शरीर में कोई भी चोट लगे वो बहुत ज्यादा दुखदाई साबित हो सकती है। कई बार हम शुरुआती लक्षणों को देखते हुए सोचते हैं कि हमें होने वाला दर्द कुछ नॉर्मल बात है, लेकिन अगर देखा जाए तो ये लापरवाही कई बार बहुत बड़ी परेशानी का सबब बन जाता है। अपने दर्द की केयर न करना घर पर आम बात है और ये अधिकतर मम्मी, चाची, दादी के साथ होता है कि वो अपना ख्याल नहीं रखतीं। कई बार तो सिर्फ हेयरलाइन क्रैक होता है, लेकिन उसका ख्याल न रखने के कारण वो बढ़कर बड़ी समस्या बन जाता है।
चोट लगने की समस्या किसी को भी हो सकती है और ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ बूढ़े लोगों को होगी या फिर ये सिर्फ जवान लोगों को ही होगी। ये बचपन से लेकर बुढ़ापे तक किसी में भी हो सकती है और ये बहुत दुखदाई समस्या हो सकती है।
ऐसे में ये जानना भी जरूरी है कि आखिर इनमें से कौन सी समस्या हुई है। ऐसे दर्द को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है स्ट्रेन, स्प्रेन और फ्रैक्चर। हमने स्ट्रेन, स्प्रेन और फ्रैक्चर के दर्द को लेकर डॉक्टर समर्थ सूर्यवंशी से बाक की जो भोपाल डिविजनल रेलवे हॉस्पिटल में फिजियोथेरेपिस्ट हैं। उन्होंने हमें बताया कि आखिर कैसे नॉर्मल मसल पेन, लिगामेंट की चोट या फ्रैक्चर को पहचाना जा सकता है।
स्ट्रेन: मांसपेशियों में लगने वाली चोट को स्ट्रेन कहा जाता है। खिंचाव या तनाव को स्ट्रेन कहा जाता है।
स्प्रेन: स्प्रेन को हिंदी में मोच भी कहा जाता है। स्प्रेन और स्ट्रेन में अंतर ये है कि स्ट्रेन मांसपेशियों में होती है और स्प्रेन लिगामेंट्स जैसे सॉफ्ट टिशू में होता है और ये दर्द भी काफी करता है।
फ्रैक्चर: जब हड्डी टूट जाए तो फ्रैक्चर होता है। ये बहुत ज्यादा दर्द और सूजन से देखा जा सकता है। इसके लिए प्लास्टर चढ़वाना जरूरी होता है। अगर हेयरलाइन क्रैक भी है तो भी काफी दिनों तक हड्डी को एक ही जगह पर रखना होता है।
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स्ट्रेन अगर हो गया है तो आपको इसके मुख्यत: ये लक्षण दिखेंगे-
तो अगर कभी चोट लगती है और ऐसे नॉर्मल लक्षण हैं यानि ज्यादा सूजन नहीं है, मूवमेंट में ऐसी कोई परेशानी नहीं है तो इसे स्ट्रेन कहा जा सकता है।
स्ट्रेन का इलाज वैसे तो घर पर भी हो सकता है, लेकिन फिर भी अगर ज्यादा लंबे समय तक ये समस्या बनी हुई है तो आपको डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए।
डॉक्टर समर्थ सूर्यवंशी का कहना है कि इसके लिए PRICE तकनीक का उपयोग किया जाता है और वैसे ही इलाज होता है-
P से Prevention (बचाव) :सबसे पहले तो चोट लगने से बचें।
R से Rest (आराम) :दूसरा कि आप रेस्ट जरूर करें। जिस जगह चोट लगी है उसे ध्यान रखें।
I से ICE (बर्फ से सिकाई): स्ट्रेन उन कुछ तकलीफों में से एक है जहां बर्फ से सिकाई को महत्वपूर्ण माना जाता है। ये चोट लगने वाली जगह पर लोकल एनेस्थीसिया यानि सुन्न करने का काम करता है।
C से Compression (दबाव): मांसपेशी या ऐसी किसी चोट को अगर दबा कर रखते हैं तो उसकी स्वेलिंग को कम करने में मदद करता है।
E से Elevation (ऊंचाई पर रखना): ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि हमारे शरीर का ब्लड फ्लो दिल तक या लिंफेटिक नोट तक पहुंचे और चोट की हीलिंग जल्दी शुरू हो।
ये लिगामेंट्स की इंजुरी है और लिगामेंट्स जो दो बोन्स को कनेक्ट करने में मदद करता है वो मोबिलिटी के साथ-साथ स्टेबिलिटी प्रदान करता है। जब भी स्प्रेन होता है तो मूवमेंट लिमिटेड हो जाता है। अगर स्प्रेन हुआ है तो मूवमेंट करते समय एक अलग साउंड महसूस होगा। इसका मतलब ये है कि ज्वाइंट की स्टेबिलिटी कम हो गई है।
स्प्रेन का इलाज भी PRICE तकनीक के तहत किया जाता है, लेकिन अगर मान लीजिए घुटने या जिस भी हिस्से में स्प्रेन हुआ है उसमें लचक ज्यादा है तो उसका इलाज करने के लिए ऑर्थोपेडिक्स की मदद लेनी होगी। कई बार इसके लिए सर्जरी की भी जरूरत होती है।
सावधानियां-
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फ्रैक्चर यानि हड्डी का टूटना और सबसे पहला लक्षण है कि क्रैक साउंड कई बार आती है। जब चोट लगी हो उसको खुद समझ में आ जाता है कि क्रैक साउंड आया है। इसके अलावा, सूजन बहुत आम लक्षण है। जिस जगह ये हुआ है उस जगह बिलकुल मूवमेंट नहीं होना एक लक्षण हो सकता है। फ्रैक्चर को डायग्नोज करने के लिए मेडिकल इमर्जेंसी में एक्सरे करवाना और इलाज करवाना।
आपको सबसे पहले ये ध्यान रखने की जरूरत है कि अगर ऐसा कुछ भी हुआ है तो डॉक्टर से संपर्क जरूर करें। घर पर ही इलाज करने से बेहतर है कि डॉक्टर की सलाह ले ली जाए।
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