प्रयागराज में 144 साल बाद लगे महाकुंभ का समापन समीप ही हैं। 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के साथ ही महाकुंभ का समापन हो जाएगा। महाकुंभ जब आरंभ हुआ था तब साधु-संतों और नागाओं के आखाड़ों का जमावड़ा देखने को मिला था, वहीं, अब सभी अखाड़े फिर चाहे वो साधु-संतों के हों या नागा साधुओं के सभी महाकुंभ से जा रहे हैं।
जहां एक ओर अन्य साधु-संतों के अखाड़े फिर भी किसी न किसी धार्मिक पर्व के दौरान नजर आ जाते हैं तो वहीं, दूसरी ओर नागा साधु कुंभ से जाने के बाद गायब ही हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि कुंभ से जाने के बाद नागा साधु पुनः हिमालय की गोद में अपनी अखंड और कठोर तपस्या शुरू कर देते हैं। इस बार भी महाकुंभ से नागा साधु जा चुके हैं, लेकिन अब सवाल ये उठता है कि अगली बार दोबारा नागा साधु कब और कहां नजर आएंगे। आइये जानते हैं इस बारे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से।
महाकुंभ के बाद कब और कहां दिखेंगे नागा साधु?
धार्मिक ग्रंथों में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि नागा साधुओं के जीवन में भगवान शिव के तप के अतिरिक्त और कुछ महत्वपूर्ण नहीं होता है। भगवान शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करना इनके जीवन का एक मात्र लक्ष्य है। हां, धर्म की रक्षा के लिए भी ये किसी सिपाही की तरह तैयार रहते हैं।
ऐसा माना जाता है कि अपने कठोर तप और हठ योग से ये भगवान शिव का परम सानिध्य पाते हैं और इनके द्वारा किये गए हर एक कृत्य के पीछे महादेव का आदेश छिपा होता है। जो वास्तविक नागा साधु होते हैं वह कुंभ के बाद हिमालय में जाकर शिव-शक्ति की अनन्य आराधना में लीन हो जाते हैं।
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इसके अलावा, नागा साधुओं को महाकुंभ में अपने वास्तविक रूप में जाने की अनुमति भगवान शिव द्वारा दी गई है। इसके अलावा, ये किसी भी सांसारिक-धार्मिक पर्वों में हिस्सा नहीं ले सकते हैं। चूंकि अब महाकुंभ समाप्त होने को है और नागा साधु भी लौट चुके हैं तो इसके बाद अब ये बनारस में दिखेंगे।
महाशिवरात्रि आ रही है और महाशिवरात्रि के दिन शमशान तपस्या एवं अपनी असामान्य पूजा से भगवान शिव की कृपा पाने के लिए सभी नागा साधु महाकुंभ से सीधा वाराणसी जाएंगे और वहां अपने दर्शनों एवं अपनी आराधने के अंतिम चरण को पूरा करेंगे। बनारस में नगा साधु गंगा स्नान करेंगे।
फिर इसके बाद भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ में जलाभिषेक कर मसान होली खेलेंगे। बता दें कि होली एक सांसारिक पर्व है जिसमें रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। इसी कारण से नागा साधु मसान होली खेलते हैं जिसमें जलाए गए शव की राख को रंग के रूप में उड़ाया जाता है।
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महाकुंभ से महाशिवरात्रि और फिर महाशिवरात्रि से मसान होली तक का सफ़र तय करने के बाद नागा साधु हिमालय तपस्या के लिए चले जाएंगे। वहीं, कुछ नागा साधु जंगल में भी तपस्या करते हैं। अब 2027 में नासिक कुंभ या फिर 2037 में पूर्ण कुंभ में ही नागा साधुओं के दोबारा दर्शन होंगे।
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image credit: herzindagi
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