इंटरनेट और सोशल मीडिया का इस्तेमाल आज के समय में बहुत लोग कर रहे हैं, लेकिन जरूरी नहीं है कि हर कोई इसे सही तरीके से इस्तेमाल कर रहा हो। आजकल बच्चे हो या बड़े सोशल मीडिया के सभी प्लेटफॉर्म पर कंटेंट कंज्यूम कर रहे हैं, जिससे उनके दिमाग पर सही और गलत दोनों तरह के असर पड़ रहा है। बता दें कि सोशल मीडिया और इंटरनेट के आने के बाद साइबर क्राइम, सोशल मीडिया अब्यूस, हैरेसमेंट, कमेंट और मैसेज के माध्यम से यूजर्स को परेशान करना, स्टॉक करना जैसे कई सारी समस्याओं का सामना आज के सोशल मीडिया यूजर्स को करना पड़ रहा है। बता दें कि ऑनलाइन अब्यूस और हैरेसमेंट से यूजर्स मानसिक रूप से परेशान होते हैं। ऐसे में हमने अलहाबाद हाई कोर्ट के वकील आजाद खान से इस विषय में बातचीत की और उन्होंने कुछ कानूनी उपाय हमारे साथ शेयर किया है, जिससे आप, आपका परिवार का कोई सदस्य, आपका दोस्त या आपके जानकार में कोई व्यक्ति ऑनलाइन हैरेसमेंट या अब्यूस का शिकार हो रहा है तो वह इसके खिलाफ आवाज उठा सकता है और इन कानूनों की मदद से लीगल हेल्प ले सकता है।
इन कानूनी तरीकों से सोशल मीडिया पर हो रहे उत्पीड़न से खुद को बचाएं
साइबर क्राइम सेल में शिकायत दर्ज करें:
अगर आपको ऑनलाइन हैरेसमेंट का सामना करना पड़ रहा है, तो तुरंत साइबर क्राइम सेल में शिकायत दर्ज करें। इसके अलावा शिकायत दर्ज करवाने से पहले, कॉल रिकॉर्ड, स्क्रीन शॉर्ट और मैसेज एवं वीडियो को सेव जरूर करें, ताकि आप सबूत के तौर पर जमा कर सकें।
IPC की धारा 354D (स्टॉकिंग) का उपयोग करें:
अगर कोई व्यक्ति आपको सोशल मीडिया में मैसेज, वीडियो, ऑडियो या फिर फोन कॉल के माध्यम से बार-बार परेशान कर रहा है, तो आप इस धारा के तहत शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
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IPC की धारा 499 (मानहानि) का उपयोग करें:
अगर किसी ने सोशल मीडिया पर आपके खिलाफ झूठी बातें फैलाई हैं, तो आप इस धारा का सहारा ले सकते हैं। अक्सर आरोपी विक्टिम के इमेज को खराब करने के लिए सोशल मीडिया में वीडियो, इमेज को अपलोड करने या एडिट कर कंटेंट को अपलोड कर इमेज खराब करने की कोशिश करते हैं। ऐसे में आप इस धारा के तरह आरोपी के ऊपर केस फाइल करवा सकते हैं।
आईटी एक्ट, 2000 की धारा 66A:
इस धारा के तहत आप ऑनलाइन हैरेसमेंट और आपत्तिजनक मैसेज, वीडियो के लिए कार्रवाई कर सकते हैं। यह धारा खास तौर से ऑनलाइन अब्यूस और हैरेसमेंट के खिलाफ काम करती है।
IPC की धारा 507 (धमकी भरे कॉल/मैसेज):
अगर आपको धमकी भरे कॉल या मैसेज मिल रहे हैं, तो इस IPC की धारा 507 का उपयोग कर सकते हैं। यह आपको आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करने में मदद करती है।
किशोर न्याय अधिनियम:
अगर उत्पीड़न करने वाला नाबालिग है, तो आप इस अधिनियम के तहत उत्पीड़न करने वाले के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। आजकल सभी के पास इंटरनेट और स्मार्टफोन हैं, जिससे बच्चे सही और गलत दोनों तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं।
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पुलिस में FIR दर्ज करें:
उत्पीड़न के किसी भी प्रकार के खिलाफ आप स्थानीय पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करवा सकते हैं। यदि आपको कानून की जानकारी नहीं है, तो आप इंटरनेट या स्थानीय पुलिस या वकील की सहायता लें और अपराधी के खिलाफ केस फाइल करवाएं।
रिस्ट्रेनिंग ऑर्डर:
अदालत से आप उस व्यक्ति के खिलाफ रिस्ट्रेनिंग ऑर्डर ले सकते हैं जो आपको लगातार परेशान कर रहा है। रिस्ट्रेनिंग ऑर्डर एक कानूनी आदेश है जो किसी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति से संपर्क करने, उसके पास जाने, या उसे किसी भी प्रकार से परेशान करने से रोकता है। इसे आमतौर पर तब जारी किया जाता है जब किसी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से खतरा होता है, जैसे कि उत्पीड़न, हिंसा, या धमकी।
मानव अधिकार आयोग:
उत्पीड़न के मामलों में आप मानव अधिकार आयोग में भी शिकायत कर सकते हैं। यहां भी आपकी सहायता होगी, लेकिन ध्यान रखें कि आपके पास उत्पीड़न कर्ता के खिलाफ सबूत जरूर हो।
सेल्फ-डिफेंस कोर्स:
मानसिक और शारीरिक रूप से सक्षम रहने के लिए सेल्फ-डिफेंस कोर्स में भाग ले सकते हैं। यह आपको अपनी सुरक्षा करने में सहायता करेगा, शहरों में कई सारे ट्रेनिंग सेंटर मिल जाएंगे।
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Image Credit: cpj.org, static.vecteezy.com, www.eap-india.com, shutterstock
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