शादी से पहले लिव-इन और बच्चा, कुछ ऐसी है ट्राइबल पैठू प्रथा

छत्तीसगढ़ की एक ऐसी प्रथा है जहां शादी से पहले लिव इन में रहकर लड़की अपने जीवनसाथी को परखती है। इसका नाम है पैठू प्रथा और इसे लेकर अलग रिवाज भी है। 

How does paethu pratha work

भारत में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर तरह-तरह की बातें होती रहती हैं। ऐसा समझा जाता है कि खराब है और इसे लेकर न्यूज में जितनी तरह की बातें चल रही हैं वो तो आपने देखा ही होगा। पर क्या आपको पता है कि भारत में कई ट्राइबल प्रथाएं ऐसी हैं जहां लिव इन रिलेशनशिप को सही माना जाता है और इसे बहुत ज्यादा प्रोत्साहित किया जाता है। लिव इन रिलेशनशिप को लेकर ही एक ऐसी प्रथा है जिसकी चर्चा अक्सर होती रहती है और ये है पैठू प्रथा।

भारत की आदीवासी जनजातियों में ऐसी कई प्रथाएं फेमस हैं और आज हम खासतौर पर पैठू प्रथा की बात करने जा रहे हैं। पैठू प्रथा में एक ऐसा माहौल बनता है जहां लड़की अपनी मर्जी से लड़के के साथ लिव इन में रहती है और परिवार वाले भी इसका समर्थन करते हैं।

हल्दी वाले दिन दिया बेटे को जन्म और इस बिन ब्याही मां के लिए मनाई गईं खुशियां....

पैठू प्रथा से जुड़ा एक मामला पिछले साल काफी चर्चा में था। इस मामले में छत्तीसगढ़ में रहने वाली शिववती मंडावी अगस्त 2021 को अपनी पसंद के लड़के के साथ उसके घर रहने चली गई थी। इसके बाद 6 महीने रहने के बाद वो गर्भवती हुई और परिवार वालों ने हंसी-खुशी शादी तय कर दी। फरवरी में शिववती की शादी के पहले ही उसने एक बेटे को जन्म दिया और उसके घर वाले इस बात से काफी खुश थे।

pethu pratha chattisgarh

ऐसा पैठू प्रथा के तहत हुआ था जिसमें शिववती ने कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर ये किया था। हालांकि, ये किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन शिववती ने जन्माष्टमी का दिन चुना था।

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आखिर इस पैठू प्रथा का चलन कहां है?

ये प्रथा मूलत: छत्तीसगढ़ की है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी जनजाति बहुत तादात में हैं और वो अपनी प्रथाएं उसी रीति-रिवाज से मनाते हैं जैसे पुराने जमाने में होता था। पैठू प्रथा अभी भी उनके समाज में लीगल है और कई परिवार इसे सही मानते हैं।

chattisgarh tribal rituals

इस प्रथा को पूरा करने के लिए लड़का और लड़की को शादी योग्य उम्र का होना चाहिए। कम उम्र में ये प्रथा मान्य नहीं होती है। अगर लड़का और लड़की एक दूसरे को पसंद करते हैं तो उन्हें साथ रहने की इजाजत उनके परिवार वालों से नहीं लेनी होती। उन्हें बस ये प्रथा निभानी होती है। इसमें किसी तरह के फेरे, वादा या फिर शादी की रस्में नहीं होती हैं।

ग्रामीण इलाकों में इस प्रथा का समर्थन करने वाले भी बहुत से लोग होते हैं। इस प्रथा को तभी निभाया जा सकता है जब लड़का और लड़की दोनों ही इसके लिए राजी हों।

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क्या हमारे समाज में स्वीकार है ये प्रथा?

ये प्रथा हमारे देश में जिस तरह के ख्याल लिव इन रिलेशनशिप को लेकर होते हैं उसके हिसाब से तो पैठू प्रथा को बैन किया जाना चाहिए, लेकिन अगर आदिवासी जनजातियों के बारे में सोचें तो ये बिल्कुल ही सही प्रथा है जहां लड़की और लड़का अपनी पसंद से जीवनसाथी चुन सकते हैं। अगर देखा जाए तो लिव इन रिलेशनशिप को लेकर अगर हमारा समाज इतना एक्सेप्टिंग हो जाए तो शायद इसे लेकर इतने खराब मामले सामने ना आएं। एक तरफ हमारे सामने श्रद्धा वाल्कर जैसा केस है जहां परिवार को खबर ही नहीं थी कि बेटी के साथ क्या हुआ और एक तरफ पैठू प्रथा है जहां पर परिवार वाले खुद ही खुशियां मनाते हैं।

एक बात तो इन मामलों में साफ है कि अगर परिवार साथ हो तो आपकी जिंदगी काफी हद तक सुलझी हुई हो सकती है। लिव इन रिलेशनशिप को देखने के अलग मायने हैं और ऐसे में इसे लेकर सही और गलत दोनों तरह की राय हो सकती है। आपकी इस मामले में क्या राय है? ये हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।

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