किसी भी दोषी को सजा सुनाने के लिए हर देश में अदालत होती है। आपने भी कई बार किसी मुकदमें को डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से हाईकोर्ट और यहां से फिर सुप्रीम कोर्ट में ट्रांस्फर होते सुना होगा, लेकिन क्या आपको पता है कि ऐसा क्यों होता है और ये कैसे काम करता है? अगर नहीं जानते हैं, तो चलिए आज हम आपको बताते हैं। साथ ही, भारत में कितने तरह के कोर्ट मौजूद हैं, इस बारे में भी हम यहां विस्तार से जानेंगे।
भारत में मुख्य रूप से 6 तरह की अदालते मौजूद हैं। इनमें सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, ट्रिब्यूनल, फास्ट ट्रैक कोर्ट और लोक अदालत शामिल हैं। ज्यादातर मामलों की जांच और सुनवाई इसी कोर्ट में होती है। चलिए अब आपको इन अदालत के काम के बारे में जानते हैं।
सुप्रीम कोर्ट को देश का सर्वोच्च न्यायालय कहा जाता है। यह यदि किसी मामले में अपना फैसला सुना दे, तो फिर इसे बदलना मुश्किल होता है। इसके फैसले को या तो राष्ट्रपति को अपील करके बदला जा सकता है या फिर सुप्रीम कोर्ट की ही किसी बड़ी बेंच द्वारा मामले पर दोबारा सुनवाई हो सकती है।
जानकारी के लिए बता दें कि हाईकोर्ट किसी भी राज्य की सबसे बड़ी अदालत होती है, जो सुप्रीम कोर्ट के ठीक नीचे आती है। हाईकोर्ट अगर किसी मुकदमे में कोई फैसला दे देता है, तो उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट को तो आप नाम से ही समझ सकते हैं कि यह हर जिले में होती है। इसके अंदर जिले भर में होने वाले मामले की सुनवाई होती है। बता दें, यहां के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
ट्रिब्यूनल का मतलब होता है- अर्द्ध-न्यायिक संस्था। इसकी स्थापना प्रशासनिक या कर-संबंधी विवादों को हल करने के लिए की गई है।
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फास्ट ट्रेक कोर्ट एक स्पेशल कोर्ट है, यह तब काम करता है, जब किसी मामले में फैसला तेजी से चाहिए होता है। इस तरह के केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में डाला जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि फास्ट ट्रैक कोर्ट में ज्यादातर बलात्कार और पॉक्सो के मामलों की सुनवाई की जाती है।
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लोक अदालत में दोनों पक्षों के बीच समझौता करके मामले को शांति से निपटाया जाता है। अगर आप किसी मामले में दोनो पक्षों के मुकदमेबाजी से बचना चाहते हैं और आपस में सुलह करना चाहते हैं, तो ऐसे में आप लोक अदालत का रुख कर सकते हैं।
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