हमारे देश में परिवार और प्यार को बहुत महत्व दिया जाता है। पर हम साथ-साथ हैं जैसी फैमिली के बीच ना जाने कितनी ऐसी चीजें होती हैं जो हमारे दिमाग को और भी ज्यादा चिड़चिड़ा बना देती हैं। किसी फैमिली फंक्शन या त्योहार के दौरान अगर सभी इकट्ठा हैं, तो किसी ना किसी तरह का कलेश हो ही जाता है। पर कभी सोचने की कोशिश की है कि ऐसा क्यों होता है? भारतीय कल्चर में टॉक्सिक नियम लगभग हर घर में फॉलो किए जाते हैं और उन्हें इतना कॉमन कर दिया गया है कि लोगों को लगता ही नहीं कि वो टॉक्सिक हैं।
अगर आप इस स्टोरी को पढ़ने आए हैं, तो हो सकता है कि मेरी कुछ बातें आपको बुरी लगें और आप यह सोचें कि भला ये चीजें कब से टॉक्सिक होने लगीं, लेकिन सही मायने में ये चीजें हमारी मनोस्थिति पर असर भी करती हैं। इस स्टोरी को पढ़िए और खुद फैसला कीजिए कि क्या वाकई हमारे समाज में बदलाव की गुंजाइश नहीं है?
अपनी जिद में बच्चों का ब्रेकअप करवा देना क्योंकि "लोग क्या कहेंगे"
सबसे कॉमन चीज जिसे भारतीय परिवारों में फॉलो किया जाता है वह शायद यही है। ना जाने कितनी लव स्टोरीज लिबरल माने जाने वाले परिवारों में भी खत्म होती हैं। मैं यहां गंभीर मुद्दों जैसे लव जिहाद और हॉनर किलिंग की बात ना करूं तो भी एक कॉमन इंडियन फैमिली में लव मैरिज हमेशा विवादित ही रहती है। अपने आस-पास देखिए आपको ही ना जाने ऐसे कितने किस्से मिल जाएंगे। भारत एकलौता ऐसा देश है जहां प्यार भी आपको कास्ट और रिलीजन देखकर ही करना होता है।
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बच्चों को डॉक्टर या इंजीनियर बनने को कहना क्योंकि "पैशन तो बेवकूफ फॉलो करते हैं"
'मेरा बेटा इंजीनियर बनेगा', जब फिल्म 'थ्री ईडियट्स' में फरहान के पिता ने उसके पैदा होते ही यह कहा था तब स्क्रीन पर उन्हें देखकर लगा था कि वाकई 'अब्बा नहीं मानेंगे', पर यह सिर्फ रील नहीं रियल लाइफ में भी होता है। हमारा बच्चा क्लास में फर्स्ट आता है, हमारा बच्चा तो डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा है, हमारे बच्चे ने तो पढ़ाई करने के लिए टीवी देखना ही छोड़ दिया। ये सारी बातें धीरे-धीरे बच्चे के ऊपर प्रेशर डालना शुरू कर देती हैं।
हमारा देश शायद दुनिया के उन गिने-चुने देशों में से एक होगा जिसमें पहले बच्चों को मैथ्स या साइंस सब्जेक्ट लेने को कहा जाता है, उन्हें इंजीनियर बनाया जाता है और फिर उससे पूछा जाता है कि अब क्या करना है। आज आप किसी भी प्राइमरी स्कूल के बच्चे को देख लीजिए उसे इतनी क्लासेस करवाई जा रही हैं कि नॉर्मली खेलना तो वो भूल ही गए हैं।
बच्चों को फर्स्ट आना है क्योंकि, "हमारे घर तो जीनियस हुआ है..."
अगर बच्चा पढ़ाई में जरा भी अच्छा निकल जाए, तो उसके साथ क्या होता है यह शायद हम भलि-भांति जानते हैं। बच्चा अगर टॉप 5 में है, तो उसके ऊपर प्रेशर डालना शुरू किया जाता है कि तुम तो फर्स्ट आ सकते हो। मोटिवेशन के नाम पर किसी ना किसी तरह का प्रेशर दिया जाता है। पढ़ाई को लेकर एक अलग तरह का माहौल बना दिया जाता है। अगर आपको लग रहा है कि अब ऐसा नहीं होता और यह पुरानी बात है, तो आप गलत हैं। आज भी कई ऐसे लोग हैं जो बच्चे को प्रेशर में डालते हैं।
पिछले साल आंध्र प्रदेश में 48 घंटों के अंदर 9 बच्चों ने आत्महत्या कर ली थी क्योंकि परीक्षा का रिजल्ट आया था। ऐसे ही सिर्फ 1 महीने पहले की खबर है कि ओडिशा में दो बच्चों ने एग्जाम के डर से सुसाइड कर लिया। हम अपने बच्चों को ये कभी नहीं समझाते कि अगर वो फेल भी हो रहे हैं, तो भी दोबारा कोशिश की जा सकती है। उनके ऊपर इतना प्रेशर छोटी उम्र से ही डाल दिया जाता है कि उन्हें हर चीज में परफेक्ट होना है। इसके बारे में आप किसी भी 90s किड से पूछें, तो आपको पता चल जाएगा कि उनके ऊपर खुद कितना प्रेशर था।
बच्चों को हर बात में गिल्टी फील करवाना क्योंकि, "क्या इस दिन के लिए उन्हें बड़ा किया था?"
