भारत में ट्रांसजेंडर्स को लेकर एक तय धारणा है। उन्हें समाज के अपवाद की तरह देखा जाता है और कई लोग बिना जानकारी ही उनके साथ भेदभाव करते हैं। LGBTQ+ कम्युनिटी को लेकर समाज में कई तरह की भ्रांतियां हैं जिनके कारण उनके साथ कई तरह के क्राइम्स होते हैं। पर क्या उनके लिए कोई कानून भी है जिससे उनकी रक्षा हो सके? आज अपनी Haqse सीरीज में हम आपको उनके राइट्स के बारे में बताने जा रहे हैं।
हमने ट्रांसजेंडर्स से जुड़े कानूनों को लेकर मुंबई हाई कोर्ट की क्रिमिनल लॉयर शिखानी शाह से बात की। उन्होंने हमें कई तरह के नियमों से रूबरू करवाया जिससे ट्रांसजेंडर्स को फायदा मिल सकता है।
क्या है ट्रांसजेंडर पर्सन प्रोटेक्शन एक्ट?
इस एक्ट का नाम है Transgender Persons (Protection Of Rights) Act, 2019, हां यह नया एक्ट है, लेकिन इसके आने से ट्रांसजेंडर्स की सुरक्षा काफी हद तक हो सकती है। शिखानी के मुताबिक, "ट्रांसजेंडर पर्सन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) एक्ट के तहत कोई ट्रांस पर्सन अपनी जेंडर आइडेंटिटी खुद डिसाइड कर सकता है। इस कानून के तहत एक खास सर्टिफिकेट भी इशू किया जाता है जो उनके जेंडर चेंज होने का प्रमाण देता है। एक ट्रांस व्यक्ति जिला मजिस्ट्रेट के पास जेंडर आइडेंटिटी सर्टिफिकेशन की अर्जी दे सकता है। यह सर्टिफिकेट उन्हें कानूनी तौर पर ट्रांसजेंडर घोषित करता है। अगर कोई ट्रांस पर्सन अपनी सर्जरी करवा कर मेल या फीमेल बनता है, तो वो जेंडर रिवीजन का सर्टिफिकेट भी मांग सकता है।"इसे जरूर पढ़ें- Haqse: तलाक के बाद पत्नी को इस तरह मिल सकते हैं पैसे
इस एक्ट के फायदे क्या हैं?
जरा सोचिए कि आप किसी नौकरी के लिए अप्लाई करें और आपके पास अपनी पहचान को बताने के लिए कोई पहचान पत्र ही ना हो। ऐसा होता है ट्रांसजेंडर के साथ। आधार कार्ड अमूमन उनके उस जेंडर के हिसाब से बना होता है जो उन्हें बर्थ के समय पर असाइन किया होता है। ऐसे में उनके पास कोई और ऑप्शन नहीं होता जिससे वो अपनी पहचान बता सकें। इस एक्ट के बल पर उन्हें पहचान का सर्टिफिकेशन कानूनी तौर पर मिल जाता है।
ऐसे ही इस एक्ट के जरिए ट्रांस पर्सन के साथ डिस्क्रिमिनेशन रोका जा सकता है। अगर कोई उन्हें किसी भी सर्विस को देने से मना कर रहा है, तो इस एक्ट के तहत शिकायत की जा सकती है। ट्रांसजेंडर्स को किसी भी जरूरी सर्विस के लिए मना नहीं किया जा सकता। हर भारतीय की तरह उनके पास भी हेल्थकेयर, एजुकेशन, शेल्टर आदि के अधिकार हैं।
यह कानून कहता है कि अगर इमिडिएट फैमिली ट्रांस पर्सन का खयाल नहीं रख पा रही है, तो ट्रांसजेंडर रिहैबिलिटेशन सेंटर भी जा सकता है। इसके लिए कोर्ट से ऑर्डर लिया जा सकता है।
ट्रांसजेंडर्स हर भारतीय नागरिक की तरह नौकरी करने का अधिकार है और कोई भी उसके जेंडर के आधार पर उसे नौकरी देने से मना नहीं कर सकता है। अगर ट्रांस पर्सन क्वालिफाइड है, तो वह नौकरी के लिए अप्लाई कर सकता है। ट्रांसजेंडर इसके मामले में शिकायत कर सकता है।
हेल्थ केयर के लिए जरूरी कानून
ट्रांस पर्सन के साथ कई तरह के हेल्थ इशूज हो सकते हैं। ट्रांस कम्युनिटी के लिए सरकार की तरफ से अलग HIV सर्विलेंस सेंटर भी बनाए गए हैं। इसके साथ ही सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरीज की सुविधा भी दी जाती है। अपने आइडेंटिटी कार्ड के साथ सर्विसेज लेने के लिए वह किसी भी अस्पताल में जा सकते हैं। हालांकि, यहां एक बात साफ कर दी जाए कि इसका खर्च सब्सिडाइज तो होता है, लेकिन वहन ट्रांस पर्सन को ही करना पड़ता है। कई मामलों में एनजीओ और क्राउड फंडिंग संस्थानों की मदद ली जा सकती है।
अगर कोई ट्रांस से जुड़े कानून तोड़े तो क्या होगा?
शिखानी के अनुसार नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसपर्सन इसलिए ही बनाई गई है ताकि उनके अधिकारों की रक्षा की जा सके। ट्रांसजेंडर्स अपने अधिकारों के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जा सकते हैं। एक्ट के आर्टिकल 32 और 226 के अनुसार हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में उनसे जुड़े मामलों पर गौर किया जा सकता है। आर्टिकल 226 के तहत थर्ड जेंडर के अधिकारों को ना मानना ह्यूमन राइट्स के तहत आता है। ऐसे मामलों में ह्यूमन राइट्स कमीशन भी विक्टिम का संज्ञान ले सकती है।
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क्या है शिकायत दर्ज करवाने का तरीका?
Transgender Persons (Protection of Rights) Act, 2019 के तहत एक ऑफिसर असाइन किया जाता है जो ट्रांसजेंडर की शिकायत दर्ज कर सके। ऑफिस भले ही प्राइवेट सेक्टर में हो या पब्लिक सेक्टर में इससे जुड़ी शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है। मामला अगर बहुत बड़ा है, तो नेशनल ट्रांसजेंडर काउंसिल के आधिकारिक पोर्टल (https://transgender.dosje.gov.in/) के जरिए शिकायत दर्ज करवाएं। यहां शिकायत दर्ज करवाने के लिए अलग से ‘Grievance tab’ (शिकायत टैब) बनाया गया है।
कई लोगों को इसके बारे में पता नहीं होता, लेकिन ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन के लिए डोमेस्टिव वायलेंस एक्ट में भी प्रावधान है। यह एक्ट ट्रांसवुमन के प्रोटेक्शन के लिए भी है। परिवार द्वारा किसी भी तरह की हिंसा की शिकायत इसके तहत की जा सकती है।
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