जन्माष्टमी के दिन व्रत कथा सुनना केवल धार्मिक कार्य नहीं है, बल्कि यह आत्मशुद्धि, आस्था और भगवान के प्रति अटूट विश्वास को और ज्यादा प्रगाढ़ बनाने का एक साधन भी है।
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