सुविधा या भ्रम? आंकड़े बताते हैं महिला सुरक्षा के नाम पर कैसे रहे आजादी के 76 साल

कहने को तो आजादी के 76 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन अखबार की खबरों से लेकर टीवी और सोशल मीडिया तक महिला सुरक्षा की कहानी कहते हैं। हर रोज कोई ना कोई नया कांड किस्से के तौर पर सुनाया जाता है।

Gender Based issues in india

कुछ दिनों पहले एक वीडियो वायरल हुआ जिसने पूरी दुनिया के सामने महिला सुरक्षा की सच्चाई ला दी। हिंदुस्तान के एक कोने में महिलाओं के साथ दरिंदगी हुई और इस मामले में दो महीने बाद जाकर कोई अपराधी पकड़ा गया। हम उस देश का हिस्सा हैं जहां वीरांगनाओं का सम्मान किया जाता है। देश की आजादी के लिए लड़ने वाली झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, वेलू नचियार, सरोजिनी नायडू, बीकाजी कामा, बेगम हजरत महल जैसे नामों को आज भी याद किया जाता है, लेकिन क्या वाकई आजादी के 76 साल बाद भी महिलाएं आजाद होकर सड़कों पर घूम सकती हैं?

हरजिंदगी अपनी खास मुहिम 'आजाद भारत आजाद नारी' के तहत कुछ आंकड़े आपके सामने पेश करने जा रही है जो भारत में महिलाओं के हाल को बयां करते हैं। ये सरकारी आंकड़े आपको डरा भी सकते हैं! आज हम उस बारे में चर्चा करने जा रहे हैं जिसकी बात दबी जुबां तो होती है, लेकिन सच्चाई सामने नहीं आ पाती है।

जेंडर के आधार पर महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों का लेखा-जोखा

इंसान को जीने के लिए क्या चाहिए? रोटी, कपड़ा और मकान? इनके साथ एक और चीज जरूरी है और वो है सुरक्षा। पर आंकड़े बताते हैं कि भारत में महिलाओं की सुरक्षा कोरे कागज पर ज्यादा है। National Crime Record Bureau की रिपोर्ट बताती है कि 2021 में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या 15.3 प्रतिशत बढ़ गई। क्राइम रेट का तो जिक्र ही ना करें। 2020 में जहां ये रेट 56.5 प्रतिशत था वहीं 2021 में ये 64.5 प्रतिशत हो गया।

Gender Based Crime

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आपके लिए हम इसे थोड़ा साधारण भाषा में समझाते हैं। क्राइम रेट तब निर्धारित होता है जब प्रति 1 लाख लोगों में क्राइम की संख्या बढ़ती या घटती है। यहां पर क्राइम रेट महिलाओं के लिए है इसलिए 1 लाख महिलाओं पर 64.5 प्रतिशत क्राइम रेट रखा गया है। इसका मतलब यौन हिंसा, अपहरण, रेप, घरेलू हिंसा, छेड़खानी के मामले पहले के मुकाबले सबसे ज्यादा बढ़े हैं।

अगर हम क्राइम रेट को राज्यों के आधार पर देखें तो इसके ज्यादा होने का मतलब यह नहीं कि असल आंकड़े ज्यादा हैं, जैसे क्राइम रेट असम में सबसे ज्यादा है जहां 168.3 आंकड़ा देखने से लगता है कि यह सबसे असुरक्षित राज्य है। ऐसे ही यूनियन टेरिटरी के मामले में दिल्ली का क्राइम रेट 147.6 है। पर यहां जनसंख्या कम है और जनसंख्या के हिसाब से मामले ज्यादा। अगर असल आंकड़ों की बात करें, तो उत्तर प्रदेश महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित माना जाएगा जहां 56,083 मामले सामने आए। इसमें महिलाओं के खिलाफ सभी तरह के अपराध शामिल थे।

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इसके साथ, राजस्थान 40,738 मामलों के साथ दूसरे नंबर पर था और महाराष्ट्र 39,526 मामलों के साथ तीसरे नंबर पर।

नागालैंड महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित राज्य

ऐसा नहीं है कि आंकड़ों में सब कुछ खराब ही है। नागालैंड में महिलाओं के खिलाफ क्राइम रेट 5.5 प्रतिशत है और यहां 2021 के डेटा के अनुसार एक साल में सिर्फ 54 केस रजिस्टर हुए थे।

