हमारी परम्पराओं के अनुसार हमारे देश में विभिन्न रीति रिवाज़, व्रत-त्यौहार मनाए जाते हैं। इन्हीं परम्पराओं को बखूबी निभाते हुए आगे बढ़ने को ही संस्कार की संज्ञा दी गयी है। ऐसी मान्यता है कि किसी भी व्यक्ति के गर्भधारण से लेकर मृत्योपरांत तक अनेक प्रकार के संस्कार मौजूद हैं। जैसे जन्म के बाद छठे दिन बच्चे की छठी मनाई जाती है तो बारहवें दिन को बरहां कहा जाता है। यही नहीं जैसे-जैसे बच्चा उम्र के अन्य पड़ावों की ओर अग्रसर होता जाता है अन्य रीति रिवाजों का चलन है जैसे मुंडन, यज्ञोपवीत, विवाहऔर इन सबसे ज्यादा बड़ा संस्कार है मृत्योपरांत अंत्येष्टि संस्कार।
अंत्येष्टि संस्कार को व्यक्ति के जीवन चक्र का अंतिम संस्कार माना जाता है। लेकिन अंत्येष्टि के पश्चात भी कुछ ऐसे कर्म होते हैं जिन्हें मृतक के संबंधी मिलकर निभाते हैं जिसमें पुत्र या संतान की प्रमुख भूमिका होती है। अंत्येष्टि के पश्चात आता है श्राद्ध,ये संस्कार संतान का मुख्य कर्त्तव्य माना जाता है और कहा जाता है कि श्राद्ध संस्कार को बखूबी निभाने से पितर अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं क्योंकि इससे उनका मुक्ति का द्वार खुल जाता है।
वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि को श्राद्ध कर्म किया जा सकता है। लेकिन भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक के पूरे समय में विधि पूर्वक श्राद्ध कर्म करने का विधान है। इस पूरे पक्ष को पितृ पक्ष भी कहा जाता है।
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आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या पंद्रह दिन का समय पितृपक्ष के नाम से विख्यात है। इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों या पूर्वजों को जल तर्पण करते हैं और उनकी मृत्यु की तिथि के अनुसार उनका श्राद्ध करते हैं।
माता, पिता या किसी अन्य परिवारीजन की मृत्योपरांत उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म को पितृ श्राद्ध कहते हैं। मान्यता यह है कि पितृ पक्ष के पंद्रह दिनों में हमारे वो पितर जो इस दुनिया में मौजूद नहीं हैं वो जन कल्याण के लिए धरती में विराजमान होते हैं और हमारे द्वारा उन्हें अर्पित भोजन और जल का भोग लगाते हैं।
ऐसे में पितरों को प्रसन्न करना ज़रूरी होता है क्योंकि उन्ही के आशीर्वाद से उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। लेकिन कई बार जाने-अनजाने में हमसे कुछ ऐसी गलतियां भी हो जाती हैं जिनसे पितर नाराज़ हो जाते हैं। यदि आप भी पितरों को प्रसन्न करना चाहते हैं तो आपको भूलकर भी ये गलतियां नहीं करनी चाहिए।
अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए हमें कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए और पितृ पक्ष के इन पंद्रह दिनों में भूल कर भी ये गलतियां नहीं करनी चाहिए।
पितृ पक्ष में कोई भी नया सामान नहीं खरीदना चाहिए। ऐसा माना जाता है ये समय अपने पूर्वजों को याद करने का होता है इसलिए ये समय उनकी यादों में शोक दिखाने के लिए होता है। ऐसे में नई वस्तुओं की खरीदारी पितरों को नाराज़ कर सकती है।
जो लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध या तर्पण करते हों उन्हें पितृ पक्ष में पंद्रह दिन तक अपने बाल नहीं कटवाने चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से पूर्वज नाराज हो सकते हैं।
आमतौर पर मान्यता है कि अतिथि देव स्वरुप होता है लेकिन मुख्य रूप से पितृ पक्ष में किसी भी भिखारी को भीख देने से इंकार नहीं करना चाहिए। क्योंकि हो सकता है कि भिखारी के रूप में आपके पूर्वज हों और भिक्षा देने से इंकार करना उनका अपमान करना हो सकता है। इन दिनों किया गया दान पूर्वजों को तृप्ति देता है।
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पितृ पक्ष के दौरान पीतल, फूल या तांबे के बर्तनों में ही पितरों को जल दिया जाता है। इसलिए हमेशा तर्पण हेतु इन्ही बर्तनों का इस्तेमाल करें। पितरों की पूजा के लिए लोहे के बर्तनों का इस्तेमाल पूरी तरह से वर्जित माना जाता है। ऐसा करने से पितर रुष्ट हो जाते हैं।
मान्यतानुसार जो लोग पितरों को तर्पण करते हैं उन्हें पितृ पक्ष के पंद्रह दिनों तक किसी और के घर में भोजन नहीं करना चाहिए। किसी और का अन्न ग्रहण करने से भी पितर नाराज़ हो सकते हैं। पितरों को प्रसन्न करने के लिए सबसे अच्छा समय पितृ पक्ष ही होता है इसलिए उपर्युक्त बातों का ध्यान रखकर पितरों का पूजन करना सभी के लिए लाभप्रद हो सकता है।
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