सान्या मल्होत्रा की नई फिल्म मिसेज का टीजर आया है। इस टीजर में सान्या एक बहुत ही टैलेंटेड डांसर के रूप में दिखाई गई हैं जो हर कदम पर हंसती-खेलती रहती हैं। उन्हें अपनी जिंदगी से प्यार है, लेकिन फिर उनकी शादी हो जाती है और बहुत कुछ बदल जाता है। टीजर में दिखाया गया है कि शादी के बाद सान्या का डांस का पैशन काम करते-करते दिखता है, तो उनके ससुराल वालों को आपत्ति होती है। इसके साथ ही उन्हें सान्या के बनाए खाने से भी दिक्कत होती है।
टीजर के एक सीन में सान्या को अपने पति के पैर छूते दिखाया गया है। पति इसके बाद अपसेट सान्या से घर के नियम और कायदों को मानने की बात भी कहता है। फिल्म का नाम है 'मिसेज'। सान्या की यह फिल्म एक महिला के बारे में है जो शादी के बाद अपनी आइडेंटिटी को ढूंढने की कोशिश कर रही है।
फिल्म तो जब आएगी और देखी जाएगी इसका रिव्यू तभी होगा, लेकिन इस फिल्म के जरिए एक बहुत ही अहम सवाल मन में जरूर आ सकता है। क्या वाकई हमारे समाज में शादी के बाद महिलाओं की पहचान वैसी ही रहती है जैसी शादी के पहले थी?
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'अपने घर जाना है...' की समस्या से झूझती बेटियां
यह तो शायद बचपन से ही हमें झेलना पड़ता है। लड़कियों से कहा जाता है कि उन्हें अपने घर जाकर ही सारे सुख मिलेंगे, लेकिन मायके में इतना सब कुछ कहने वाले लोग यह नहीं बता पाते कि आखिर बेटी का अपना घर कौन सा होता है? क्योंकि ससुराल में तो अक्सर यही सुनने को मिलता है, 'यह सब इस घर में नहीं होता, तुम्हारे घर में होता होगा, इस घर के नियम कायदे जरूरी हैं...' और ऐसे ही कई वाक्य लड़कियों को परेशान कर देते हैं।
हमारे समाज में लड़कियों को शुरुआत से ही इस तरह से ग्रूम कर दिया जाता है कि उनकी अपनी कोई आइडेंटिटी नहीं है और उन्हें अपने घर के लिए तलाश जारी रखनी है। कई मामलों में तो ससुराल में जाकर सालों निकल जाते हैं, लेकिन लड़कियों का अपना घर वह नहीं बन पाता है।
शादी के बाद की उम्मीदों को तोड़ती हैं सामाजिक बंदिशें
यहां इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि कोई लड़की ज्वाइंट फैमिली में रह रही है या फिर सिर्फ अपने पति के साथ। शादी के बाद कई तरह की उम्मीदें होती हैं जिन्हें लड़कियां बचपन से ही सजा कर रखती हैं। मैं यह नहीं कह रही कि सभी लड़कियों के साथ ऐसा होता है जैसा फिल्म में दिखाया गया है, लेकिन फिर भी डोमेस्टिक वॉयलेंस और नेशनल क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट को देखें, तो हम पाएंगे कि इस देश में हर सेकंड किसी महिला के साथ कोई ना कोई क्राइम हो ही रहा है।
शादी के बाद किस तरह की स्थितियां सामने आती हैं उससे शायद हम अंजान नहीं हैं। दहेज प्रताड़ना का दंश हमारा देश ना जाने कब से झेल रहा है। शादी के बाद एक लड़की की उम्मीदें किस तरह से टूट सकती हैं?
- शादी के बाद घर और बाहर दोनों के काम की जिम्मेदारी सिर्फ लड़की की होना।
- उसे अपना पैशन या करियर ना फॉलो करने देना।
- लड़की के काम में बात-बात पर नुक्स निकालना।
- आजादी के नाम पर सिर्फ पति के साथ बाहर जाने की इजाजत मिलना।
- हर बात के लिए सिर्फ सास-ससुर की इच्छा का इंतजार करना।
- यहां तक कि अपनी पसंद की कोई चीज भी बनाकर ना खा पाना यकीनन परेशान कर देता है।
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क्या शादी के बाद खो जाती है अपनी पहचान?
यह सवाल वाकई आपको परेशान कर सकता है। शादी के बाद पति की लाइफ तो ज्यादा नहीं बदलती है, लेकिन पत्नी को एक नए माहौल में एडजस्ट करना पड़ता है। यहां मैं यह नहीं कह रही कि पति या ससुराल वाले बुरे होते हैं या सिर्फ बहुएं परेशान ही होती हैं, लेकिन मैं उस सामाजिक मानसिकता की बात जरूर कर रही हूं जो हर दूसरे घर में देखने को मिलती है। बहुओं की पहचान एक सीमित दायरे में होती है। अगर किसी लड़की की शादी किसी ऐसे घर में हो गई है जहां उसे नौकरी पर जाने की परमीशन मांगनी पड़ती है और घर वाले इस बात को लेकर भी अहसान जताते हैं, तो यकीनन उसकी अपनी पहचान खो ही गई समझिए।
अगर अपनी पसंद का कोई काम करने के लिए भी इजाजत की जरूरत पड़े और उस काम को करने के बाद लोगों का मुंह बन जाए, तो भी पहचान खो ही गई समझिए।
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