भारतीय संस्कृति और ज्योतिष में मृत्यु के बाद के भी कुछ नियम बनाए गए हैं। उन्हीं नियमों में से एक है परिवार में किसी की भी मृत्यु होने पर लगने वाला सूतक काल। इस विशेष समय का महत्व जीवन और मृत्यु के चक्र से गहराई से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि जब परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु होती है, तो यह न केवल भावनात्मक क्षति का समय होता है बल्कि इस दौरान धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी विशेष नियमों का पालन किया जाता है। इन्हीं नियमों में से एक है सूतक काल, जो परिवार के सभी सदस्यों पर लागू होता है। सूतक काल को ज्योतिष में अशुद्धि का समय माना जाता है, जो मृत्यु के बाद तुरंत ही शुरू होता है और अंतिम संस्कार के बाद तरह दिनों तक चलता है। इस काल का समापन तेरहवीं के बाद होता है और उसके बाद ही कोई शुभ काम किए जा सकते हैं।
इस पूरी अवधि में कुछ धार्मिक, सामाजिक और व्यक्तिगत नियमों का पालन आवश्यक होता है। जैसे पूजा-पाठ से दूरी बनाए रखना, भोजन में सादगी का पालन करना, बाहरी लोगों से मिलना-जुलना न करना आदि।
ज्योतिष के अनुसार, मृत्यु के बाद परिवार में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ सकता है और सूतक काल के नियमों का पालन इन प्रभावों को कम करने और मानसिक शांति बनाए रखने में सहायक होता है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें इस विशेष समय के महत्व और इस दौरान पालन किए जाने वाले कुछ नियमों के बारे में विस्तार से।
मृत्यु के दौरान लगने वाले सूतक काल को पातक भी कहा जाता है। यह परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद बारह से सोलह दिनों के लिए दैनिक जीवन की गतिविधियों को त्यागने की अवधि मानी जाती है है। यह मृत व्यक्ति के परिवार के सभी सदस्यों और रिश्तेदारों द्वारा माना जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, जब किसी की मृत्यु हो जाती है, तो परिवार को बारह दिनों तक पातक का पालन करने की सलाह दी जाती है। इस अवधि में परिवार के लोग घर में गरुड़ पुराण का पाठ करते हैं और सूतक के नियमों का पूरी तरह से पालन करते हैं जिससे उनके जीवन में कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं होता है। परिवार के व्यक्ति की मृत्यु के तेरहवें दिन 'तेरहवीं संस्कार' मनाया जाता है और इसी दिन गरुड़ पुराण के पाठ का समापन होता है। इसी दिन मृत व्यक्ति के सभी सामानों को किसी जरूरतमंद को दे दिया जाता है, जिससे मृतक की आत्मा को शांति मिलती है।
सूतक काल भारतीय परंपरा और शास्त्रों में परिवार में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु होने के बाद की एक विशेष अवधि मानी जाती है। इसे अशुद्धि का समय माना जाता है, जिसमें परिवार के सदस्य धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों से दूर रहते हैं। सूतक काल का मुख्य उद्देश्य परिवार को बाहरी संपर्क से दूर रखना और शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक शुद्धि बनाए रखना है। शास्त्रों में इसे इस दृष्टि से भी देखा जाता है कि यह समय आत्म-निरीक्षण, प्रार्थना, और दिवंगत आत्मा के लिए शांति की प्रार्थना का अवसर प्रदान करता है। ज्योतिषीय दृष्टि से, सूतक काल को ऊर्जा संतुलन से भी जोड़ा जाता है।
सूतक काल को 'अशौच काल' भी कहा जाता है। यह उस समय को दर्शाता है जब परिवार में मृत्यु के बाद घर को शुद्ध करने और शोक मनाने का समय होता है। ज्योतिष और धार्मिक ग्रंथों में इसे एक ऐसी अवधि माना गया है जब घर की ऊर्जा प्रभावित होती है और परिवार के लोग मानसिक और भावनात्मक रूप से अस्थिर महसूस कर सकते हैं।
इसे जरूर पढ़ें: Hindu Beliefs: मृत्यु के बाद क्यों की जाती है तेरहवीं? जानें रोचक कारण
सूतक काल की अवधि परिवार के सदस्य की मृत्यु के तुरंत बाद शुरू होती है। यह अवधि आमतौर पर 13 दिनों तक चलती है, लेकिन विभिन्न समुदायों और परंपराओं में इसका समय अलग-अलग हो सकता है। मान्यता है कि हिंदू धर्म में यदि परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है, तो मृत्यु के दिन से लेकर दसवें दिन तक सूतक माना जाता है और मुख्य रूप से तेरहवें दिन यह काल समाप्त होता है। हालांकि इसका निर्धारण भी अलग-अलग परिवारों में अलग तरह से होता है। जैसे कुछ परिवारों में यह अवधि तीन या चार दिनों तक भी मानी जाती है। इस अवधि के लिए भी अलग मान्यताएं हैं।
सूतक काल में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता बनाए रखने के लिए कुछ विशेष नियमों का पालन करने की सलाह दी जाती है। आइए जानें इसके बारे में विस्तार से-
इसे जरूर पढ़ें: क्या वास्तव में मृत्यु के बाद 13 दिनों तक अपने घर में रहती है आत्मा, जानें क्या कहता है गरुड़ पुराण
सूतक काल को केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं देखा जाता है, बल्कि इसके पीछे कुछ वैज्ञानिक तर्क भी हो सकते हैं। मृत्यु के बाद घर में कई प्रकार के बैक्टीरिया और वायरस फैलने का खतरा होता है। सूतक काल में सफाई और शुद्धिकरण की प्रक्रिया को अपनाने से इन खतरों से बचा जा सकता है। इसके अलावा, यह समय परिवार को मानसिक रूप से स्थिर होने और शोक से उबरने का मौका देता है। धार्मिक और सामाजिक नियम परिवार को अनुशासन में रहने और एकजुट होकर इस कठिन समय का सामना करने में मदद करते हैं।
सूतक काल का पालन करना न केवल एक परंपरा है, बल्कि यह परिवार के भावनात्मक और आध्यात्मिक संतुलन को बनाए रखने का एक तरीका भी है।
आपकी इस बारे में क्या राय है, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
Images: freepik.com
यह विडियो भी देखें
Herzindagi video
हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, [email protected] पर हमसे संपर्क करें।