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Why is polygraph not admissible as evidence

Kolkata Rape Case: Indian Court में पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट को क्यों नहीं माना जाता है सबूत?

Kolkata Rape Murder Case: कोलकाता महिला डॉक्टर के रेप-मर्डर केस की गुत्थी सुलझाने के लिए रविवार को मुख्य आरोपी संजय रॉय का पॉलीग्राफ टेस्&zwj;ट किया गया था। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है, कि Indian Court में पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट मान्य नहीं माना जाता है। <div>&nbsp;</div>
Editorial
Updated:- 2024-08-27, 17:36 IST

कोलकाता में महिला ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुई दरिंदगी के बाद हत्या की खबर से पूरा देश सकते हैं। लेकिन इस केस में अभी तक कोई भी निर्णय नहीं आया। इस गुत्थी को सुलझाने के लिए केस में आए-दिन नए-नए खुलासे सामने आ रहे हैं। वहीं केस की आगे की कड़ी को सुलझाने के लिए बीते रविवार को मुख्य आरोपी संजय रॉय का पॉलीग्राफ टेस्‍ट किया गया। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पॉलीग्राफ टेस्ट और नार्को की रिपोर्ट इंडियन कोर्ट में मान्य नहीं मानती है। इस विषय को समझने के लिए हमने इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता नीतेश पटेल से बातचीत की। चलिए जानते हैं कि आखिर इन टेस्ट को कोर्ट वैलिड क्यों नहीं मानती है।

क्या होता है पॉलीग्राफ टेस्ट (What Is Polygraph Test)

What Is Polygraph Test

इस विषय को करीब से जानने के लिए पहले यह समझना होगा कि पॉलीग्राफ टेस्ट क्या होता है। बता दें, कि लाई डिटेक्टर मशीन को ही पॉलीग्राफ मशीन कहा जाता है, जो हृदय गति, पसीना, रक्तचाप और अन्य महत्वपूर्ण आंकड़ों का उपयोग करके यह पता लगाती है कि कोई व्यक्ति सच बोल रहा है या नहीं। अब, जब हम झूठ बोलते हैं, तो यह सच है कि हमारे महत्वपूर्ण अंग बदल जाते हैं, लेकिन यह सभी के लिए सच नहीं है। साथ ही, किसी व्यक्ति के आंकड़े बदलने के एक से अधिक कारण हो सकते हैं। हम कभी भी यह निश्चित रूप से नहीं बता सकते हैं कि व्यक्ति की दरें इसलिए बदली क्योंकि वह झूठ बोल रहा था। नार्को या पॉलीग्राफ टेस्ट किया जाता है, तो जो भी जानकारी एकत्र की जाती है, उसका उपयोग जांच एजेंसी (पुलिस, सीबीआई, एसआईटी, तथ्य खोज समिति, आदि) द्वारा साक्ष्य एकत्र करने के लिए किया जाता है। 

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चलिए जानते हैं कि क्यों मान्य नहीं पॉलीग्राफ या नार्को टेस्ट

अधिवक्ता नीतेश पटेल ने इस विषय पर बात करते हुए बताया कि पॉलीग्राफ या नार्को टेस्ट अनुच्छेद 20-सी यानी चुप रहने का अधिकार का उल्लंघन करता है। इसका मतलब यह है कि बेहोशी की हालत में कोई भी व्यक्ति जो कुछ भी कहता है, उसका इस्तेमाल पुलिस द्वारा अपनी आगे की जांच को दिशा देने के लिए कार्रवाई के रूप में किया जा सकता है, लेकिन इसका इस्तेमाल अदालत द्वारा किसी फैसले पर पहुंचने के लिए बयान के रूप में कभी नहीं किया जा सकता है।

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expert quote Why is a polygraph not admissible as evidence

पॉलीग्राफ टेस्ट में जा सकती है जान

नार्को और पॉलीग्राफ टेस्ट स्वतंत्रता के अधिकार के विरुद्ध है। इसका मतलब है कि संविधान आपको किसी घटना का विवरण बताने या न बताने का अधिकार देता है। आप ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं या नहीं। लेकिन पॉलीग्राफ या नार्को टेस्ट करवाना आपके निर्णय को बाधित कर सकता है। चिकित्सकीय दृष्टि से इस टेस्ट को अनैतिक माना जाता है। गवाह को बेहोश करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं (सोडियम थियोपेंटल, सोडियम एमीटल और स्कोपोलामाइन काफी पावरफुल होती हैं। अधिक मात्रा में इन दवाओं को लेने से बेहोशी, कोमा या मृत्यु हो सकती है।

नार्को टेस्ट नहीं होता 100 प्रतिशत सही 

नार्को टेस्ट किसी व्यक्ति से सच पूछने का कोई पक्का तरीका नहीं है। कुछ लोगों में बेहोशी की अवस्था में भी झूठ बोलने और धोखा देने की क्षमता बनी रहती है। ऐसे मामले में, वे बेहोशी की हालत में भी काम करते रहेंगे, लेकिन वे वही बोलेंगे जो वे चाहते हैं, न कि वह जो वे वास्तव में जानते हैं। अदालत नार्को/पॉलीग्राफ टेस्ट के आधार पर किसी भी आरोपी को दोषी घोषित  नहीं कर सकती है। हालांकि, न्यायालय द्वारा स्वीकृत नार्को परीक्षण के मामले हमेशा से रहे हैं। भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अभियुक्त की सहमति के बाद इसकी अनुमति दी है। इसके अलावा, राष्ट्रीय हितों और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े कुछ मामलों में न्यायालय द्वारा नार्को परीक्षण की अनुमति दी जा सकती है, जैसे कि मध्य प्रदेश में बाघ शिकार का मामला और आतंकवादियों के साथ कई मौकों पर।

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