यह तो हम सभी जानते हैं और इस पर गर्व करते हैं कि भारत एक बहुभाषी देश है, जहां व्यक्ति को अपनी मातृभाषा बोलने का अधिकार है। किसी के ऊपर दूसरी भाषा जानने या बोलने का कोई दबाव नहीं है।
जनगणना विश्लेषण के अनुसार, भारत में 10,000 या उससे अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली 121 भाषाएं हैं ? एक जनगणना के विश्लेषण के अनुसार, भारत में 19,500 से ज्यादा भाषाएं मातृभाषा के रूप में बोली जाती हैं।
इसी तरह बात जब सांसद में कम्यूनिकेट करने की आती है, तो नेता या सांसद कम्यूनिकेट कैसे करते होंगे? आपको बता दें कि हमारी संसद में मुख्य रूप से हिंदी और अंग्रेजी में कार्यवाही होती है, लेकिन हर सांसद इन भाषाओं में सहज नहीं होता। संविधान के अनुच्छेद 120 के तहत, यदि कोई सांसद हिंदी या अंग्रेजी में सहज नहीं है, तो वह अपनी क्षेत्रीय भाषा में बोल सकता है।
अब सवाल है कि यदि कोई सांसद अपनी क्षेत्रीय भाषा में बात करेगा, तो वह बाकी मौजूद सांसदों को कैसे समझ आएगी? उनके लिए स्पीच या भाषा को समझने में आसानी हेडफोन्स के जरिए होती है। आपने देखा होगा कि जब कोई स्पीच देता है, तो ज्यादातर सांसद हेडफोन्स पहने रहते हैं। ऐसा वे लोग क्यों करते हैं और इसका हमारे संविधान से क्या कनेक्शन है, चलिए जानते हैं।
जब कोई सांसद किसी भाषा में बोलता है, तो अनुवादक उसकी बात को अन्य भाषाओं में अनुवाद कर सांसदों को हेडफोन के जरिए सुनाते हैं। इससे सभी सांसद संसद में होने वाली बहस और चर्चाओं को समझ पाते हैं और अपनी राय प्रभावी ढंग से रख सकते हैं।
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क्या आपको पता है कि भारत के संविधान में संसद की भाषा को लेकर स्पष्ट नियम दिए गए हैं। यह इस प्रकार हैं-
संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को आधिकारिक दर्जा दिया गया है। इसका मतलब है कि संसद में कोई भी सांसद इन 22 भाषाओं में से किसी भी भाषा में अपनी बात रख सकता है। चूंकि हर सांसद इन सभी भाषाओं को नहीं समझता, इसलिए संसद में तत्काल अनुवाद की व्यवस्था की गई है, जिससे सांसद हेडफोन लगाकर अपनी समझ की भाषा में भाषण सुन सकते हैं।
इस अधिनियम के तहत, संसद में हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी का भी उपयोग जारी रहेगा। इससे यह सुनिश्चित किया गया कि गैर-हिंदी भाषी सांसदों को किसी भी तरह की परेशानी न हो और वे भी संसद की चर्चाओं में पूरी तरह भाग ले सकें।
भारत की संसद में तत्काल अनुवाद प्रणाली बहुत ही आधुनिक है और इसे इस तरह तैयार किया गया है कि सांसदों को तुरंत अनुवाद मिल सके। यह प्रणाली इस प्रकार काम करती है:
अनुवाद कक्ष (Translation Booths): संसद में विशेष अनुवादक मौजूद होते हैं, जो सांसदों के भाषणों को तुरंत अन्य भाषाओं में अनुवाद करते हैं।
हेडफोन के जरिए अनुवाद: सांसद अपने हेडफोन में एक चैनल चुनते हैं, जिससे वे अपनी मनपसंद भाषा में अनुवाद सुन सकते हैं।
रियल-टाइम अनुवाद: यह पूरी प्रक्रिया लाइव होती है, ताकि सांसद बिना किसी देरी के तुरंत प्रतिक्रिया दे सकें। यह व्यवस्था संसद में समावेशिता बनाए रखने और सभी सांसदों को समान अवसर देने के लिए की गई है।
संसद में हेडफोन पहनने की परंपरा से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं:
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ऊपर बताई गई जानकारी से आपको पता लगा ही होगा कि सांसदों के लिए हेडफोन कितने जरूरी होते हैं। यह न सिर्फ भाषा को समझने में मदद करता है, बल्कि इसके अन्य फायदे भी हैं-
भले ही वर्तमान की यह प्रणाली काफी प्रभावी है, लेकिन इसमें अभी भी कुछ सुधारे होने बाकी हैं। जैसे, आठवीं अनुसूची के अलावा भी कुछ क्षेत्रीय भाषाओं के लिए अनुवाद की सुविधा बढ़ाई जा सकती है।
भविष्य में एआई आधारित अनुवाद प्रणाली अपनाई जा सकती है, जिससे काम और तेज हो जाएगा। नए सांसदों को संसद की भाषा नीतियों के बारे में जागरूक करने के लिए विशेष वर्कशॉप कराई जा सकती हैं।
अब जब भी आप किसी सांसद को हेडफोन पहने हुए देखें, तो समझ लीजिए कि वह सिर्फ सुन नहीं रहा है, बल्कि भारत की सबसे समावेशी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग ले रहा है।
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