भारत में सभी धर्म के लोग रहते हैं जो अपनी श्रद्धा के अनुसार अल्लाह, भगवान या फिर ईश्वर को मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। हर धर्म में हर चीज का एक Scientific Reason होता है, जिससे लोगों को कई तरह से मानसिक और शारीरिक रूप से फायदा होता है जैसे- पूजा करने से मन को शांति मिलती है, नमाज़ पढ़ने से इंसान फिट रहता है।
आपने यकीनन मुसलमानों की हज यात्रा के बारे में सुना होगा। यह यात्रा सऊदी अरब के मक्का में मुसलमानों द्वारा साल में एक बार जरूर की जाती है क्योंकि यह इस्लाम की पांच बुनियाद का एक अहम हिस्सा है। बता दें कि इस्लाम धर्म में अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाने के बाद सभी लोगों पर हज की यात्रा वाजिब हो जाती है।
फिर चाहे मर्द हो या फिर औरत, गरीब हो या फिर मालदार अगर आप आर्थिक रूप से मजबूत हैं तो करना जरूरी है। पर आज हम आपको हज व उमरा के बारे में जानकारी नहीं, बल्कि मक्का शरीफ पर लगे पत्थर से जुड़े फैक्ट्स बताएंगे, जिसका नाम हजर-ए-असवद है। इसके बारे में हर मुसलमान को जानकारी होनी चाहिए।
काबा शरीफ पर लगे जन्नती पत्थर का नाम क्या है?
इस पत्थर का नाम हजर-ए-असवद है, जिसे जन्नती पत्थर कहा जाता है। कुरान के मुताबिक इस पत्थर को हजरत आदम अलैहिस्सलाम अपने साथ जन्नत से लगाए थे। इस पत्थर को काबा के बाहरी दीवार के पूर्वी कोने में पर लगाया गया है। (मक्का-मदीना में हिंदुओं का जाना क्यों मना है)
कुरान के मुताबिक इस्लाम के आने से पहले, हज के दौरान हाजी काबा के सात चक्कर लगाते थे और हर चक्कर के बाद वो रूककर काबा की बाहरी दीवार के कोने में लगे इस पत्थर को चूमते थे और 'अल्लाह हु अकबर'(अल्लाह सबसे बड़ा है) बोलते थे।
हालांकि, कुछ लोगों को लगा है कि इस पत्थर को लगाने का मकसद बरकत को हासिल करना है तो उसकी कोई दलील नहीं है इस वजह से इस नजरिए को गलत और बातिल समझा जाएगा।
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क्या काबा पर लगे पत्थर का रंग काला है?
चारों ओर चांदी के फ्रेम में जड़ा हुआ पत्थर काला है, लेकिन जब इसे लगाया गया था, तो यह बिल्कुल दूध जैसा सफेद था। दूर से मोटी की तरह चमकता हुआ यह पत्थर बेहद खूबसूरत हुआ करता था, लेकिन वक्त के साथ-साथ इसका रंग काला होता गया। अब इसका रंग बिल्कुल काला है। (पैगंबर मुहम्मद की कितनी बेटियां थीं?)
काबा शरीफ के पत्थर से शुरू होता है तवाफ
तवाफ या परिक्रमा काबा के कोने में लगे 'हजर-ए-असवद' से शुरू होती है। अगर संभव हो तो लोगों को इस पत्थर को चूमना या छूना होता है। हालांकि, भीड़ की वजह से यह मुमकिन नहीं हो पाता। इसलिए पत्थर की तरफ ऊंगली करना या उसकी तरफ हथेली करना भी काफी है। हर दफा पत्थर के पास आते हुए 'अल्लाह ओ अकबर' कहना लाजमी होता है।
काबा का जन्नती पत्थर का डूबता है और ना गर्म होता है
मान्यता है कि यह पत्थर न पानी में डूबता है और ना गर्म होता है। अगर इस पत्थर को आग में भी डाल दिया जाए, तो भी यह गर्म नहीं होता। इसकी यह दो खूबियां हैं जो इस पत्थर को बाकी के पत्थर के अलग करती हैं। साथ ही, यह पत्थर इबादत का हिस्सा है, ये हज का हिस्सा भी है और हज इस्लाम का हिस्सा है।
यही वजह है कि जब मुताफ में ज्यादा भीड़ ना हो, तो इस पत्थर को छूने वालों के दिल में खास लज्जत और अल्लाह का क़ुर्ब महसूस होता है।
क्या होता है उमराह?
इस्लामिक ग्रंथों के अनुसार उमराह का मतलब मक्का में हरम शरीफ की जियारत करने से है, जिसे वर्ष में किसी भी समय किया जा सकता है। उमराह मुसलमानों को ईमान ताज़ा करने और खुदा से गुनाहों की माफी मांगने का मौका होता है।
इस यात्रा में मुसलमान काबा के चारों और चक्कर लगाते हैं यानि तवाफ करते हैं और जिसका तवाफ पूरा हो जाता है, तो उसका उमराह मुकम्मल हो जाता है। साथ ही, अल्लाह की इबादत यानि पूजा की जाती है और कुरान पढ़ जाता है।
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हज से कितना अलग है उमराह?
उमराह हज से काफी अलग है जिसे करना सुन्नत माना जाता है। वहीं, हज हर मुसलमान को करना फर्ज होता है। अगर किसी मुसलमान पर किसी तरह का उधार नहीं है या वो आर्थिक रूप से मजबूत है, तो इसे एक बार हज करना जरूरी होता है। वहीं, उमराह आप अपनी श्रद्धा के अनुसार कभी भी कर सकते हैं।
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