Pitru Paksh 2020: क्या आप जानते हैं पितृपक्ष की शुरुआत कैसे हुई

पितृपक्ष में मृत पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति हेतु पिंड दान करना और तर्पण करने की प्रथा काफी समय से चली आ रही है। आइए इस लेख में जानते हैं पितृ पक्ष की शुरुआत कब हुई थी। 

 

 

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बहुत समय से चली आ रही प्रथानुसार पितृपक्ष ऐसा समय होता है जब हम अपने मृत पूर्वजों को याद करते हुए उनके मोक्ष की कामना के लिए पिंड दान करते हैं, साथ ही उन्हें जल तर्पण भी किया जाता है। कहा जाता है कि यही वो समय होता है जब हमारे मृत पूर्वज धरती पर आते हैं और यदि वो प्रसन्न होते हैं तो घर को धन धान्य से पूर्ण कर देते हैं। मान्यतानुसार पूर्वज सूक्ष्म रूप से धरती पर विराजमान होते हैं। इसलिए पितरों का श्राद्ध बड़ी ही श्रद्धा पूर्वक किया जाता है। इन दिनों में पिंडदान, तर्पण, हवन और अन्न दान मुख्य रूप से करने का प्रचलन है। पितृ पक्ष के ये दिन पितरों को समर्पित होते हैं। श्रद्धा से किया गया कर्म ही श्राद्ध कहलाता है। आइए जानें पितृ पक्ष के इतिहास के बारे में -

पितृ पक्ष कब मनाया जाता है

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भाद्रपद की पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण पक्षकी अमावस्या तक कुल 16 दिन तक का समय पितृपक्ष के रूप में मनाया जाता है। इन 16 दिनों के लिए हमारे पूर्वज भोजन और जल ग्रहण करने धरती पर आते हैं और सूक्ष्म रूप में हमारे घर में विराजमान होते हैं(पितृपक्ष में न करें ये गलतियां) । इसलिए पूरे श्रद्धा भाव से पितरों का स्मरण किया जाता है।

कैसे हुई पितृपक्ष की शुरुआत

मान्यता है कि पितृ पक्ष की शुरुआत महाभारत के युद्ध के दौरान हुई थी। महाभारत युद्ध में जब दानवीर कर्ण का निधन हो गया और उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंच गई। वहां कर्ण को भोजन के स्थान पर सोना और आभूषण खाने को दिए गए। इस बात से कर्ण बहुत निराश हो गए और देवराज इंद्रा से इसका कारण पुछा। इंद्र ने कर्ण को बताया कि आपने अपने पूरे जीवन में सोने के आभूषणों को दूसरों को दान किया लेकिन कभी भी अपने पूर्वजों को भोजन दान नहीं दिया। इस बात के उत्तर में कर्ण ने बताया कि वप अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानता है। ऐसा सुनने के बाद देवराज इंद्र ने उसे 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी ताकि वो अपने पूर्वजों को भोजन दान कर सके। तब से इसी 15 दिन की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाने लगा।

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श्राद्ध की तिथि का पता न हो तब क्या करें

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जिस तिथि में हमारे पूर्वजों को मृत्यु की प्राप्ति हुई होती है उसी तिथि में उनका श्राद्ध किया जाता है। वैसे आमतौर पर मृत पूर्वजों (इन पौधों से करें पितरों को प्रसन्न) की तिथि ज्ञात होती है लेकिन यदि उनकी तिथि ज्ञात न हो तब शास्त्रों के अनुसार आश्विन अमावस्या को उनके लिए तर्पण किया जाता है। इससे सम्पूर्ण पितृपक्ष के फल की प्राप्ति होती है। इसलिये इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है।

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यदि श्रद्धा पूर्वक पितरों को याद करके उनका श्राद्ध उनकी मृत्यु की तिथि के अनुसार किया जाता है और भोजन आदि का दान दिया जाता है तब पितर अवश्य प्रसन्न होते हैं।

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Image Credit: pixabay

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