मुस्लिम समुदाय के लोग दुनिया भर में ज्यादातर देशों में मौजूद हैं और वे अपने जीवन को इस्लामी मूल्यों, सिद्धांतों और नियमों के आधार पर चलाते हैं। इस्लाम में अक्सर ईमानदारी, न्याय, सच्चाई और दया को महत्व दिया जाता है। मुस्लिम समुदाय के लोग अपने धार्मिक और सामाजिक जीवन में इन मूल्यों का पालन करने की कोशिश करते हैं। इस्लाम में कुल 5 फर्ज होते हैं, जिन्हें अपने दिनचर्या में नमाज पढ़ना, रमजान के महीने में रोजा रखना, जकात करना, हज की यात्रा पर जाना और कलमा पढ़ने का पालन करना होता है। इसके साथ ही इस्लाम धर्म मानने वाले लोग सुन्नत और वाजिब का भी पालन करते हैं। आइए आज हम जानते हैं कि इस्लाम में सुन्नत और वाजिब के बीच क्या फर्क है?
इस्लाम में, खास तौर ये पांच फर्ज क्यों वाजिब हैं, जिन्हें मुस्लिमों को अपनाना चाहिए
1. कलमा
इस्लाम का पहला और बेहद अहम अकीदत, जिसे 'ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह' कहा जाता है। जिसका मतलब है कि एक ईश्वर के सिवा कोई मौजूद नहीं है, और मुहम्मद (सल्ललाहु अलैहि वसल्लम) उनके दूत हैं। यह मुस्लिमों का सबसे खास आदर्श है और उनकी धार्मिक पहचान का आधार है। कलमा को मानने वाले शख्स को मुस्लिम समुदाय का हिस्सा माना जाता है, और यह मंत्र उनके धार्मिक समर्थन का खास प्रतीक है। इसके अलावा, कलमा मुस्लिमों के बीच एकता, भाईचारे और सामाजिक समर्थन का एक जरिया भी है। आमतौर पर इस मंत्र को कभी भी पढ़ा जा सकता है, लेकिन यह लाइन हर पैदा होने वाले मुस्लिम बच्चे के कान में पढ़ी जाती है। साथ ही दुनिया से विदा हो रहे किसी मुस्लिम शख्स के कानों में भी पढ़ी जाती है।
2. नमाज
नमाज इस्लाम में बेहद खास आध्यात्मिक अभ्यास है, जिसमें हर रोज पांच वक्त अल्लाह की इबादत की जाती है। अजान होने के बाद, यह मुसलमानों को अल्लाह की याद दिलाता है और उन्हें उसकी आज्ञाओं का पालन करने के लिए प्रेरित करता है। पांच वक्त की नमाज (फज्र, जोहर, अस्र, मगरिब और ईशा) होती है। जिसे सुबह से रात होने तक अलग-अलग समय पर पढ़ी जाती है। नमाज के दौरान कुरान की आयतें पढ़ी जाती है और नमाज खत्म होने के बाद अल्लाह से रहमत और बरकत की दुआएं मांगी जाती है। इसके साथ ही नमाज खासकर जुमा यानी शुक्रवार और ईद की नमाज सामूहिक तौर से अदा की जाती है। पांच वक्त के नमाज को भी समूह में पढ़ी जाती है, शामिल न हो पान पर अकेले भी अदा किया जा सकता है।
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3. जकात
यह सामाजिक और आर्थिक न्याय का एक बेहतरीन साधन है, जिसमें मालिक अपनी माल-सम्पत्ति का एक निश्चित हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को देता है। जकात सामाजिक और आर्थिक न्याय को बढ़ावा देती है। यह अमीर और गरीब के बीच की खाई को कम करने में मदद करती है। जकात का खास मकसद समाज के निर्धन और जरूरतमंद लोगों की मदद करना होता है।
4. रोजा
यह रमजान के महीने में रोजा रखना, यानी दिन भर का उपवास करना, इस्लाम में वाजिब कामों में से एक है। ऐसी मान्यताएं हैं कि जब कोई एक शख्स रोजा रखता है, तो वह खाने-पीने और बुरे ख्यालों से दूर रहता है। इससे उसकी आत्मा और मन पवित्र होते हैं और वह अल्लाह के करीब आता है। रोजा रखने से किसी को भी भूख और प्यास का एहसास होता है, जिससे उसे गरीब और भूखे लोगों की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
5. हज
हज, जो सालाना मक्का के लिए यात्रा करने को कहा जाता है, इस दौरान मस्जिद-ए-हरम में तवाफ करना होता है। मुस्लिमों को वाजिब कामों में से एक है, जो वे अपने जीवन में कम से कम एक बार पूरा करने की कोशिश करते हैं। यह पांच फर्ज यानी अर्कान-ए-इस्लाम में से एक है हज के दौरान हाजी अपने गुनाहों के लिए तौबा करता है, इसमें कई तरह की धार्मिक क्रियाएं होती हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए खुद पर काबू करना और संयम की जरूरत होती है। हाजी यानी हज करने वाले शख्स को अपने व्यवहार और विचारों पर कंट्रोल रखना पड़ता है, जिससे उसे शब्र का महत्व समझ में आता है।
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इस्लाम में सुन्नत और वाजिब के बीच क्या है फर्क?
इस्लाम में, 'फर्ज' और 'सुन्नत' दो ऐसे खास शब्द हैं, जो धार्मिक काम को डिस्क्राइब करता है। फर्ज (Fardh) Obligatory या Duty ये वही काम होते हैं, जो मुसलमान के लिए वाजिब यानी अनिवार्य होते हैं और उन्हें अपनी जीवन में लगातार इन चीजों को निभाना चाहिए। जबकि, फर्ज कामों का ना करना गुनाह माना जाता है।
वहीं, सुन्नत (Sunnah) Recommended या Optional ये वह काम होते हैं, जो प्रोफेट यानी पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपनी आदतों और तौर-तरीकों को सिखायी थी, लेकिन उन्होंने करने पर गुनाह नहीं होता। ये काम जैसे, शादी करना, फर्ज नमाज के बाद पढ़ी जाने वाली सुन्नत नमाज और किसी जरूरतमंद को खाना खिलाना। आम तौर पर फर्ज कामों को अदा करना धार्मिक जिम्मेदारी माना जाता है, जबकि सुन्नत कामों को करने से कोई एक शख्स अपने आत्मा को धार्मिक तौर रक संवार सकता है और अपने जीवन में आसपास के लोगों को प्रेरित कर सकता है।
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