हिन्दू धर्म की मान्यतानुसार पितृपक्ष भाद्रपद की पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक मनाया जाता है। 16 दिनों की इस अवधि में पूर्वजों का अलग-अलग तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। पितरों की शांति के लिए सभी लोग इन दिनों पूर्वजों की मृत्यु की तिथि के अनुसार हवन पूजन करते हैं और उन्हें जल तर्पण किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जिन पितरों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती है उनका श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या को मनाया जाता है और मृत महिलाओं का श्राद्ध पितृ पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इसलिए इस तिथि को मातृ नवमी भी कहा जाता है। आइए जानें पितृ पक्ष में क्या है मातृ नवमी का महत्त्व -
पितृपक्ष की नवमी तिथि को मातृ नवमी कहा जाता है। यह अश्विन मास में कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को पड़ती है। हिन्दू मान्यतानुसार माना जाता है कि नवमी तिथि को सभी मृत माताओं एवं विवाहित महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है। जिन विवाहित महिलाओं की मृत्यु नवमी तिथि को हुई होती है या फिर जिन महिलाओं की तिथि ज्ञात नहीं है उन सभी का श्राद्ध इस दिन पूरे विधि विधान के साथ किया जाता है। इस दिन पंडित को और गरीब लोगों की भोजन कराया जाता है और ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं। इस वर्ष मातृ नवमी 11 सितम्बर को मनाई जाएगी।
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ऐसा माना जाता है कि मातृ नवमी के दिन सुहागन मृत महिलाओं का श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करने से ,भोजन कराने से, दान पुण्य करने से और सुहाग की सामग्री अर्पित करने से पितरों को प्रसन्नता मिलती है और सुहाग अटल होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है (पितृपक्ष में न करें ये गलतियां )। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन पुत्र वधुओं को उपवास भी करना चाहिए इससे उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और घर धन धान्य से भर जाता है।
मातृ नवमी के दिन सर्वप्रथम स्नान करके शुद्ध मन से सात्विक भोजन (ऐसे बनाएं पितरों के लिए भोजन ) तैयार करना चाहिए। उसके बाद उस भोजन को अपनी मृत पूर्वज महिलाओं की समर्पित करते हुए ब्राह्मण भोज करवाना चाहिए। ब्राह्मण सुहागन महिला को भोज करवाना अत्यंत लाभकारी होता है। यदि आप किसी कारणवश भोजन नहीं करवा पा रही हैं तब भी मंदिर में पूरा भोजन किसी ब्राह्मण को दे सकती हैं। मंदिर में सीधा यानि कि आटा ,दाल चावल,चीनी और सुहाग की सामग्री का दान अत्यंत लाभकारी होता है। इसके बाद रात में घर के बाहर दीया प्रज्वलित करके रखें और पूर्वज महिलाओं को विदा करके क्षमा प्रार्थना करें। ऐसा करने से निश्चय ही पूर्वज प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इस दिन कहा जाता है कि गीता का पाठ करना अत्यंत शुभ होता है क्योंकि गीता में मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है। घर के सभी लोगों को एक साथ गीता का पाठ अवश्य करना चाहिए। जिससे इसका पुण्य प्राप्त हो सके और मृत पूर्वज महिलाओं की आत्मा शांति मिल सके। गीता पाठ करते हुए आते का एक बड़ा दीपक प्रज्ज्वलित करके पूर्वजों की तस्वीर के सामने रखें और उनसे कल्याण हेतु प्रार्थना करें। पितरों की तस्वीर पर तुलसी दल भी अर्पित करने का विशेष महत्त्व होता है।
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इस तरह पितृ पक्ष में मातृ नवमी तिथि को श्रद्धा पूर्वक किया गया श्राद्ध महिलाओं के लिए अत्यंत फलदायी होता है।
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Image Credit:free pik, unsplash ,pixbey
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