आखिर क्या होती है चार्जशीट और किसी भी कोर्ट या कचहरी में क्या है इसकी अहमियत

चार्जशीट आपराधिक मामले में जांच पूरी होने के बाद पुलिस अधिकारी या जांच एजेंसी द्वारा तैयार की जाने वाली अंतिम रिपोर्ट होती है। दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 173 के तहत दायर की जाती है।

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अदालती प्रक्रिया में या फिर खबरों में आपने चार्जशीट शब्द के बारे में जरूर सुना होगा। लेकिन, क्या आप जानते हैं चार्जशीट का क्या मतलब होता है और किसी भी कोर्ट या कचहरी में क्या है इसकी क्या अहमियत होती है। अगर नहीं, तो आइए जानते हैं क्या होती है चार्जशीट?

क्या है चार्जशीट (What is a charge sheet)

असल में चार्जशीट, आपराधिक अदालत में अपराध के आरोप को साबित करने के लिए तैयार की गई आखिरी रिपोर्ट होती है। यह एक लिखित दस्तावेज होती है, जिसे पुलिस अधिकारी या जांच एजेंसी मामले की जांच पूरी करने के बाद तैयार करती है।

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चार्जशीट में पीड़ित व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दिए गए संज्ञेय अपराध के बारे में लिखित या मौखिक जानकारी शामिल होती है। चार्जशीट में ये बातें शामिल होनी चाहिए, नामों का विवरण, सूचना की प्रकृति और अपराध क्या है। यह रिपोर्ट दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 173 के तहत दायर की जाती है। इसमें एफ़आईआर दर्ज करने की प्रक्रिया से लेकर जांच पूरी होने और रिपोर्ट तैयार होने तक के सभी रिकॉर्ड शामिल होते हैं। चार्जशीट तैयार करने के बाद, पुलिस स्टेशन का प्रभारी इसे एक मजिस्ट्रेट को भेज देता है। मजिस्ट्रेट को चार्जशीट में बताए गए अपराधों का संज्ञान लेने का अधिकार होता है, ताकि आरोप तय किए जा सकें।

चार्जशीट दाखिल होने के बाद, मजिस्ट्रेट अपराध का संज्ञान लेते हैं और व्यक्ति को अभियुक्त माना जाता है। इसके बाद, अदालत यह तय करती है कि अभियुक्तों में से किसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। अदालत द्वारा आरोप तय करने के बाद, न्यायिक प्रणाली में अभियुक्तों के खिलाफ इल्जाम के तौर पर कार्यवाही शुरू हो जाती है।

कब पूरी मानी जाती है चार्जशीट (When is the charge sheet considered complete)

चार्जशीट को चार-भाग वाले चार्जिंग इंस्ट्रूमेंट्स के नाम से भी जाना जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चार्जशीट ऐसी होनी चाहिए कि उससे साबित हो जाए कि अपराध कब, कहां, कैसे और किस सोच से हुआ था। चार्जशीट तब पूरी मानी जाती है, जब कोई आपराधिक मामला आगे किसी और सबूत पर निर्भर न करे।

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चार्जशीट को पुलिस अदालत में 90 दिनों के भीतर तैयार करके प्रस्तुत करती है। यह अदालत को आरोपी के खिलाफ आरोप स्थापित करने में मदद करती है और उसे आगामी कानूनी प्रक्रिया के लिए तैयार करती है। अगर अदालत को यकीन होता है कि प्रमाण अपर्याप्त हैं या अपराध नहीं हुआ है, तो वह आरोप को निरस्त कर सकती है। वहीं, चार्जशीट में भारतीय दंड संहिता (IPC) या अन्य प्रासंगिक कानूनों की उन स्पेशल धाराओं का उल्लेख किया जाता है, जिनके तहत आरोपी पर आरोप लगाया गया है।

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चार्जशीट पीड़ित को न्याय दिलाने में मदद करती है। यह पीड़ित को आरोपों और साक्ष्यों से अवगत कराता है और उन्हें न्यायिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है। चार्जशीट आपराधिक न्याय प्रणाली की नींव मानी जाती है। यह आरोपी और राज्य दोनों के लिए न्याय करने की अहम भूमिका निभाता है।

चार्जशीट दाखिल होने के बाद क्या होता है? (What happens after the chargesheet is filed)

1. समन जारी करना (To issue summon)

जांच अधिकारी द्वारा चार्जशीट दाखिल किए जाने के बाद, अदालत अभियुक्तों (Accused) को समन जारी करती है। समन में आरोपों का विवरण, तारीख और समय, स्थान जहां अदालत में हाजिर होना है, और अन्य प्रासंगिक जानकारी शामिल होती है।

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2. हाजिरी (Attendance)

समन पाने के बाद, अभियुक्तों को निर्धारित तिथि और समय पर अदालत में हाजिर होना होता है। अगर अभियुक्त हाजिर नहीं होते हैं, तो अदालत वारंट जारी कर सकती है या अन्य दंडात्मक कार्रवाई कर सकती है।

3. आरोप तय करना (Framing of charges)

अभियुक्तों के हाजिर होने के बाद, अदालत आरोपों को तय करती है। इस प्रक्रिया में, अभियोजन पक्ष आरोपों का समर्थन करने के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करता है, और अभियुक्त पक्ष इनकार करता है या बरी होने का आधार प्रस्तुत करता है। अदालत साक्ष्यों का मूल्यांकन करती है और निर्णय लेती है कि आरोप साबित हुए हैं या नहीं।

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4. ट्रायल (Trial)

अगर अदालत यह निर्णय लेती है कि आरोप साबित हुए हैं, तो ट्रायल शुरू होता है। ट्रायल के दौरान, दोनों पक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं, गवाहों की जिरह (cross-examination) करते हैं, और तर्क देते हैं। अदालत साक्ष्यों का मूल्यांकन करती है और निर्णय लेती है कि अभियुक्त दोषी है या निर्दोष।

5. फैसला (Decision)

अगर अदालत अभियुक्त को दोषी ठहराती है, तो वह उन्हें सजा सुनाती है। सजा अपराध की गंभीरता, अभियुक्त के आपराधिक इतिहास, और अन्य प्रासंगिक कारकों पर निर्भर करती है। अगर अदालत अभियुक्त को निर्दोष ठहराती है, तो उन्हें बरी कर दिया जाता है और उन्हें मुक्त कर दिया जाता है।

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Image Credit- freepik

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