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Supreme Court Rules on Divorce: 6 महीने के रिव्यू पीरियड के बिना भी मिल सकता है तलाक, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया एक अहम फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है जिसमें वो आर्टिकल 142 के आधार पर किसी शादी को तुरंत खत्म करने के आदेश सुना सकता है। ऐसे में 6 महीने का वेटिंग पीरियड लागू नहीं होगा। 
Editorial
Updated:- 2023-05-03, 18:25 IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 1 मई को एक फैसला सुनाया है। पांच जज की बेंच ने आर्टिकल 142 के आधार पर यह फैसला लिया है। संविधान में आर्टिकल 142 कोर्ट के कई फैसले लेने की सुविधा देती है। इसी कड़ी में अब दो सहमत पार्टीज का तलाक भी इस धारा के आधार पर करवाया जा सकता है। ऐसे मामलों में रिव्यू पीरियड के बिना भी तलाक लिया जा सकता है। आमतौर पर फैमिली कोर्ट में अगर आपसी सहमति से तलाक दिलवाया जाता है, तो 6 से 18 महीने का रिव्यू पीरियड भी दिया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में कहा गया है कि ऐसे मामले जहां शादीशुदा जोड़ा दोबारा एक साथ रह ही नहीं सकता है, वहां शादी को खत्म करने का फैसला सुनाया जा सकता है।

जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, अभय एस ओका, विक्रम नाथ और जे के महेश्वरी की बेंच ने फैसला सुनाया कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत 6 महीने का पीरियड आर्टिकल 142 के आधार पर खत्म किया जा सकता है। यह मौलिक अधिकारों को अंतर्गत आता है। कोर्ट के पास ऐसे मामलों में न्याय देने का पूरा अधिकार होता है।

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क्या है इस मामले में एक्सपर्ट की राय?

हमने इस फैसले के बारे में सुप्रीम कोर्ट की वकील जूही अरोड़ा से पूछा। उनके अनुसार, "इस निर्णय से हम यह कह सकते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में धारा 142 लगाकर आप इररिट्रिटेवल मैरिज के आधार पर तलाक ले सकते हैं। अभी तक हमारे हिंदू मैरिज एक्ट में ऐसे प्रावधान नहीं थे। क्योंकि 142 हमारी इन्हेरेंट पावर्स हैं संविधान में इसपर सुप्रीम कोर्ट ने मोहर लगाई है। साथ ही, 6 महीने का जो रिव्यू पीरियड होता है उसे भी खारिज कर दिया है। यह निर्णय अपने आप में बढ़िया है क्योंकि इससे आप आर्टिकल 142 का लाभ उठा सकते हैं।"

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Supreme court divorce verdict

किस आधार पर दिया गया है यह फैसला?

हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत किसी जोड़े को आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए सेक्शन 13B का सहारा लिया जाता है। इस सेक्शन का सब सेक्शन 1 कहता है कि अगर दोनों पार्टीज एक साल से ज्यादा से अलग रह रही हों या फिर वो शादी के बाद एक साथ ना रह पाई हों।

इसी का आर्टिकल 13B (2) कहता है कि दोनों पार्टीज को 6 से 18 महीने का समय दिया जाएगा। यह समय रिव्यू पीरियड होता है जिसमें अगर दंपत्ति चाहे, तो एक साथ रहने का फैसला लेकर तलाक की प्रक्रिया खारिज कर सकता है।

मैंडेट पीरियड की अवधि खत्म होने के बाद अगर कोर्ट सही समझता है, तो तलाक को मान्य कर दिया जाता है। हालांकि, ये सभी नियम शादी के कम से कम एक साल बाद ही लागू होते हैं। मतलब तलाक लेने का समय लगभग 3 साल तक चल सकता है।

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क्या जल्दी हो सकता है यह प्रोसेस?

आपसी सहमति के अलावा, कुछ खास कारणों से जल्दी तलाक मिल सकता है। जैसे सेक्शन 14 के अंतर्गत अगर पति या पत्नी को बहुत ज्यादा कष्ट हो रहा है या फिर किसी मूलभूत आधार से वंचित रखा जा रहा है, तो तलाक जल्दी लिया जा सकता है।

व्यभिचार, क्रूरता, परित्याग, धर्म परिवर्तन, पागलपन, कोढ़, यौन रोग, त्याग, और अनुमानित मृत्यु के आधार पर भी तलाक की अर्जी दी जा सकती है।

इस तरह से कई मामलों में तलाक की अर्जी दी जा सकती है। आपका मामला किस धारा के तहत मान्य होगा वो जानने के लिए आप किसी लीगल एक्सपर्ट से सलाह लें।

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