Same Sex Marriage: सुप्रीम कोर्ट ने कहा ...'अब नियमों को बदलने की जरूरत है', पढ़ें पूरी अपडेट

सुप्रीम कोर्ट ने आज समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली 20 याचिकाओं पर सुनवाई जारी कर दी है और आज हम आपको बताएंगे कि आखिर यह पूरा मामला क्या है, तो चलिए इस लेख में जानते हैं। 

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सेम सेक्स मैरिज को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बहस अब भी जारी है। हियरिंग के पांचवे दिन भी मैरिज इक्वालिटी को लेकर कोर्ट में लगभग 15 पेटिशन्स पर सुनवाई चलती रही। केंद्र सरकार की तरफ से कोर्ट में आग्रह किया गया है कि इस मामले को संसद पर छोड़ देना चाहिए। इस मामले को "बहुत जटिल" और "गहरे सामाजिक प्रभाव वाला मामला" कहा गया है।

सरकार की तरफ से सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से सिफारिश की है। उनका कहना है, "अगर पार्लियमेंट उचित समझे, तो वो अपने विवेक के हिसाब से एक विधायिक प्रावधान बना सकती है। जैसा कि पहले बताया गया है, जहां भी किसी वैधानिक समिति

ने ऐसा किया है, वहां कानून में संबंधित बदलाव लाए गए हैं।"

एसजी तुषार मेहता ने बहुत से तर्क दिए जिसपर जस्टिस भट्ट ने कहा, "यह भाषा अपडेट करनी होगी। अब खुद को बदलने का समय आ गया है।"

आपको बता दें कि पिछले साल 25 नवंबर को दो गे कपल सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग की थी। इसके बाद अदालत की तरफ से नोटिस जारी किया गया था। समलैंगिक विवाह (यानी पुरुष से पुरुष और स्त्री से स्त्री का विवाह) को वैध बनाने की मांग करती याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई की है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रविंद्र भट्ट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संवैधानिक बेंच ने इस मामले पर सुनवाई शुरू कर दी है।

इससे ठीक पहले केंद्र सरकार ने एक बार फिर समलैंगिक विवाह का विरोध किया था और केंद्र ने सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग की थी। केंद्र ने कहा था कि शादियों पर फैसला सिर्फ संसद ही ले सकती है, सुप्रीम कोर्ट नहीं। फिर 13 मार्च को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले को पांच जजों की संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर कर दिया था।

जानिए क्या है पूरा मामला?

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साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था। इसके बाद से ही समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की मांग की जा रही है। मांग में याचिकाकर्ता इसके जरिए समाज में LGBTQIA+ समुदाय के साथ भेदभाव खत्म करने की बात को सामने रख रहे हैं। बीते साल 25 नवंबर को दो गे कपल सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग की। इसके बाद अदालत की तरफ से नोटिस जारी किया गया था।(वैवाहिक विवादों में पति-पत्नी नहीं करवा सकते बच्चों का Dna Test) आपको बता दें कि दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग इसके समर्थन में हैं और आयोग ने सरकार से समलैंगिक परिवार इकाइयों को प्रोत्साहित करने के लिए हस्तक्षेप की मांग भी की है। समर्थन में उनका कहना है कि कई स्टडीज में यह तर्क दिया गया है कि समलैंगिक जोड़े अच्छे माता-पिता बन सकते हैं। 50 से ज्यादा ऐसे देश हैं, जहां समलैंगिक जोड़ों को कानूनी तौर पर बच्चा गोद लेने की अनुमति है। इसके साथ-साथ इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी भी इनके पक्ष में है। याचिकाकर्ताओं ने संविधान के आधार पर भी कई अधिकारों की मांग की है।

मामले पर फिर होगी सुनवाई

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भी सेम सेक्स मैरिज का विरोध किया है और उन्होंने कहा कि वो प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास रखते हैं। उन्हें लगता है कि लोगों को जैसा चाहें, वैसे रिश्ते रखने का अधिकार है। मान लिया जाए कि समलैंगिक शादी को मान्यता दे दी जाती है और उस जोड़े ने बच्चा गोद लिया हुआ हो, तो क्या होगा। अलग होने की स्थिति में कौन उसका पिता होगा और कौन मां? कौन गुजारा भत्ता देगा? इन सभी बातों को लेकर कपिल सिब्बल ने भी सेम सेक्स मैरिज का विरोध किया है। आपको बता दें कि इस मामले की सुनवाई आज भी जारी रहेगी।

सुनवाई के दूसरे दिन भी बहस जारी

देश में सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में आज दोबारा सुनवाई हुई और इस मामले पर जस्टिस भट ने कहा कि कुछ चीजें हैं जो बिना किसी बाधा के की जा सकती हैं, आपको पहचानना होगा और हमें बताना होगा। वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण इस वर्ग का भेदभावपूर्ण बहिष्कार केवल सेक्स और यौन अभिविन्यास पर है। इस बात पर चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि तो आप कह रहे हैं, राज्य किसी व्यक्ति के साथ उस विशेषता के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है जिस पर किसी व्यक्ति का कोई नियंत्रण नहीं है और सिंघवी बी इस बात से राजी हुए। चीफ जस्टिस ने कहा कि ये अपनी अभिव्यक्तियों में अधिक शहरी हो सकता है क्योंकि शहरी क्षेत्रों में अधिक लोग बाहर आ रहे हैं। सरकार की ओर से कोई आंकड़ा नहीं निकल रहा है कि यह शहरी है या कुछ और है।

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याचिकाकर्ता ने की यह मांग

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि एलजीबीटीक्यू समुदाय को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है। उन्हें भी विवाह और परिवार का अधिकार होना चाहिए जो विषमलैंगिक व्यक्तियों के लिए उपलब्ध है। इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने मांग की कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों को 'पुरुष और महिला' के बजाय 'पति-पत्नी' के बीच विवाह पढ़ा जाए।

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केंद्र सरकार ने कहा 'शहरी एलीट विचार'

केंद्र सरकार ने कहा कि विवाह सामाजिक वैधानिक संस्था है। इसे लेकर सिर्फ विधायिका ही कानून बना सकती है। याचिकाकर्ता ने जो भी सवाल उठाए हैं, उन्हें जनप्रतिनिधियों के विवेक पर छोड़ा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में गे कपल ने अर्जी दाखिल कर कहा है कि होमोसेक्सुअल शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मान्यता दी जाए। आपको बता दें कि याचिकाकर्ता सुप्रीयो चक्रवर्ती और अभय डांग ने कहा है कि हम 10 साल से कपल की तरह रह रहे हैं। हम शादी करना चाहते हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अंतरजातीय और अंतरधार्मिक शादियों की इजाजत देता है।

आपको बता दें कि केंद्र सरकार लगातार इसके विरोध में रही है और शीर्ष न्यायालय में इसे 'विनाश' की वजह बताया गया था। साथ ही इस विचार को शहरी एलीट विचार करार दिया था। केंद्र का कहना है कि याचिकाकर्ता समलैंगिक विवाहों की मांग मूल आधारों के तौर पर नहीं कर सकते। इसके साथ-साथ कई संगठन जैसे जमात उलेमा-ए-हिंद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी समलैंगिक विवाह के खिलाफ हैं।

जानिए क्या है समलैंगिकों की मांग

समलैंगिकों ने ये भी मांग की है कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर समुदाय को उनके मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में दिया जाए. और समलैंगिकों की ओर से दाखिल याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट समेत विवाह से जुड़े कई कानूनी प्रावधानों को चुनौती देते हुए समलैंगिकों को विवाह की अनुमति देने की मांग की गई है।

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image credit- twitter/freepik

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