भारतीय परंपराओं के अनुसार श्राद्ध एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। यह दिवंगत पूर्वजों की आत्माओं के सम्मान के लिए किया जाता है। हिंदू संस्कृति में पितृ पक्ष या श्राद्ध के दौरान पशु और पक्षियों को खिलाना बहुत ही शुभ माना जाता है और इसका बहुत अधिक महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि यह शुभ कार्य दुख को दूर और सौभाग्य में वृद्धि करता है। जैसा कि वेदों या शास्त्रों में वर्णित है, यह माना जाता है कि पक्षियों और जानवरों को खिलाने से आपकी कुंडली में ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने में मदद मिलती है और आपके अच्छे कर्मों में इजाफा होता है। हिंदू धर्म के अनुसार पक्षी और जानवर कई देवी-देवताओं के वाहन के रूप में काम करते हैं इसलिए उनका एक प्रसिद्ध स्थान होता है।
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का काफी महत्व होता है। इस साल पितृपक्ष 2 सितंबर 2020 से 17 सितंबर तक चलेगा। पितृ पक्ष में पित्तरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है, इसके साथ ही इस दिन कौओं को भी भोजन कराया जाता है, इस दिन कौओं को भोजन कराना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। आज हम आपको बताएंगे कि पितृ पक्ष में कौओं को भोजन क्यों कराते हैं?
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कौओं को खाना खिलाने का महत्व
हिंदू संस्कृति में एक धारणा है कि हमारे पूर्वज कौओं के रूप में पृथ्वी पर आते हैं। उन्हें खाना खिलाना हमारे मृत पूर्वजों का भोजन माना जाता है। कौआ एकमात्र ऐसा पक्षी है जो पितृ लोक के दूत के रूप में कार्य करता है। यह वायु के तत्व हैं और श्राद्ध का खाना इन्हें खिलाना पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनकी आत्मा को प्रसन्न करने में मदद करता है। कौओं को पितृ पक्ष में खाना खिलाने का क्या महत्व है? इस बारे में जानने के लिए हमने अयोध्या के पंडित श्री राधे शरण शास्त्री जी से बात की। तब उन्होंने हमें इस बारे में विस्तार से बताया।
पंडित जी की राय
पंडित श्री राधे शरण शास्त्री जी का कहना है कि ''पितृपक्ष में कौवे को भोजन कराने का बहुत बड़ा महत्व माना गया है। ऐसा माना जाता है कि अगर श्राद्ध पक्षमें आपके द्वारा दिया गया भोजन कौआ ग्रहण कर ले तो आपके पितृ आपसे प्रसन्न होते हैं। इसके विपरीत अगर कौआ भोजन नहीं करने आता है तो यह माना जाता है कि आपके पूर्वज आप से विमुख हैंं यानी कि रुष्ट हैं। पितृपक्ष में हमारे पितर कौए के रूप में भोजन ग्रहण करने आते हैं इसलिए हम सभी को अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध पक्ष में कौए को भोजन अवश्य करवाना चाहिए। इसके अलावा कौए को यमराज का संदेशवाहक भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि कौए को भोजन कराने से हमारा संदेश हमारे पितरों तक पहुंचता है।''
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शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध करने के बाद जितना जरूरी ब्राह्मण को भोजन कराना होता है, उतना ही जरूरी कौओं को भोजन कराना होता है, माना जाता है कि कौए इस समय में हमारे पित्तरों का रूप धारण करके पृथ्वी पर उपस्थित रहते हैं, इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी है। कहा जाता है कि इन्द्र के पुत्र जयन्त ने ही सबसे पहले कौए का रूप धारण किया था। यह कथा त्रेतायुग की है, जब भगवान श्रीराम ने अवतार लिया और जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मारी थी, तब भगवान श्रीराम ने तिनके का बाण चलाकर जयंत की आंख फोड़ दी थी। जब उसने अपने किए की माफी मांगी, तब राम ने उसे यह वरदान दिया कि तुम्हें अर्पित किया भोजन पितरों को मिलेगा। तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परंपरा चली आ रही है, यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष में कौओं को ही पहले भोजन कराया जाता है।
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