इस्लाम में हज हर मुस्लिम के लिए जरूरी क्यों होता है, इसे समझने के लिए इन बिंदुओं से समझा जा सकता है। इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक होने के नाते, हज हर मुस्लिम के लिए बेहद खास है। हज की यात्रा पर जाना, हजरत इब्राहिम (अ.स.) और उनके बेटे हजरत इस्माइल (अ.स.) द्वारा किए गए बलिदान को दर्शाता है। यह मुसलमानों को पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) द्वारा सिखाई गई तरीकों का पालन करने का मौका होता है।
हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, जिन्हें एक सच्चे मुस्लिम के तौर में पालन करना जरूरी माना जाता है। यह पांच स्तंभ हैं, शाहदा (ईमान का उच्चारण), सलाह (नमाज), जकात (दान), सॉम (रमजान का रोजा) और हज (मक्का की यात्रा)। हज का पालन करना एक धार्मिक कर्तव्य है, जो हर मुस्लिम पर जीवन में एक बार अनिवार्य है।
हज का मकसद मुसलमानों को अल्लाह के प्रति अपनी इमान और ईबादत को जाहिर करने का मौका मिलता है। यह यात्रा उन्हें अपने गुनाहों से माफी मांगने और एक नए जीवन की शुरुआत करने का मौका देती है।
हज के दौरान, सभी नस्लों, देशों और संस्कृतियों के मुसलमान इकट्ठा होते हैं और एक समान पोशाक यानी एहराम पहनते हैं, जिससे समानता और एकता का मैसेज मिलता है। यह उनके बीच की भौतिक और सामाजिक दूरी को मिटाने का प्रतीक है।
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हज के दौरान किए जाने वाले धार्मिक रसमों में तवाफ यानी काबा के चारों ओर परिक्रमा, सई यानी सफा और मरवा के बीच दौड़ना और अराफात का ठहराव शामिल हैं। ये रसम पैगंबर इब्राहिम (अलैहि सलाम) और उनके परिवार की याद में किए जाते हैं, जो इस्लाम के अहम धार्मिक घटनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
हज के दरमियान मुसलमान अपने धार्मिक समुदाय का हिस्सा बनते हैं और दुनियाभर की मुस्लिम बिरादरी के साथ अपने रिवाज शेयर करते हैं। यह उन्हें दुनियाभर के इस्लामी समुदाय के साथ जोड़ता है और उनकी धार्मिक पहचान को मजबूत करता है।
हज और उमराह दोनों ही इस्लामिक तीर्थयात्राएं हैं, जो सऊदी अरब के मक्का शहर में होती हैं। हालांकि, दोनों में कुछ खास अंतर हैं। हज इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने धू-अल-हिज्जाह में किया जाता है। यह 8 से 12 धू-अल-हिज्जाह के बीच कई दिनों तक चलता है। उमराह साल भर कभी भी किया जा सकता है। हज और उमराह के बीच का एक फर्क यह भी है कि हज मुस्लमानों पर फर्ज है और उमराह फर्ज नहीं है। इसमें भी एक शर्त है कि साहिबे हैसियत यानी माली तौर पर मजबूत लोगों के लिए लागू होता है, आर्थिक कमजोर लोगों पर कोई दबाव नहीं है।
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उमराह में तवाफ यानी काबा की परिक्रमा करना, सई यानी सफा और मारवा पहाड़ियों के बीच सात बार दौड़ना , मुंडन या बाल कटवाना और पुरुषों के लिए इहराम यानी सफेद कपड़ा पहनना। हज में उमराह के सभी रसम के साथ-साथ कुछ और भी मान्यताएं हैं, जैसे कि अराफात में खड़ा होना, मुजदलिफा में कंकड़ मारना और रमी में बलिदान करना। उमराह कुछ घंटों में अदा की जाती है, हज पूरा करने में कम से कम एक हफ्ते का समय लगता है। हज केवल ईद उल अजहा यानी बकरीद के दौरान किया जाता है। जबकि उमरा हज के दिनों को छोड़कर पूरे साल में कभी भी किया जा सकता है। इसके साथ ही हज के दौरान हाजियों को मक्का में ही कुर्बानी करानी पड़ती है।
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