भारत में सभी धर्म के लोग रहते हैं जो अपनी श्रद्धा के अनुसार अल्लाह, भगवान या फिर ईश्वर को मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। हर धर्म में हर चीज का एक Scientific Reason होता है, जिससे लोगों को कई तरह से मानसिक और शारीरिक रूप से फायदा होता है जैसे- पूजा करने से मन को शांति मिलती है, नमाज़ पढ़ने से कई स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। आपने यकीनन मुसलमानों की हज यात्रा के बारे में सुना होगा।
यह यात्रा सऊदी अरब के मक्का में मुसलमानों द्वारा साल में एक बार जरूर की जाती है क्योंकि यह इस्लाम की पांच बुनियाद का एक अहम हिस्सा है। बता दें कि इस्लाम धर्म में अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाने के बाद सभी लोगों पर हज की यात्रा वाजिब हो जाती है फिर चाहे मर्द हो या फिर औरत, गरीब हो या फिर मालदार अगर आप आर्थिक रूप से मजबूत हैं तो करना जरूरी है।
हाल ही में बॉलीवुड के सुपरस्टार शाहरुख खान को मक्का में उमराह करते देखा गया था जिनकी तस्वीरें सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रही थीं। ऐसे में यकीनन आपको मन में सवाल उठ रहा होगा कि उमराह असल में क्या होता है और ये हज यात्रा से किस तरह अलग होता है। अगर आपको भी नहीं मालूम है तो देर किस बात की आइए जानते हैं।
इस्लामिक ग्रंथों के अनुसार उमराह का मतलब मक्का में हरम शरीफ की जियारत करने से है, जिसे वर्ष में किसी भी समय किया जा सकता है। उमराह मुसलमानों को ईमान ताज़ा करने और ख़ुदा से गुनाहों की माफी मांगने का मौका होता है। (ये हैं मुस्लिम देशों की खूबसूरत प्रिंसेस)
इस यात्रा में मुसलमान काबा के चारों और चक्कर लगाते हैं यानि तवाफ करते हैं और जिसका तवाफ पूरा हो जाता है, तो उसका उमराह मुकम्मल हो जाता है। साथ ही, अल्लाह की इबादत यानि पूजा की जाती है और कुरान पढ़ जाता है।
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उमराह करने का तरीका हज से बिल्कुल अलग है क्योंकि इसकी अवधि 15 दिन की होती है। इन दौरान आठ दिन मक्का और सात दिन मदीना में रहना होता है और इस्लाम के ग्रंथों के अनुसार तमाम काम करने पड़ते हैं। इस यात्रा की खास बात ये है कि सऊदी में जब हज कराया जाता है तो उस समय उमरा नहीं किया जा सकता है, लेकिन साल में कभी भी किया जा सकता है।
उमराह या फिर हज करते वक्त महिलाओं और पुरूषों के लिबास अलग-अलग होते हैं। पुरूष हज या उमराह करते वक्त बिना सिले और सफेद कपड़े पहते हैं। सफेद कपड़े को कमर से बांध कर लूंगी की तरह पहना जाता है और ऊपर के हिस्से में कपड़े का दूसरा टुकड़ा शाल की तरह पहना जाता है। वहीं, महिलाएं बुर्के और नकाब में उमराह करती हैं। (क्या सिर्फ तीन बार 'कुबूल है' कहने पर हो जाता है निकाह)
उमराह हज से काफी अलग है जिसे करना सुन्नत माना जाता है। वहीं, हज हर मुसलमान को करना फर्ज होता है। अगर किसी मुसलमान पर किसी तरह का उधार नहीं है या वो आर्थिक रूप से मजबूत है, तो इसे एक बार हज करना जरूरी होता है। वहीं, उमराह आप अपनी श्रद्धा के अनुसार कभी भी कर सकते हैं।
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