राजस्थान में महिलाओं के साथ हुए सबसे ज्यादा रेप

अलग-अलग रिपोर्ट्स को देखें, तो महिलाओं के रेप के मामले सबसे ज्यादा राजस्थान में सामने आए। 2020 में यह आंकड़ा 5310 था और 2021 में यह बढ़कर 6337 हो गया। यहां नाबालिग लड़कियों के साथ रेप के सबसे ज्यादा मामले थे और 1453 रजिस्टर्ड केस पुलिस तक पहुंच पाए।

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मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा लापता महिलाएं

NCRB के सर्वे के मुताबिक 2019-2021 के बीच देश में 13.13 लाख महिलाएं लापता हुईं और इसमें से सबसे ज्यादा मामले मध्य प्रदेश से सामने आए जहां 1,60,180 महिलाएं और 38,234 नाबालिग लड़कियां इस दौरान लापता हुई हैं।

देश की राजधानी सबसे ज्यादा असुरक्षित

अगर हम सिर्फ मेट्रो शहरों के आंकड़े देखें, तो दिल्ली में सबसे ज्यादा 32.20 प्रतिशत मामले सामने आए जो सभी 19 मेट्रोपॉलिटन के मुकाबले सबसे ज्यादा थे। दिल्ली में घरेलू हिंसा के 4674 मामले और किडनैपिंग आदि के 3,948 मामले सामने आए। हालांकि, इसके अलावा यौन शोषण के मामले 5270 रहे।

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हर 74 सेकंड में एक महिला के साथ होता है किसी ना किसी तरह का अपराध

अगर हम इस डेटा को देखें, तो यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं होगा कि किस तरह से महिलाएं भारत में अनसेफ है। आंकड़े बताते हैं कि हर 72 सेकंड में किसी महिला के साथ भारत में किसी ना किसी तरह का अपराध होता ही है। मेट्रो शहर ही नहीं, बल्कि टू-टियर सिटीज जैसे जयपुर, इंदौर, लखनऊ, नागपुर भी सुरक्षित नहीं हैं। NCRB के डेटा में आपको शहरों के हिसाब से होने वाले जुर्म का लेखा-जोखा भी मिल जाएगा।

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95 प्रतिशत महिलाओं को हमेशा रहता है सुरक्षा का डर

हमने सरकारी आंकड़े देख लिए अब जरा एक बार ग्राउंड रिपोर्ट और सर्वे का जिक्र कर लेते हैं। जिस सर्वे की हम बात कर रहे हैं, वो यूनाइटेड नेशन्स की तरफ से किया गया था।

इस सर्वे को दिल्ली में किया गया था और इसके आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में सिर्फ 5 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें सुरक्षित महसूस होता है। इस सर्वे को ही अगर आधार मान लिया जाए, तो हम यह कह सकते हैं कि देश की राजधानी में कोई भी महिला पूरी तरह से सुरक्षित नहीं महसूस करती है।

महिलाओं को मारना है पुरुषों का हक... 39 प्रतिशत रखते हैं ऐसी सोच

अपनी बात खत्म करने से पहले हम घरेलू हिंसा का जिक्र भी कर ही लेते हैं। वर्ल्ड वैल्यू सर्वे की 2011-2012 की रिपोर्ट भले ही पुरानी हो, लेकिन बढ़ते हुए घरेलू हिंसा के मामले बताते हैं कि सोच अभी भी नहीं बदली है। डेटा मानता है कि भारत में 39 प्रतिशत पुरुष यह मानते हैं कि महिलाओं पर हाथ उठाना उनका अधिकार ही है।

आजादी के 76 सालों बाद भी महिला सुरक्षा की धूमिल तस्वीर...

बात साफ है कि एक महिला अभी भी अपने देश, शहर, मोहल्ले, गली, घर के अंदर सुरक्षित महसूस नहीं करती है। साल-दर-साल ये आंकड़े बढ़ते ही चले जा रहे हैं और हम धीरे-धीरे इसी असलियत से साथ जीना सीख रहे हैं जो यकीनन बहुत गलत है। घर के अंदर जब किसी बेटी का रेप होता है, तो उसे चुप रहने की सलाह दी जाती है, गंगा को पवित्र और मूर्ति को देवी मानने वाले इस देश में जब लड़कियों की ही सुरक्षा नहीं हो सकती, तो आखिर हम किस बुनियाद पर विकास के बारे में सोचते हैं?

आप ही बताइए क्या यह विकास है? क्या वाकई हम आजाद हैं?

Source:

NCRB Data (City wise and National)

UN Survery Safer Cities Free of Violence against Women and Girls

World Value Survey Gender Based Violence

Journal Of Interpersonal Violence

Progress of the World’s Women 2011-2012

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