बच्चों को पैदा करने का फैसला माता-पिता का होता है, उनके साथ जिंदगी भर क्या करना है, उन्हें किस स्कूल में पढ़ाना है, उन्हें कहां घुमाना है आदि सब कुछ माता-पिता तय करते हैं। यकीनन वो अपने हिसाब से बच्चों के लिए बेस्ट करना चाहते हैं, लेकिन इसके बाद वो उम्मीद करते हैं कि बच्चे उनकी हर बात मानें, उनके मुताबिक ही काम करें और अगर गलती से किसी बच्चे ने अपने बारे में सोचा, तो वो सेलफिश हो जाता है। भारत में बच्चों को गिल्टी फील करवाने का बहुत ट्रेंड है क्योंकि बच्चों को ये कहा जाता है, "हमने तो पूरी जिंदगी तुम्हारे लिए किया है, उसका यह सिला दे रहे हो?"।
जरा खुद सोचिए कि क्या किसी हेल्दी माहौल में ऐसा होना चाहिए? टीवी सीरियल 'महाभारत' में श्री कृष्ण का एक डायलॉग मुझे याद है, "जहां प्रेम होता है वहां अपेक्षा नहीं होती पार्थ, अगर अपेक्षा है तो उसे स्वार्थ कहा जाएगा प्रेम नहीं।" मैं यह नहीं कह रही कि बच्चों को माता-पिता के लिए कुछ नहीं करना चाहिए या माता-पिता की बात नहीं माननी चाहिए। पर माता-पिता को भी बच्चों को हर बात में गिल्टी नहीं फील करवाना चाहिए।
परिवार के किसी भी सदस्य को कुछ भी कह देना क्योंकि, "अरे अपना हक समझ कर कह दिया, तुमसे तो प्यार है"
प्यार और परिवार दोनों ही बड़े कॉम्प्लेक्स रिश्ते होते हैं। उतना ही कॉम्प्लेक्स होता है इंसानी दिमाग। क्या आपने सोचा है कि गुस्से में आपके मुंह से निकली हुई एक छोटी सी चीज कितनी खतरनाक हो सकती है। लोगों के मन में आपकी कही हुई एक बात सालों तक रह सकती है और यही चीज रिश्तों को खराब करने का काम करती है। अपना हक समझकर बच्चों को नकारा कह देना, बहुओं को कामचोर कह देना और सीधे उनके माता-पिता तक पहुंच जाना यह गलत है। अपनी फ्रस्ट्रेशन निकालने के लिए अपनों को कुछ भी कह देना टॉक्सिक ही होता है।
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बेटे का ऑफिस जरूरी और बहू का ऑफिस टाइमपास क्योंकि, "घर के काम भी जरूरी हैं, ऑफिस में तो गप्पे ही मारते हैं"
इस समस्या के बारे में पहले भी काफी कुछ कहा और लिखा गया है। सास बहू सीरियल्स और सुपरबहू की छवि ने उम्मीदों को और बढ़ा दिया है। बेटा थककर घर आए, तो वह थका हुआ है और बहू थककर घर आए, तो उसे किचन में जाकर काम देखना चाहिए क्योंकि घर का काम भी जरूरी है। यह तो गलत है ना? लेकिन ना जाने कितने घरों में अभी भी यही होता है कि घर की बहू सुबह सारा काम करके जाए, बच्चों को संभाले और उन्हें उठाकर स्कूल भेजे, खुद नहा ले उसके बाद सास के दुलारे बेटे को उठाए और उसे तैयार करवाकर, नाश्ता देकर, छप्पन भोग बनाकर टिफिन में पैक करके दे और फिर खुद ऑफिस जाए।
घर आकर राजा बेटा थका है, तो उसकी खातिर करे, घर में खाना बनाए सबको खिलाए और फिर कहीं जाकर सोए।
लड़कियों को फोर्स करना क्योंकि, "शादी की उम्र निकल जाएगी"
शादी की उम्र भारत में एक मील का पत्थर है जिसे अगर लड़की ने पार कर लिया, तो उसकी जिंदगी का कोई मकसद नहीं। खुद ही सोचिए शादी की उम्र को लेकर घरों में लड़कियों पर कितना दबाव डाला जाता है। यहां खानदान का नाम भी आ जाता है और खानदान के नाम पर लड़कियों को कभी घर के बाहर जाकर काम करने से रोका जाता है, कभी उन्हें लव मैरिज की दुहाई और पिता की इज्जत का ख्याल कर शादी करने को कहा जाता है।
ये सारी बातें हमारे समाज में ही की जाती हैं और हम उन्हें परंपरा और प्यार के नाम पर चलाते रहते हैं। पर क्या ये टॉक्सिक नहीं हैं? खुद सोचिए और फिर बताइए...
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