ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति और उनकी गति के आधार पर व्यक्ति की कुंडली में विभिन्न प्रकार के दोष उत्पन्न हो सकते हैं, जो समय के साथ समाप्त भी हो सकते हैं। ये दोष किसी व्यक्ति के जीवन पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इन्हीं दोषों में से एक है कालसर्प दोष, जिसे अत्यंत प्रभावशाली और कभी-कभी संकटकारी माना गया है। इस दोष के कारण व्यक्ति के जीवन में अचानक कठिनाइयां उत्पन्न हो सकती हैं। कभी सब कुछ सामान्य चलता है और एकदम से परिस्थितियाँ बिगड़ने लगती हैं।
इस विषय पर हमने छिंदवाड़ा के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ त्रिपाठी जी से विशेष बातचीत की। वे बताते हैं, "मनुष्य को अपने कर्मों का फल इसी जीवन में भुगतना पड़ता है, लेकिन कई बार पूर्वजन्म के कर्म भी जीवन को प्रभावित करते हैं। कालसर्प दोष भी ऐसा ही एक योग है, जो तब उत्पन्न होता है जब पूर्वजों की आत्माएं असंतुष्ट होती हैं या उन्हें सम्मान नहीं दिया गया होता। यह दोष कुंडली में तब बनता है और जीवन में बाधाएँ उत्पन्न करता है। इसके निवारण हेतु विशेष पूजा-पाठ तथा धार्मिक उपाय अपनाने चाहिए ताकि इसका प्रभाव कम हो सके।"
ज्योतिष शास्त्र में बहुत सारे योग के बारे में बताया गया है। इनमें से एक है कालसर्प दोष। यह एक तरह का योग है, जिसके कुंडली में बनने पर व्यक्ति के जीवन में मुश्किलें आने लग जाती हैं। ऐसी भी मान्यता है कि किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि राहु और केतु ग्रह के बीच में कोई अन्य ग्रह आ जाता है, तो कालसर्प दोष की स्थिति बन जाती है।
पंडित सौरभ त्रिपाठी जी बताते हैं, " वैसे तो कालसर्प दोष की शांति के लिए सबसे अच्छा समय सावन का महीना होता है। इस महीने में आप कभी भी काल सर्प दोष की पूजा करवा सकते हैं। इसके अलावा आप जिस तिथि में शिव वास करते हैं, जैसे हर महीने की शिवरात्रि पर कालसर्प दोष की पूजा करा सकते हैं। आप प्रदोष, पंचमी, सोमवार के दिन भी ग्रह-नक्षत्रों का शुभ संयोग देख कर यह पूजा करा सकते हैं। इस माह में आगामी कालसर्प की पूजा के शुभ मुहूर्त 14,18,19,20,22,25, 27 फरवरी को पड़ेंगे।"
1- सवा महीने तक हर दिन सुबह उठने के तुरंत बाद आपको पक्षियों को जौ के दाने खिलाने चाहिए।
2-अपने घर के मुख्य द्वार पर अष्टधातु या चांदी का स्वस्तिक लगाएं। ध्यान रखें कि आपको यह टांगना नहीं है बल्कि दरवाजे या दीवार पर चिपकाना है। साथ ही आप दोनो में से किसी भी धातु से बना नाग भी लगा सकते हैं। 3- अमावस्या के दिन पितरों को शांत कराने हेतु दान आदि करें तथा कालसर्प योग शान्ति पाठ कराये।
3 -नागपाश यंत्र आप अपने गले में धारण कर सकते हैं, मगर इससे पहले आपको किसी पंडित से विधि विधान से यंत्र को अभिमंत्रित कराना होगा।
4-अपने शयनकक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग करें इससे भी दोष का प्रभाव कम होगा।
5- नियमित हनुमान चालीसा का पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान जी पर सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।.
6- साधारण पानी से नहाने के स्थान पर आपको सवा महीने देवदारु, सरसों और लोबान को जल में उबालकर फिर इस पानी को स्नान के पानी में मिलाकर, उससे नहाना चाहिए।
7- सोमवार के दिन आपको को शिव मंदिर में चांदी का नाग दान करना चाहिए। यदि आप ऐसा नहीं कर पा रहे हैं, तो केवल मंदिर में जाकर चांदी के नाग की पूजा ही कर लें।
8- सावन के महीने में 30 दिनों तक भगवान शिव का जल से अभिषेक करें।
9- प्रत्येक सोमवार दही से भगवान शंकर का अभिषेक करें। अभिषेक का अर्थ है कि आप पानी में थोड़ा सा दही का अंश मिला लें और बाकी दही का दान करें।
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10- ओम नमः: शिवाय' की 21 माला जाप करें। इसके बाद शिवलिंग का गाय के दूध से अभिषेक करें। तांबे का बना सर्प शिवलिंग पर समर्पित करें।
11- सोमवार के दिन मसूर की दाल गरीबों में दान करें।
12-सूखे नारियल के फल को बहते जल में प्रवाहित करें।
13- मंगलवार एवं शनिवार को सुंदरकांड का पाठ करें। यह कार्य आपको रात में करना चाहिए। आपको बता दें कि श्री हनुमान जी पूरा दिन खुद सेवक बनकर श्री राम जी के चरणों में रहते हैं, इसलिए भक्तों को उनकी सेवा रात के समय करनी चाहिए।
14- महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें और सावन के महीने में एक बार शिव जी का रुद्राभिषेक जरूर करें।
15- शनिवार का व्रत करें और राहु,केतु व शनि के साथ हनुमान जी की आराधना करें।
16- शनिवार के दिन श्री शनिदेव को तेल अर्पित करें। आप तिल या फिर सरसों का तेल शनिदेव को अर्पित कर सकते हैं।
17- प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्रों में उड़द या मूंग दाल डालकर, राहु के मंत्र का जप करें। फिर इस दाल को पीपल के पेड़ में चढ़ा दें।
18-कालसर्प योग हो और जीवन में लगातार गंभीर बाधा आ रही हो तो केतु के मंत्रों का जप भी करना चाहिए।
19- कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए श्री गणेश जी की पूजा भी करनी चाहिए।
20- भगवान श्री कृष्ण आराधना करने से भी यह दोष शांत होता है।
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अंत में पंडित सौरभ त्रिपाठी जी यही कहते हैं, "अपने बड़े-बुजुर्गों का सम्मान और पूर्वजों का ध्यान हर किसी को नियमित करना चाहिए। यह कार्य आपको किसी फल की इच्छा से नहीं बल्कि दिल से करना चाहिए।"
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