janmashtami  vrat katha kya hai

Janmashtami Vrat Katha 2025: जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर करें इस कथा का पाठ, आपकी सभी मनोकामनाएं होंगी पूर्ण

16 अगस्त को पूरे देश में कान्हा का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। दुनियाभर में यह दिन जनमाष्टमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग पूरे दिन उपवास रखकर लड्डू गोपाल की श्रद्धाभाव से सेवा-सत्कार करते हैं। पूजा के बाद व्रत कथा पढ़ना शुभ माना जाता है।
Editorial
Updated:- 2025-08-16, 10:42 IST

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 16 अगस्त को पूरे देश में भव्य तरीके से सेलिब्रेट किया जाएगा। जन्माष्टमी के खास मौके पर वृंदावन, मथुरा और अन्य जगहों पर कान्हा की रास लीलाओं का आयोजन किया जाता है। यह दिन न सिर्फ भगवान कृष्ण के जन्म उत्सव नहीं बल्कि प्रेम और भक्ति का भी प्रतीक है। भक्त पूरा दिन उपवास रखकर लडडू गोपाल की पूजा अर्चना और उनकी सेवा करते हैं।
प्रत्येक घरों और मंदिरों में चारों ओर फूलों और लाइट की सजावट देखने को मिलती है। हर भक्त अपने कान्हा को नए और सुंदर वस्त्र पहनाकर उनका मनमोहक श्रृंगार करता है। साथ-साथ लोग श्रीकृष्ण जन्म की कथा सुनना शुभ माना जाता है।

ज्योतिषविद् पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी के अनुसार, जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण की कथा सुनने से लोगों को विशेष लाभ मिलते हैं। यह केवल एक कहानी नहीं बल्कि जीवन जीने का सही मार्ग दिखाती है। साथ ही हमें बताती है अंततः बुराई पर अच्छाई की ही विजय होती है। हमें सदैव सच्चाई के मार्ग पर चलना चाहिए। यह पर्व हमें भगवान श्रीकृष्ण के बालपन की नटखट शरारतों और उनकी अद्भुत लीलाओं को याद करने का अवसर देता हैजिससे मन आनंद और भक्ति से भर उठता है।

जन्माष्टमी व्रत कथा (Janmashtami Vrat Katha 2025)

janmashtami vrat katha by astrologer

जन्माष्टमी का पर्व श्री कृष्ण जन्मोत्सव का अवसर माना जाता है। भादो मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन देवकी और वासुदेव ने भगवान श्री कृष्ण को कारावास में जन्म दिया था और इसी दिन ये इस तिथि को कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।  

मान्यता है कि भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में स्थित कारावास में हुआ था। पौराणिक कथाओं की मानें तो कृष्ण की माता देवकी राजा कंस की बहन थीं। कंस अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे और उनकी सभी इच्छाओं की पूर्ति करते थे। कंस ने बहन देवकी के वर के रूप में वासुदेव को चुना और धूम-धाम से उनका विवाह करवाया। विवाह संपन्न होने के बाद जैसे ही वो बहन को विदा करके वासुदेव के साथ उनके घर भेजने लगे वैसे ही एक आकाशवाणी हुई।

उस आकाशवाणी में यह बताया गया कि कंस अपनी जिस लाडली बहन को प्यार से विदा कर रहे हैं उन्हीं का आठवां पुत्र कंस की मृत्यु का कारण बनेगा।  इस आकाशवाणी को सुनकर और स्वयं की मृत्यु के भय से कंस ने देवकी को मारने का निर्णय लिया।

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उस समय देवकी के पति वासुदेव ने कंस से प्रार्थना की और देवकी को मृत्यु दंड न देने के बदले में उन्होंने यह आश्वासन दिया कि देवकी की कोख से जो भी आठवां पुत्र होगा वो कंस को सौंप देंगे। तभी कंस के मन में यह विचार आया कि ऐसा जरूरी नहीं है कि देवकी की आठवीं संतान ही कंस की मृत्यु का कारण बने बल्कि कोई भी संतान उनकी मृत्यु का कारण बन सकती है। ऐसे में वासुदेव ने कंस को अपनी सभी संतानों को सौंपने का वादा किया और कहा कि वह अपनी हर एक संतान को जन्म के तुरंत बाद ही कंस को सौंप देंगे।

उसी समय कंस ने देवकी और वासुदेव दोनों को कारागार में डाल दिया और उनकी एक-एक करके 7 संतानों को देवकी से लेकर मृत्यु दंड दिया, लेकिन जैसे ही देवकी की आठवीं संतान श्री कृष्ण का जन्म हुआ उस समय कारावास के बाहर मौजूद सभी सैनिक नींद को गोद में चले गए। आधी रात का समय था और बहार तेज वर्षा हो रही थी। उसी समय वासुदेव ने निर्णय लिया कि वो तुरंत ही कृष्ण को कंस से दूर ले जाएंगे और उन्हें अपने मित्र नंदबाबा का ध्यान आया।

वासुदेव ने तुरंत ही कान्हा को एक टोकरी में बैठाया और यमुना नदी को पार करके गोकुल के लिए निकल पड़े। रास्ते में यमुना नदी ने कृष्ण के चरण छूने के लिए अपना उफान बढ़ा दिया और उनके चरणों का स्पर्श करते ही वो ठहर गईं। वासुदेव कृष्ण को लेकर यशोदा और नंदबाबा के घर पहुंचे और कृष्ण को उनकी शरण में सौंप दिया। कृष्ण का लालन-पालन गोकुल में ही यशोदा और नंदबाबा ने किया और कृष्ण को यशोदा के पुत्र के रूप में जाना जाने लगा। 

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जन्माष्टमी के दिन व्रत कथा सुनने का महत्व

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जन्माष्टमी के दिन व्रत कथा सुनना अत्यंत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह कथा भगवान श्रीकृष्ण के जन्म, उनकी बाल लीलाओं और उनके जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंगों का वर्णन करती है। व्रत कथा सुनने से भक्तों को भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का वास होता है।

इस व्रत कथा के माध्यम से भक्त भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ी शिक्षाओं को जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं, जिससे उन्हें अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा मिलती है। यह कथा हमें धर्म, सत्य और न्याय के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं और  हमें यह सिखाती हैं कि सच्चाई और धर्म का पालन हर परिस्थिति में करना चाहिए।

इसलिए, जन्माष्टमी के दिन व्रत कथा सुनना केवल धार्मिक कार्य नहीं है, बल्कि यह आत्मशुद्धि, आस्था और भगवान के प्रति अटूट विश्वास को और ज्यादा प्रगाढ़ बनाने का एक साधन भी है।

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यदि आप भी कृष्ण जन्माष्टमी के दिन इस व्रत कथा का पाठ करें या सुनें तो इसके शुभ लाभ मिल सकते हैं। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।
 
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FAQ
जन्माष्टमी 16 अगस्त या 17 अगस्त किस दिन मनाई जाएगी?
16 अगस्त को जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाएगा।
जन्माष्टमी के दिन किस मंत्र का जाप करें?  
जन्माष्टमी के दिन 'ऊं देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।' मंत्र का जाप करें। 
जन्माष्टमी के दिन क्या दान करें?
जन्माष्टमी के दिन, भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने और शुभ फल पाने के लिए अन्न, वस्त्र, माखन-मिश्री, फल, गौसेवा, और धार्मिक पुस्तकों का दान करना शुभ माना जाता है। 
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