(why kaal bhairav puja is not done at home) हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के पूजा करने के नियम के बारे में बताया गया है। साथ ही विधिवत पूजा करना भी बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। वहीं अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा भी विभिन्न तरह से होती है। अगर इनका सही नियम और विधि न किया जाए, तो व्यक्ति को अशुभ परिणाम मिल सकते हैं और जीवन में भी परेशानियां आने लग जाता है। अब ऐसे में सवाल है कि घर में कालभैरव की पूजा क्यों नहीं करना चाहिए। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
घर में न करें कालभैरव की पूजा
शिवपुराण के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि काल भैरव भगवान शिव के अवतार हैं, लेकिन शिव जी के अवतार होने के बावजूद कालभैरव की प्रतिमा घर में नहीं रखा जाता है। कालभैरव की प्रतिमा खुले स्थान पर रखने की मान्यता है। इन्हें तंत्र विद्या का साधक माना जाता है। इनकी पूजा विशेष रूप से तंत्र कर्म के लिए की जाती है और तंत्र के कार्य बाहर खुले स्थान पर किया जाता है। इसलिए घर में कालभैरव की स्थापना घर नहीं की जाती है। वहीं कुछ लोग घर की सुंदरता को बढ़ाने के लिए नटराज की प्रतिमा भी रखते हैं। क्योंकि यह आकर्षिक दिखाई देता है, लेकिन घर में कभी नटराज की प्रतिमा नहीं रखना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि नटराज की मूर्ति शिव जी (शिव जी पूजा) के रौद्र रूप को दर्शाता है। भोलेनाथ को क्रोध स्वरूप से घर में अशांति और नकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ता है। इसलिए इनकी प्रतिमा घर में रखने से बचना चाहिए। इसलिए अगर आप घर में कालभैरव की प्रतिमा रख रहे हैं और पूजा करते हैं, तो ऐसा करने से बचें।
घर में बढ़ सकती है अशांति
भगवान शिव (शिव जी मंत्र) का रौद्र रूप व्यक्ति के जीवन में परेशानियां बढ़ा सकता है और कार्यों में भी बाधाएं आने लग जाती है। इसलिए घर में कभी भगवान शिव के कालभैरव स्वरूप की पूजा नहीं करना चाहिए।
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कालभैरव तामसिक प्रवृत्ति के देवता हैं
कालभैरव बेहद रौद्र माने जाते हैं और तंत्र साधना के देनता माने जाते हैं। साथ ही अगर आप इनकी प्रतिमा को घर में रखते हैं, तो इससे परिवार के सदस्य कभी खुश नहीं रहते हैं। इसलिए घर में भूलकर भी कालभैरव की प्रतिमा नहीं रखना चाहिए।
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कार्य सिद्धि के लिए कालभैरव मंत्र
कार्य सिद्धि के लिए कालभैरव के इस मंत्र का जाप 108 बार अवश्य करना चाहिए। इससे डर और भय से मुक्ति मिल सकती है और अगर आप इस मंत्र का जाप कर रहे हैं, तो उत्तर दिशा की ओर बैठकर मंत्र का जाप करें।
- ॐ कालाकालाय विद्महे,
- कालातीताय धीमहि,तन्नो काल भैरव प्रचोदयात् ||
- ॐ तीखदन्त महाकाय कल्पान्तदोहनम्। भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुर्माहिसि ।
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